पटना। सुप्रीम कोर्ट ने कार्यपालिका (Supreme Court executive) को याद दिलाया है कि अदालतों के फैसलों का सम्मान कानून के शासन का मूल है। उसके फैसलों की उपेक्षा कानून के शासन वाले देश के लिए बहुत बुरा होगा। जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस हृषिकेश रॉय (Justice KM Joseph and Justice Hrishikesh Roy) की पीठ ने बिहार सरकार द्वारा 2016 में लोहार जाति को अनुसूचित जनजाति घोषित करने के फैसले को अवैध और मनमाना करार देते हुए ये बातें कहीं।
पीठ ने कहा कि राज्य सरकार के इस आदेश से अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) कानून की सख्ती से अन्य नागरिकों के मौलिक अधिकार प्रभावित हुए। सुनील कुमार राय और अन्य द्वारा दायर याचिका पर पीठ ने कहा कि इस अदालत ने पहले तीन फैसलों में स्पष्ट रूप से कहा था कि लोहार अन्य पिछड़ा वर्ग है, न कि अनुसूचित जनजाति। पीठ ने कहा कि जब नागरिकों के अधिकारों को प्रभावित करने वाले निर्णय लेने की बात आती है तो कार्यपालिका को अपने निर्णयों के प्रभाव को सावधानीपूर्वक परखना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की अधिसूचना पर सवाल उठाते हुए कहा कि इसके लिए दिमागी कसरत नहीं की गई। यह अनुच्छेद-14 के साथ विश्वासघात है।
शिकायतकर्ताओं को पांच लाख हर्जाना देने का निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार (Bihar Government) की अधिसूचना को रद्द करते हुए सरकार को याचिकाकर्ताओं (petitioners to the government) को पांच लाख रुपये हर्जाना देने का निर्देश दिया। दरअसल लोहार जाति से संबंधित शिकायतकर्ता द्वारा दर्ज आपराधिक मामले में उसे कारावास का सामना करना पड़ा।
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