उज्जैन। श्रीराम कार सेवा समिति के आव्हान पर पूरे देश से राम जन्मभूमि मुक्ति एवं रामलला के विराजमान करने हेतु 30 अक्टूबर 1990 को देवोत्थान एकादशी पर अयोध्या में कार सेवा करने की तिथि निर्धारित की गई थी। विश्व हिन्दू परिषद द्वारा देश भर में राम शिलाओं के पूजन का कार्यक्रम पूर्ण हो चुका था। आडवाणी जी की रथयात्रा प्रारंभ हो चुकी थी, पूरा राष्ट्र राममय, भगवामय हो चुका था। उस वक्त अयोध्या फैजाबाद और आसपास के गांवो मे प्रबंधन की दृष्टि से कार्यकर्ताओं की आवश्यकता थी, क्योंकि सभी स्थानीय कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी प्रारंभ हो चुकी थी।
पूरे देश में एक संभाग से एक कार्यकर्ता अयोध्या बुलाया गया, उज्जैन संभाग से उस वक्त के बजरंग दल नगर संयोजक दिलीप शर्मा का चयन किया गया और 16 अक्टूबर को गुप्त वाहिनी के रूप में दिलीप शर्मा ने संभाग के प्रथम कारसेवक के रूप में अध्योध्या प्रस्थान किया। अयोध्या में सरस्वती विद्या मंदिर में रहकर सर्वप्रथम श्रीराम जन्म भूमि पहुंचकर रामलला हनुमान गढ़ी दर्शन कर स्थानीय निर्देशानुसार मध्य भारत प्रांत के चार संभाग प्रमुखों के साथ अध्योध्या फैजाबाद में प्रमुख कार्यकर्ताओं के घर-घर पहुंचकर जानकारी हासील कर केन्द्रीय योजना का संदेश पहुंचाने का कार्य प्रारंभ किया। संघ भाजपा विहिप और अन्य अनुषांगिकों के कार्यकर्ताओं व समर्थकों की गिरफ्तारी होने पर लोगों में भयानक डर और दहशत के वातावरण में कार्य करने में अत्याधिक कठिनाई का सामना करना पड़ रहा था। सबसे बड़ा डर यह था कि बाहरी होने की जानकारी मिलने पर गिरफ्तारी की पूरी संभावना थी। सुन्दरकांड पाठ, भजन, पूजन-कीर्तन मृत्यु उपरांत रामधुन गाने तक पर प्रतिबंध था। अंत में दिलीप शर्मा और साथियों की ड्यूटी ग्रामीण क्षेत्र में जहां रेलवे के छोटे स्टेशन थे वहां लगाई गई। ट्रेन से मालवा, मध्य भारत अंचल से आने वाले कारसेवकों को ठहराने की ड्यूटी थी। घर-घर में कार सेवकों को ठहराने हेतु प्रबंधन का कार्य प्रारंभ किया और समाजवादी पार्टी के स्थानीय कार्यकर्ताओं द्वारा पुलिस में सूचना देने पर गांव व स्थान बदलना पड़ता था। फैजाबाद शहर आकर ग्रामीण क्षेत्र मे प्रगति व गतिविधियों की जानकारी देना होती थी, शहर में शंका न हो इसलिये योजना अनुसार लुंगी और बनियान में केले व अन्य फल बेचने का कार्य करते हुए स्थानीय अधिकारियों को सूचना दी जाती थी। मोटरसाइकल से रात्रि में फिर ग्रामीण क्षेत्रों में चले जाते थे। बाद में आडवाणी जी के रथ को रोके जाने और उत्तरप्रदेश सीमा को सील किये जाने व उत्तरप्रदेश सीमा से बाहर ट्रेन रोकने व ट्रेनों के निरस्त होने से सभी योजनाए ध्वस्त हुई। फिर भी स्थानीय नेतृत्व ने स्पष्ट कर दिया था। अब शहर नहीं आकर गांव-गांव जाकर सभी को 30 अक्टूबर 1990 को अयोध्या कूच करने का आव्हान करो और गाव में चुपचाप बैठकें लेते हुए जन जागरण कार्य करते हुए कारसेवा का आव्हान करते थे। इस दौरान दो-तीन बार भोजन प्रबंधन न होने से, गांव में दहशत का वातावरण होने से भूखे भी रहना पड़ा था। 30 अक्टूबर की कारसेवा में 29 की रात्रि से अयोध्या हेतु ग्रामीण क्षेत्र के हजारों लोगों के साथ प्रस्थान किया। अयोध्या में पुलिस सैनिक बल चप्पे चप्पे पर था। पुलिस बल सख्ती करते हुए शिथिलता भी देता था। उस दिन कारसेवकों ने गुम्बज पर चढ़कर भगवा फहराया था और 2 नवंबर 1990 को पुन: कारसेवा के आव्हान पर जन्म भूमि और अयोध्या फैजाबाद में जमे लाखों कारसेवकों ने जन्मभूमि की और प्रस्थान किया। मुलायमसिंह सरकार ने गोली, लाठी, अश्रु गैस का आदेश भी दिया। कई कार सेवक पुलिस की गोली से मारे गए। कार सेवा रोक दी गई और केन्द्रीय नेतृत्व के आदेश पर देश भर से आए कारसेवकों को अपने-अपने स्थान पर जाने का आदेश हुआ। दूसरी कारसेवा 6 दिसम्बर 1992 को हुई जिसमें देश भर के लाखों कारसेवकों ने अयोध्या पहुंचकर बाबरी ढांचा तोडकर कारसेवा पूर्ण की। भाजपा की चार प्रदेशों की सरकारें गिराई गई। म.प्र. की पटवा सरकार भी गिराई गई। मध्यप्रदेश के तात्कालीन राज्यपाल कुंवर महमूद अली ने भोपाल व उज्जैन में हुए दंगो मे हिन्दुओं के साथ पुलिस के माध्यम से बर्बरता की गई, स्वयं नगर संयोजक बजरंग दल दिलीप शर्मा के घर में मुख्य द्वार का दरवाजा तोड़कर पुलिस उनके बड़े भाई को गिरफ्तार करके ले दगई।
दिलीप शर्मा संभाग से सबसे पहले पहुंचे थे
30 अक्टूबर 1990 की प्रथम कारसेवा में उज्जैन संभाग के प्रथम कारसेवक के रूप में तात्कालीन बजरंग दल नगर संयोजक दिलीप शर्मा को फैजाबाद अयोध्या क्षेत्र के स्थानीय कार्यकर्ताओ की गिरफ्तारी होने पर प्रबंधन की दृष्टि से कारसेवा हेतु 15 दिवस पूर्व पहुंचाया गया था। जहां उन्होने लूंगी बनियान में फल कैले, मुंगफली बेचकर सूचनाओं का आदान-प्रदान किया और ग्रामीण क्षेत्र में दहशत के वातावरण में भोजन प्रबंधन न होने पर भूखे रहकर भी जनजागरण किया।