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    नामांतरण के लिए विज्ञप्ति से लेकर हाजिरी तक की दुविधा

  • February 26, 2021

    अग्निबाण द्वारा नामांकन दुविधा प्रकाशित करते ही पीडि़तों का दर्द फट पड़ा
    इंदौर। किसानों के लिए भूमि का नामांतरण Nomination) और बटांकन सबसे अहम जरूरत होती है। सरकार नामांतरण की प्रक्रिया के सरलीकरण के लिए जहां रजिस्ट्री से सीधे नामांतरण का प्रस्ताव बना रही है, वहीं जिला प्रशासन (District Administration) उसे और जटिल किए जा रहा है। पिछले दिनों अग्निबाण ने नामांतरण को लेकर जिला प्रशासन के सवालों की फेहरिस्त प्रकाशित की थी। इसके बाद पाठकों ने अपना दर्द उंड़ेलते हुए और भी ऐसी-ऐसी समस्याएं बताईं, जो प्रशासन द्वारा बेवजह खड़ी की गई हैं।


    कृषि भूमि (Agricultural land) की खरीदी-बिक्री के पहले रजिस्ट्री के वक्त तमाम दस्तावेज क्रेता-विक्रेता को दाखिल कराना होते हैं। उनमें सबसे अहमद दस्तावेज राजस्व अभिलेख की बी-1, बी-2 की प्रतिलिपि होती है, जिससे स्वामित्व का पता चलता है। इसके बाद ही जमीन का पंजीयन हो पाता है, लेकिन रजिस्ट्री के बाद राजस्व अभिलेखों में भूमि का नामांतरण कराने के लिए जब क्रेता प्रशासन को आवेदन करता है, तब फिर उन्हें दस्तावेजों की बाध्यता के साथ समाचार पत्रों में विज्ञप्ति के प्रकाशन तक का नियम बना रखा है। जबकि भूमि क्रय करने के पहले ही क्रेता जाहिर सूचना का प्रकाशन करवाता है। इसके अलावा विक्रेता को हाजिर कराने का अजीब प्रावधान क्रेताओं को संकट में डालता है, क्योंकि जमीन बेचने के बाद यदि विक्रेता के मन में लालच आ जाए तो क्रेता संकट में पड़ सकता है। भूमि विक्रय के बाद नामांतरण प्रक्रिया में विक्रेता का कोई भूमिका नहीं बचती, लेकिन प्रशासन का नियम लोगों को बाध्य करता है।


    कलेक्टर ने दलाल हटा दिए, अब लोग परेशान
    जिस तरह पंजीयन के लिए सर्विस प्रोवाइडर (Service Provider) होते हैं, उसी तरह तहसील कार्यालय में शासकीय कार्यों के लिए सर्विस देने वाले लोगों को दलाल की संज्ञा देकर पिछले दिनों कार्रवाई करते हुए कलेक्टर ने उन्हें हटा तो दिया, लेकिन अब परेशानी यह है कि जो लोग तहसील कार्यालय के कामों को नहीं जानते उन्हें इन तमाम दुविधाओं से जूझना पड़ रहा है। शपथ पत्र से लेकर विज्ञप्ति प्रकाशन एवं हाजिरी से लेकर पटवारी, तहसीलदार की तिमारदारी तक आम आदमी को करना पड़ रही है।


    पाठकों ने बताई नामांतरण प्रक्रिया की और भी जटिलताएं
    1. ऑनलाइन आवेदन करना होता है।
    2. नामांतरण फार्म जिस पर क्रेता, विक्रेता के हस्ताक्षर होते हैं, के साथ भूमि का खसरा, शपथ पत्र, आदि दस्तावेज जमा करवाने होते हैं।
    (जब रजिस्ट्री के समय भी शपथ पत्र देना पड़ता है, तो फिर नामांतरण में अलग से शपथ पत्र की क्या आवश्यकता है?)
    3. दैनिक समाचार पत्र में विज्ञप्ति का प्रकाशन क्रेता को करवाना होता है।
    (जब क्रेता, विक्रेता ने राजी-मर्जी से रजिस्ट्री कर दी है तो फिर विज्ञप्ति की आवश्यकता क्या है?)
    4. तहसील कार्यालय से एसएमएस पर तारीख पर हाजिर होने की सूचना प्राप्त होने पर तहसीलदार के समक्ष हाजिर होना पड़ता है।
    (जबकि निर्धारित तारीख पर तहसीलदार कार्यालय पर प्राय: मिलते नहीं हैं। )
    5. पटवारी की रिपोर्ट के बाद तहसीलदार द्वारा नामांतरण आदेश जारी होने के बाद ऋण पुस्तिका बनवाने हेतु निर्धारित शुल्क खजाने में जमा करवाकर फिर पटवारी से सम्पर्क करो तथा ऑनलाइन भी रिकार्ड अपडेट हुआ कि नहीं इसकी चिंता करो, क्योंकि अकसर ऑनलाइन रिकार्ड अपडेट करने में लापरवाही होती है।
    इसके अलावा भेंटपूजा करना तो अनिवार्य है। इतना सब करने के बाद किसी का नामांतरण हो जाए तो समझो गंगा नहा लिए। ऐसा लगता है कि जमीन खरीदना कोई अपराध करने जैसा कार्य हो गया है, जबकि पंजीयन शुल्क मध्यप्रदेश में 12.5 प्रतिशत तक है, जो कि पूरे देश में सर्वाधिक है।

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