भोपाल। प्रदेश में जनपद पंचायत के सदस्यों के चुनाव परिणाम घोषित हो चुके हैं और आज जिला पंचायत सदस्यों के परिणामों की औपचारिक घोषणा की जाएगी। अब ये सदस्य जिला पंचायत और जनपद अध्यक्ष-उपाध्यक्षों को चुनेंगे। अध्यक्षों के चुनाव से पहले ही सदस्यों की बाड़ा-बंदी शुरू हो गई है। चुनाव की अनौचारिक घोषणा के बाद से ही सदस्य मथुरा-बृंदावन, शिर्डी, खाटूश्याम मंदिर से लेकर गोवा बीच तक घूमने निकल पड़े हैं। ये सदस्य घर से देव-दर्शन की कहकर गए हैं और घर नहीं लौट रहे हैं। ग्वालियर जिले की डबरा जनपद के 24 सदस्य तो जीत का प्रमाण पत्र लेने ही नहीं पहुंचे।
डबरा जनपद के सदस्यों को भाजपा के ही एक गुट ने किसी गुप्त स्थान पर पहुंचा दिया है। डबरा जनपद को लेकर गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा और इमरती देवी के बीच खींचतान चल रही है। इसी तरह ग्वालियर के ही घाटीगांव, मुरार व भितरवार जनपद में भी ज्यादातर जनपद सदस्य प्रमाण पत्र लेने नहीं आए। राजगढ़ जिला पंचायत में सदस्य चुनी गईं शीतल दांगी के पति राज का कहना है कि अध्यक्ष उनकी पत्नी ही बनेंगी। उनके पास कांग्रेस के 10 सदस्यों का समर्थन है। इसके अलावा, कुछ भाजपा के सदस्य भी उनके पक्ष में हैं। वे सभी सदस्यों को लेकर राजस्थान के जोधपुर जा रहे हैं। टीकमगढ़ और बलदेवगढ़ में अजीब स्थिति सामने आई है। यहां 25-25 सदस्य हैं, लेकिन जीत का प्रमाण पत्र लेने सिर्फ 5-5 लोग आए हैं।
डर से अंडरग्राउंड हुए जीते हुए सदस्य
ग्वालियर में चार जनपद पंचायत (ब्लॉक) हैं। चारों जनपद में 25-25 वार्ड हैं। यहां अध्यक्ष बनने के लिए किसी भी दल या नेता को 13 सदस्यों का समर्थन या वोट चाहिए होता है। ऐसे में सत्ताधारी दल से जुड़े दबंग या बाहुबली नेता निर्दलीय सदस्यों और कांग्रेस समर्थित सदस्यों को पैसों का प्रलोभन देकर या बंधक बनाकर जबरन अपने पक्ष में वोट डालने के लिए विवश करते हैं। यही कारण है कि रिजल्ट आते ही चुनाव जीतने वाले निर्दलीय या कमजोर वर्ग के प्रत्याशी अंडरग्राउंड हो गए हैं। यही नहीं, कई बार सदस्य भी इसलिए अंडरग्राउंड हो जाते हैं कि उनको वोट के बदले सही वैल्यू मिल सके।
कोई मथुरा में गिर्राजजी, तो कोई वैष्णोदेवी गया
जो सदस्य अंडर ग्राउंड हुए हैं, इनके घर पर जब दबंग जीता हुआ प्रत्याशी पहुंच रहा है, तो जवाब मिल रहा है कि वो तो जीत का पता चलते ही गिर्राज जी के लिए निकल गए हैं, तो कोई वैष्णों देवी के दर्शन करने के लिए निकल गया है।
चुनावी रंजिश पर हो जाता है खून खराब
यह पहली बार नहींं है। ऐसा हर बार होता है। जनपद व जिला पंचायत में अध्यक्ष बनने के लिए रंजिश तक ठान लेते हैं। ऐसे में यह रंजिश सालों तक चलती है। ग्वालियर, भिंड व मुरैना में बीते तीन चुनावों में 12 हत्याएं सिर्फ चुनावी रंजिश के चलते हुई हैं।
जिला पंचायतों के लिए भी बाड़ा-बंदी
जिला पंचायत सदस्यों की जीत की औपचारिक घोषणा आज की जाएगी, लेकिन अनौपचारिक परिणाम आने के बाद से ही सदस्यों की बाड़े-बंदी शुरू हो गई थी। सबसे ज्यादा परेशानी अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग से आने वाले सदस्यों की है। उन्हें हर तरह से दबाव झेलना पड़ रहा है। बताते हैं कि जिला पंचायत अध्यक्ष के लिए दावेदारी कर रहे सदस्यों के समर्थन में स्थानीय प्रशासन भी सदस्यों पर दबाव बनाने का काम कर रहा है।
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