नई दिल्ली। तृणमूल कांग्रेस (Trinamool Congress) ने स्पष्ट कर दिया है कि वह पश्चिम बंगाल (West Bengal) की सभी लोकसभा सीटों पर अकेले चुनाव लड़ेगी। आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) पंजाब की सभी सीटों पर अकेले चुनाव लड़ेगी, लेकिन दिल्ली, गुजरात, गोवा, हरियाणा, चंडीगढ़ (Delhi, Gujarat, Goa, Haryana, Chandigarh) में कांग्रेस के साथ मिलकर लड़ेगी। इसके लिए दोनों दल के नेताओं ने शनिवार को सीट बंटवारे की घोषणा की। आम आदमी पार्टी और कांग्रेस (Aam Aadmi Party and Congress) की इस प्रेस कांफ्रेंस में इंडिया गठबंधन का कोई और साझेदार शामिल नहीं हुआ। जब तृणमूल कांग्रेस ने पश्चिम बंगाल में अकेले सभी सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा की तब भी गठबंधन में शामिल कोई दल वहां मौजूद नहीं था।
ऐसे में अब बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि विपक्ष का यह कैसा गठबंधन है, जो सब अलग-अलग घोषणाएं कर रहे हैं। जिस राजनीतिक दल का जहां प्रभाव है, वह अपने इलाके में गठबंधन के किसी सहयोगी दल को एक भी सीट देने को तैयार नहीं है। कहा तो यहां तक जा रहा है कि गठबंधन का राष्ट्रीय स्वरूप बचेगा भी या नहीं? मौजूद सूरत-ए-हाल तो यही गवाही दे रहे हैं। आम आदमी पार्टी और कांग्रेस की आज की संयुक्त घोषणा में भी यह बात लागू होती है। कारण साफ है। जो आम आदमी पार्टी दिल्ली, हरियाणा, चंडीगढ़, गुजरात और गोवा में कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ने को तैयार है, वह पंजाब में कांग्रेस को एक भी सीट नहीं दे रही है। इस राज्य में दोनों अलग-अलग चुनाव लड़ेंगे। अभी तक जो सीन बना है, वह इस बात का संकेत देने को पर्याप्त है कि गठबंधन की दीवारें दरक रही हैं या यूं भी कह सकते हैं कि जिस राज्य में जिस दल का प्रभाव ज्यादा है, वहां वह कांग्रेस को कुछ सीटें देगी।
साल 2019 के चुनाव में दिल्ली की सभी सातों सीटों पर भारतीय जनता पार्टी ने जीत दर्ज की थी। इस चुनाव में दिल्ली में भाजपा को कुल 56.9 फीसदी वोट मिले थे। 22.6 फीसदी वोट पाने वाली कांग्रेस को कोई सीट नहीं मिली थी और मामूली वोट पाने वाली आम आदमी पार्टी भी शून्य पर थी। इसके बावजूद आम आदमी पार्टी ने दिल्ली की सिर्फ तीन सीटें कांग्रेस के लिए छोड़ी है। चार पर खुद चुनाव लड़ेगी। पंजाब में साल 2019 चुनाव में 40.6 फीसदी वोट और आठ सीटों पर जीत दर्ज करने वाली कांग्रेस को आम आदमी पार्टी ने वहां एक भी सीट न देते हुए अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है, जबकि उसे सिर्फ 7.5 फीसदी वोट मिले थे और एक सीट पर जीत दर्ज की थी। यह अपने आप में हास्यास्पद है कि हरियाणा, दिल्ली, चंडीगढ़ में साथ चुनाव लड़ने वाली कांग्रेस-आप, पंजाब में एक-दूसरे के खिलाफ आग उगलेंगी।
समाजवादी पार्टी ने उत्तर प्रदेश की 80 सीटों में से 17 कांग्रेस को दी है या यूं भी कह सकते हैं कि दोनों ने सहमति से यह बंटवारा किया है। पश्चिम बंगाल में सभी सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुकी तृणमूल कांग्रेस ने असम में दो और मेघालय में भी एक सीट पर लड़ने की घोषणा की है। जानकार दावा कर रहे हैं कि असम-मेघालय के मुद्दे पर कांग्रेस-टीएमसी में बातचीत चल रही है। उधर, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश को अभी भी उम्मीद है कि ममता बनर्जी के दल से कांग्रेस की बातचीत खत्म नहीं हुई है। वे कहते हैं कि 26 राजनीतिक दल अभी भी गठबंधन का हिस्सा हैं और सब एकजुट हैं। ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल अनेक बार विभिन्न मंचों से यह दावा कर चुके हैं कि वे विपक्षी गठबंधन का हिस्सा हैं। मोदी को सत्ता से हटाने को कोई भी कुर्बानी देंगे लेकिन सीट शेयरिंग पर वह जज्बा नहीं दिखाई दे रहा है, जो जरूरी समझा जा रहा है।
उधर, महाराष्ट्र में विपक्षी गठबंधन का महत्वपूर्ण हिस्सा उद्धव ठाकरे ने हाल ही में पीएम मोदी की तारीफ में कसीदे पढ़े थे, ऐसा तब जब महाराष्ट्र में गठबंधन दल ने सीटों पर भी बातचीत को अंतिम रूप दे दिया है। लेकिन मोदी की तारीफ के बाद उद्धव को लेकर राजनीतिक गलियारों में तरह-तरह के सवाल उठा रहे हैं। ध्यान रहे कि शिवसेना और उद्धव ठाकरे ने साल 2019 के चुनाव में भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। बाद में भाजपा ने शिवसेना को दो फाड़ कर दिया और विरोधी गुट के नेता एकनाथ शिंदे भाजपा के ही समर्थन से आज सीएम हैं। विपक्षी गठबंधन की नींव रखने वाले नीतीश कुमार और जयंत चौधरी एनडीए पहुंच चुके हैं। आज कांग्रेस की स्थिति यह है कि उसे यूपी, बिहार, झारखंड, तमिलनाडु, महाराष्ट्र जैसे राज्य में क्षेत्रीय दलों की कृपा पर ही सीटें मिलने जा रही हैं, जो गठबंधन की मजबूती को कमजोर करते हैं। देखना रोचक होगा कि आगे गठबंधन क्या रुख लेता है?
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