इंदौर (Indore)। देश में तलाक के मामले लगभग दोगुने हो गए हैं। पहले जहां एक हजार विवाह में से सात तलाक होते थे, वहीं यह आंकड़ा 15 पर पहुंच गया है। ये तथ्य एक कानूनी रिसर्च में सामने आए हैं। फैमिली मैटर्स विशेषकर पति-पत्नी के बीच होने वाले विवादों में कानूनी रिसर्च के दौरान सूचना के अधिकार तथा अन्य माध्यमों से प्राप्त आंकड़ों से सामने आया है कि पिछले 10 साल में भारत में 1000 विवाह में से लगभग 7 विवाह तलाक की वजह से समाप्त होते थे। वर्तमान में यह आंकड़ा दोगुना होकर 1000 विवाह में 15 तक पहुंच गया है। 25 से 34 वर्ष की उम्र के बीच में सबसे ज्यादा तलाक हो रहे हैं।
तलाक के मामलों में महाराष्ट्र नंबर वन तो मध्यप्रदेश टॉप 10 में
तलाक के मामले में महाराष्ट्र नंबर वन और मध्यप्रदेश टॉप 10 में दसवीं पोजिशन पर है। भारत में तलाक के कारणों में मुख्यत: नगरीकरण, आधुनिकीकरण, मोबाइल इंटरनेट का अधिक उपयोग, व्यक्तिगत स्वतंत्रता, वैचारिक तालमेल का अभाव और कानूनों का दुरुपयोग इत्यादि सामने आए हैं।
तलाक के लिए दहेज प्रताडऩा जैसे केस… इसलिए समझौते मुश्किल
तलाक के मामलों में आपराधिक कानूनों का दखल परिवार में विघटन भी पैदा कर रहा है। तलाक लेने के लिए महिलाओं द्वारा दहेज प्रताडऩा के मुकदमे लगाए दिए जाते हैं, जिससे परिवार का फिर से जुडऩा मुश्किल होता है। रिसर्च के अनुसार आपराधिक कानून के दखल के बाद परिवार का विघटन हो रहा है और तलाक में समझौते के बजाय स्थिति विवाह विच्छेद तक पहुंच रही है। दहेज प्रताडऩा के मुकदमे, अर्थात् धारा 498 के केस लगने के बाद परिवार फिर से जुड़ पाना बहुत ज्यादा मुश्किल होता जा रहा है। इसी प्रकार भरण-पोषण देने में त्रुटि करने वाले पति को जेल होने के बाद भी तलाक के प्रकरण बढ़ते हैं। ऐसी स्थिति में काउंसलिंग एवं अनुभवी समाजशास्त्रियों की मदद लेकर इन समस्याओं को दूर किया जा सकता है। विधि विशेषज्ञ पंकज वाधवानी के मुताबिक इस रिसर्च के आधार पर कानून मंत्री को फैमिली लॉ में आवश्यक सुधार करने, पारिवारिक मामलों में आपराधिक कानूनों का दखल समाप्त करने के सुझाव दिए गए हैं।
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