उज्जैन। शिप्रा नदी में 13 गंदे नालों का पानी मिल रहा है। यही पानी नदी में जाता है तो वह नदी का पानी बन जाता है और लोग उसी को स्पर्श करते हैं..सुनहरी घाट, धोबी घाट, छोटा पुल, बड़े पुल के नीचे एवं चक्रतीर्थ तक यही पानी जमा रहता है और शिप्रा नदी कहीं नजर नहीं आती। साधुओं ने आंदोलन तो किया लेकिन इसका क्या परिणाम होगा कह नहीं सकते। उल्लेखनीय है कि शनिचरी अमावस्या से पहले त्रिवेणी क्षेत्र में कान्ह नदी का दूषित पानी शिप्रा में मिलने से रोकने के लिए मिट्टी का पाला बनाया गया था। यह स्नान के ऐनवक्त पर बह गया था। इसके बाद संतों ने इस पर नाराजगी जाहिर की थी और दत्त अखाड़ा घाट पर कान्ह नदी का पानी शिप्रा में मिलने से रोकने के लिए सरकार को पुख्ता योजना बनाने की मांग को लेकर धरना प्रदर्शन शुरु कर दिया था। इनमें से एक संत ने तो 27 दिन पहले अन्न का त्याग कर लगातार शिप्रा शुद्धिकरण की मांग को जारी रखा था। हालांकि संतों का यह आंदोलन चार दिन चला और आंदोलन मंच पर अन्य संगठनों और लोगों का भी संतों की मांग को समर्थन मिला।
मुख्यमंत्री तक बात पहुँची, हलचल शुरु
शिप्रा नदी में कान्ह नदी के दूषित पानी को मिलने से रोकने तथा संतों की मांग के अनुरूप नहर द्वारा इसे डायवर्ट करने आदि कार्ययोजना को धरातल पर जाँचने के लिए आज दोपहर बाद जल संसाधन विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव एस.एन. मिश्रा, नर्मदा घाटी विकास के अतिरिक्त मुख्य सचिव आई.सी.पी. केसरी व नगरीय प्रशासन विभाग के प्रमुख सचिव मनीष सिंह शहर आएँगे। यह तीनों अधिकारी शिप्रा में मिलने वाले स्थान त्रिवेणी संगम तथा पंथ पिपलई स्थित कान्ह डायवर्शन प्रोजेक्ट योजना का जायजा लेंगे और उसके बाद अधिकारियों के साथ बैठक भी करेंगे तथा कार्ययोजना की जानकारी लेंगे।
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