इंदौर। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष घोषित होने में हो रही देरी का असर अब नीचे के स्तर पर भी नजर आने लगा है। कई नगर अध्यक्षों ने अपने मंडल अध्यक्षों को रामनवमी तक अपनी मंडल कार्यकारिणी के नाम भाजपा कार्यालय को देने के निर्देश दिए थे, लेकिन इंदौर जैसे शहर में ही 35 मंडलों में से एक भी मंडल अध्यक्ष ने अपनी कार्यकारिणी नगर इकाई को नहीं सौंपी। इससे कार्यकारिणी घोषित होने में देरी हो सकती है। वहीं 10 अप्रैल तक भोपाल से कार्यकारिणी घोषित करने को कहा गया है।
इंदौर शहर में भाजपा की मंडल कार्यकारिणी को लेकर लंबे समय से विचार-विमर्श चल रहा है। इस बीच नगर अध्यक्ष सुमित मिश्रा ने सभी मंडल अध्यक्षों को निर्देश दिए थे कि रामनवमी तक अपनी सूची नगर कार्यालय को उपलब्ध करा देें, ताकि निर्धारित अवधि में मंडल कार्यकारिणी घोषित की जा सके, लेकिन अधिकृत तौर पर अभी तक 35 में से एक भी मंडल अध्यक्ष ने अपनी सूची नहीं सौंपी है। ऐसे में कार्यकारिणी की घोषणा होने में देरी होने की संभावना है। हालांकि अभी तक प्रदेश अध्यक्ष के बारे में भी फैसला नहीं हो पाया है। नगर पदाधिकारियों का चयन भी होना है, लेकिन लग रहा है कि पूरी प्रक्रिया देरी से ही होगी। फिलहाल तो मंडल कार्यकारिणी को लेकर ही पूरा फोकस किया जा रहा है, क्योंकि कार्यकारिणी 10 अप्रैल तक घोषित करना है। इसके साथ ही सूची भोपाल भी भेजी जाना है।
इस तरह बनेगी नई कार्यकारिणी
भाजपा की मंडल कार्यकारिणी में पदाधिकारियों सहित 60 लोग रहेंगे। इसमें दो महामंत्री रहेंगे। इसके साथ ही 6 उपाध्यक्ष, 6 मंत्री, 1 कोषाध्यक्ष, 1 मीडिया प्रभारी, 1 सोशल मीडिया प्रभारी, 1 आईटी संयोजक बनाना होगा। इनमें 5 पद महिलाओं के लिए आरक्षित रखे गए हैं। इसके साथ ही अन्य 40 कार्यसमिति सदस्यों में से 15 महिला सदस्यों को अनिवार्य रूप से बनाना होगा।
विधायकों और बड़े नेताओं का हस्तक्षेप
जिस तरह से मंडल अध्यक्षों की नियुक्ति या चयन में विधायकों की चलती है, उसी तरह विधायक भी चाहते हैं कि कार्यकारिणी के गठन में उनके नामों को प्राथमिकता मिले, ताकि चुनाव के वक्त वे उनके लिए काम कर सकें। हालांकि संगठन ने ऐसे किसी हस्तक्षेप से मना किया है, लेकिन व्यावहारिक तौर पर यह असंभव होता है। कार्यकारिणी में देरी का एक ये बड़ा कारण भी है, क्योंकि मंडल अध्यक्ष को विधायक की पसंद को तवज्जो देना होती है।
सबको खुश करना है बड़ी चुनौती
हर कोई कार्यकारिणी में आना चाहता है और महामंत्री पद को लेकर अपना दावा जताता है। इसी को लेकर कुछ मंडलों में स्थिति गड़बड़ है। महामंत्री के दो ही पद रहते हैं, लेकिन विधायक और बड़े नेता चाहते हैं कि इन पदों पर तो हमारे लोग रहें। वहीं नगर और प्रदेश के भी कई नेताओं का दबाव मंडल अध्यक्ष पर होता है। इस तरह कार्यकारिणी बनाने में मंडल अध्यक्ष को सबको खुश रखना पड़ता है। वहीं क्षेत्रीय पार्षद के नामों को भी एडजस्ट करना होता है, क्योंकि पार्षद चुनाव में ये ही लोग काम आते हैं।
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