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दिलीप घोष ने उठाए सवाल, पश्चिम बंगाल में गुटबाजी और भितरघात से हारी BJP

June 10, 2024

कोलकाता (Kolkata)। पश्चिम बंगाल से लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections) में 30 से अधिक सीटों की जीत का दावा करने वाली भाजपा (BJP) की हार की वजहें सामने आने लगी हैं। भाजपा के लोकसभा प्रत्याशियों की लिस्ट आने के साथ ही पार्टी के अंदर चल रही गुटबाजी व भितरघात की बात भी सामने आने लगी थी।

मेदिनीपुर से सांसद और भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष की सीट बदले जाने पर सवाल उठे थे, लेकिन उस समय पार्टी अनुशासन के नाम पर इस बात को दबा दिया गया। हार के बाद अब यह बात साफ हो गई है कि पार्टी के अंदर चल रही गुटबाजी और भितरघात ही हार का कारण बनी, क्योंकि अब पार्टी के लोग ही यह आरोप लगा रहे हैं।

भाजपा पिछली बार के मुकाबले इस बार 18 से 12 पर सिमट गई, जबकि 2026 में बंगाल में विधानसभा चुनाव भी होने हैं। माना जा रहा है कि हार की समीक्षा के बाद सांगठनिक स्तर पर बड़े बदलाव किए जाएंगे। इस बीच, अपनी हार के बाद मुखर रहे दिलीप घोष ने शनिवार को अपने एक्स हैंडल पर केवल तीन वाक्य ‘ओल्ड इज गोल्ड’ लिखकर चर्चाओं का बाजार गर्म कर दिया। राजनीतिक जानकार मान रहे हैं कि घोष ने इन तीन वाक्यों से बंगाल भाजपा की पूरी कहानी बयां कर दी।


घोष की सीट बदलना पड़ा महंगा
मेदिनीपुर से सांसद दिलीप घोष की सीट बदलना भाजपा के लिए काफी महंगा पड़ गया। घोष को वर्धमान-दुर्गपुर भेज दिया गया। उनकी जगह आसनसोल से भाजपा विधायक अग्रिमित्रा पॉल को मेदिनीपुर में उतारा गया। प्रत्याशी बदलाव को लेकर पार्टी के अंदर ही तमाम सवाल खड़े हुए थे।

बड़ा सवाल यह भी था कि किसके इशारे पर सीट बदली गई। तब आशंका जताई गई थी कि जीते हुए प्रत्याशी की सीट बदलने से नुकसान हो सकता है, और यह बात सही साबित हुई। घोष दुर्गपुर सीट पर तृणमूल के कीर्ति आजाद से 1 लाख 35 हजार से अधिक वोटों से हार गए। उधर, भाजपा मेदिनीपुर की सीट भी हार गई।




मेरी सीट क्यों बदली गई, पार्टी से जवाब नहीं मिला : घोष
हार के बाद से ही गुटबाजी के खिलाफ मुखर रहे घोष ने कहा, वे वर्धमान-दुर्गपुर सीट से नहीं उतरना चाहते थे, लेकिन पार्टी के कहने पर लड़े। उनकी सीट क्यों बदली गई, इसका जवाब पार्टी से अभी तक नहीं मिला है। बता दें कि दिलीप घोष के अध्यक्ष पद पर रहते हुए ही भाजपा बंगाल में मजबूत हुई। पार्टी का वोट प्रतिशत 40% तक पहुंचा था। 2014 में भाजपा के केवल दो सांसद थे, पर 2019 में यह संख्या 18 तक पहुंच गई। उनके नेतृत्व में ही बंगाल में विस चुनाव लड़ा और तीन से पार्टी 77 तक पहुंची।

राजमाता अमृता राय बोलीं-पार्टी नेताओं के कारण हुई हार
कृष्णानगर सीट से हारीं राजमाता अमृता राय ने भी हार का ठीकरा प्रदेश नेतृत्व पर फोड़ा है। उन्होंने कहा, मैंने पार्टी नेताओं की बात मानकर बड़ी गलती की। अगर मैं अपनी बुद्धि से काम करती, तो हार नहीं होती। उन्होंने यह भी कहा, अगर मैं आगे राजनीति करूंगी, तो अपने विवेक से, दूसरों की बात नहीं सुनूंगी।

प. बंगाल भाजपा के अंदर चल रही गुटबाजी के बीच शनिवार को पार्टी नेता और नेता प्रतिपक्ष शुभेंदु आधिकारी ने किसी का नाम लिए बिना कहा, जो लोग पोस्ट कर रहे हैं, जो ज्ञान दे रहे हैं, उन्हें अतीत का ज्ञान ही नहीं है।

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