इन्दौर। उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन देशभर में कांग्रेस सहित इंडिया गठबंधन ने किया और कांग्रेस ने तो 100 प्रतिशत अधिक सफलता पिछले चुनाव की तुलना में हासिल की। गत लोकसभा चुनाव में उसे मात्र 52 सीटें मिलीं थीं तो इस बार यह आंकड़ा लगभग दोगुना यानी 100 तक पहुंच गया, लेकिन मप्र में अवश्य कांग्रेस को भीषण गुटबाजी और कमजोर संगठन का खामियाजा भुगतना पड़ा और जो इकलौती सीट छिंदवाड़ा की थी, वह भी गंवा दी। नतीजतन दिग्विजयसिंह, कमलनाथ जैसे वरिष्ठों की चुनावी राजनीति अब खत्म हो गई।
कांग्रेस के दिग्गज नेता और दस साल तक प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे दिग्विजयसिंह को पार्टी ने राजगढ़ से चुनाव लड़ाया और उन्होंने भी अपनी मेहनत में कोई कसर नहीं छोड़ी, मगर 1 लाख 46 हजार से अधिक मतों से उन्हें पराजित होना पड़ा। पिछला लोकसभा चुनाव भी दिग्गी भोपाल से लड़े थे और साध्वी प्रज्ञा ने उन्हें हराया था। इसी तरह कांतिलाल भूरिया भी रतलाम से पराजित हो गए तो कमलनाथ ने विधानसभा का चुनाव तो लड़ा और जीता, मगर उन्होंने अपनी छिंदवाड़ा सीट बेटे नकुलनाथ के हवाले कर दी थी, जहां से वे पिछले लोकसभा चुनाव में जीतकर आए थे और बाकी 28 सीटें भाजपा के खाते में गई थीं, मगर इस बार सभी 29 सीटें भाजपा को मिल गईं और छिंदवाड़ा से नकुलनाथ को भी 1 लाख 13 हजार वोट से हार का मुंह देखना पड़ा।
इसका पूरा खामियाजा हालांकि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी को भुगतना पड़ेगा, मगर कल कांग्रेस ने देशभर में अच्छा प्रदर्शन किया और राहुल गांधी का कद भी बढ़ गया तो चूंकि जीतू पटवारी की राहुल से निकटता है और उन्हीं के आशीष फलस्वरूप जीतू पटवारी को दिग्गी-कमलनाथ सहित अन्य दिग्गजों की नाराजगी के बावजूद राहुल ने ही प्रदेश अध्यक्ष बनाया, मगर जीतू पटवारी का बड़बोलापन और संगठन को मजबूत न कर पाने की कमजोरी के चलते प्रदेश में कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली और हरल्ली कांग्रेस का जो कलंक है, वह नहीं मिट सका, जबकि अन्य राज्यों में कांग्रेस ने बेहतर प्रदर्शन किया, मगर ऐसा लगता है कि राहुल की नजदीकी का फायदा जीतू को मिलेगा और वे अध्यक्ष के पद पर बने रह सकते हैं। हालांकि विशेषज्ञों का माना है कि अध्यक्ष पद के लायक जीतू पटवारी नहीं हैं और कांग्रेस के दिल्ली दरबार को किसी वरिष्ठ या अनुभवी और सबको साथ लेकर चलने वाले व्यक्ति को प्रदेश की कमान सौंंपना चाहिए।
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved