वाशिंगटन। दुनियाभर में कोरोना के खिलाफ बड़ा हथियार मानी जा रही प्लाज्मा थरैपी असरदार साबित नहीं हुई। अमेरिका, ब्रिटेन समेत कुछ देशों में हुए अध्ययनों पता चला कि मरीजों की सेहत सुधारने में नाकाम रही है।
खुलासे के बाद कई अस्पतालोंने प्लाज्मा चढ़ाना बंद कर दिया है। अमेरिका ने तो करीब 60 अरब रुपये लुटा दिए पर अच्छे परिणामों के अभाव में अब क्लीनिकल ट्रायल तक में इसका इस्तेमाल रोक दिया है।
अमेरिका में फूड एंड ड्रग एड्रमिनिस्ट्रेशन की हरी झंडी के बाद अगस्त में तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने प्लाज्मा थेरैपी के आपात इस्तेमाल की मंजूरी दी थी। इस साल जनवरी में हर हफ्ते औसतन 25 हजार यूनिट प्लाज्मा चढ़ाया गया।
साढ़े सात लाख यूनिट चढ़ाया, पर ज्यादा काम न आया
बीते साल प्लाज्मा थैरेपी को लेकर कई क्लीनिकल शोध सामने आ रहे थे, जिनमें इसके फायदे गिनाए जा रहे थे। एक साल पहले संघीय सरकार ने करीब साढ़े सात लाख यूनिट प्लाज्मा अस्पतालों तक पहुंचाया। लेकिन मौजूदा तथ्यों-साक्ष्यों के मुताबिक यह कुछ काम नहीं आया। खासतौर पर ज्यादा संक्रमित पर तो यह नाकाम रही।
अमेरिका में कई चिकित्सा केंद्रों पर बंद
बीते साल सितंबर में ही अमेरिका की संक्रामक रोग सोसाइटी ने क्लीनिकल ट्रायल के बाहर मरीजों पर इसका इस्तेमाल रोकने की सिपारिश दी। न्यूयॉर्क का माउंट सिनाई अस्पताल इस साल की शुरूआत से ही क्लीनिकल ट्रायल के बाहर वाले मरीजों को प्लाज्मा नहीं दे रहा।
ब्रिटेन में भी इस्तेमाल सीमित
ब्रिटेन के अस्पतालों में जनवरी में भर्ती मरीजों पर प्लाज्मा थैरेपी के कोई खास सबूत न मिलने से वहां चल रहे ट्रायल को पहले ही रोकना पड़ा। फरवरी का इस्तेमाल शुरूआती चरण के संक्रमण से गुजर रहे मरीजों तक ही सीमित कर दिया।
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