– डॉ. दिलीप अग्निहोत्री
परम्परागत कृषि उत्पाद आवश्यक है लेकिन यहीं तक सीमित रहना जमीन और आय दोनों पर प्रतिकूल असर डालते हैं। दिल्ली सीमा पर किसानों के नाम पर चल रहा आंदोलन इस तथ्य से बेपरवाह है। यहां सीमित क्षेत्र के किसानों की दुहाई दी जा रही है। इसलिए देश के अन्य किसान इसमें शामिल नहीं हैं। इतना ही नहीं, इस आंदोलन से पंजाब व हरियाणा के किसानों का हित जुड़ा नहीं है। आंदोलन किसानों के दूरगामी कल्याण के प्रतिकूल है। क्योंकि इन प्रदेशों में पिछले कई दशकों से परम्परागत फसल ही की जा रही है। विविधता का पूरी तरह अभाव है। इन प्रदेशों में जमीन की उपजाऊ क्षमता कम हो रही है। अत्यधिक रासायनिक खादों के प्रयोग से अनेक प्रकार की बीमारियां भी जन्म ले रही है। किसान आंदोलन के नेता यथास्थिति बनाये रखना चाहते हैं। उनको अपना वर्तमान लाभ तो दिखाई दे रहा है लेकिन किसानों को मिले अधिकारों से वे परेशान हैं। जबकि किसानों को इस चक्र से बाहर निकालने की आवश्यकता है।
नए कृषि कानूनों के माध्यम से यही किया गया। इसमें कृषि मंडी व न्यूनतम समर्थन मूल्य को जारी रखते हुए किसानों को नए अवसर दिए गए। फसल को अपनी मर्जी से कहीं भी बेचने का अधिकार दिया गया। कॉन्ट्रेक्ट कृषि भी किसानों को अवसर प्रदान करेगी। यह कॉन्ट्रेक्ट केवल फसल का हो सकता है। किसान की जमीन का इससे कोई मतलब नहीं है। एक तरफ किसानों में भ्रम फैलाकर आंदोलन किया जा रहा है, दूसरी तरफ किसानों को जागरूक बनाने के भी आयोजन किये जा रहे हैं। यूपी के प्रादेशिक फल, शाक-भाजी एवं पुष्प प्रदर्शनी का आयोजन लखनऊ राजभवन में किया गया था। लेकिन इसकी प्रेरणा व्यापक रही। क्योंकि इसके माध्यम से उत्तर प्रदेश ही नहीं, देश के किसानों को भी कृषि आय बढ़ाने का सन्देश गया। इसमें किसानों के साथ अन्य लोगों ने भी दिलचस्पी दिखाई। इनमें शहरों के वे लोग भी शामिल हैं जो गमलों में बागवानी करते हैं।
प्रदर्शनी का शुभारंभ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और राज्यपाल आनन्दी बेन पटेल ने किया था। यहां बताया गया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों की आय दोगुनी करने का अभियान शुरू किया था। इसके दृष्टिगत अनेक प्रभावी कदम उठाये जा रहे हैं। उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी इस अभियान को आगे बढ़ा रहे हैं। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के किसानों की आय को दोगुना करने के सपने को पूरा किया जा रहा है। केन्द्र एवं राज्य सरकार किसानों की आय दोगुनी करने के लिए लगातार प्रयास कर रही हैं। किसानों को डेढ़ गुना एमएसपी दिया जा रहा है। योगी आदित्यनाथ ने कहा कि किसानों की आय बढ़ाने में कृषि की लागत कम करते हुए उत्पादन में बढ़ोत्तरी तथा कृषि विविधीकरण की महत्वपूर्ण भूमिका है। इससे किसानों की आय तेजी से बढे़गी। किसान नए प्रयोगों और कृषि विविधीकरण से अपनी आय में उल्लेखनीय बढ़ोत्तरी कर सकते हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि चार वर्ष पूर्व जब वे अपने कार्यकाल की प्रथम प्रदर्शनी में राजभवन आए थे, तब किसानों, पुष्प उत्पादकों इत्यादि ने उस समय की आवश्यकताओं के अनुसार अच्छा प्रदर्शन किया था। चार वर्ष में परिदृश्य बदलाव भी अपने में बहुत कुछ कह देता है।
चार वर्ष में कृषि संबन्धी प्राथमिकताएं भी बदली हैं। इस प्रदर्शनी में पारम्परिक फल, सब्जी, पुष्प के प्रदर्शन के अलावा जैविक फल, सब्जी, पुष्प का भी प्रदर्शन किया गया है। गन्ना किसानों की मेहनत से आज भारत प्रचुर मात्रा में चीनी का निर्यात कर रहा है। इसमें उत्तर प्रदेश के गन्ना किसानों का भी बड़ा योगदान है। प्रदर्शनी के माध्यम से बताया गया कि परम्परागत कृषि उत्पाद के साथ ही विविधीकरण भी आवश्यक है। इससे किसानों की आय भी बढ़ती है, साथ ही जमीन की उर्वरा शक्ति भी बेहतर होती है। बागवानी के प्रति किसानों को जागरूक बनाने का यही उद्देश्य है। उनको अधिक आय देने वाली फसलों के लिए प्रेरित भी किया गया है। देश के बहुत से किसान ऐसा कर भी रहे हैं। यह कार्य उपलब्ध संसाधनों में ही किया जा सकता है।
राज्यपाल आनन्दी बेन पटेल ने भी किसानों को जागरूक किया। उन्होंने कहा कि बागवानी फसल व्यावसायिक रूप ले रही है, इन फसलों के उत्पादन की ओर कृषकों का रुझान बढ़ा है। औषधीय एवं सगंधीय फसलों के उत्पादन कटाई उपरान्त प्रबन्धन, प्रसंस्करण, मूल्य संवर्धन एवं विपणन कार्यों से ग्रामीण अंचल में रोजगार की संभावनाओं में भी वृद्धि हो सकेगी। बदलते परिवेश में इस तरह के प्रयासों की मदद से हमें पर्यावरण संरक्षण में भी मदद मिलती है। कोरोना काल में औषधीय एवं सुगंध पौधों की ओर जनमानस का ध्यान गया है। इससे बचाव में प्राकृतिक जड़ी-बूटियों से बना काढ़ा बहुत कारगर साबित हुआ। इस अवधि में चिकित्सा क्षेत्र के वैज्ञानिकों एवं आयुष मंत्रालय भारत सरकार द्वारा भी शारीरिक रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाये जाने हेतु औषधीय एवं सगंधीय पौधों के उपयोग पर बल दिया गया। ऐसा नहीं कि यह केवल आपदा के समय ही उपयोगी था। आयुर्वेद को नियमानुसार जीवनशैली में शामिल किया जा रहा है। पूरी दुनिया ने इसके महत्व को स्वीकार किया है। ऐसे में भारत के किसानों के आयुर्वेद संबधी उत्पादों पर ध्यान देना चाहिए।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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