नई दिल्ली (New Delhi) । सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा है कि उपराज्यपाल (Lieutenant Governors) और राज्यपाल (Governors) की शक्तियां (Powers) पूरी तरह से अलग है। शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) में पार्षदों को मनोनीत करने की उपराज्यपाल की शक्ति को बहाल रखने वाले अपने फैसले में की है।
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली तीन जजों की बेंच ने सोमवार को यह फैसला पारित किया था। इसमें कहा गया था कि उपराज्यपाल दिल्ली नगर निगम में पार्षदों को मनोनीत करने के लिए दिल्ली सरकार की कैबिनेट की सहायता और सुझाव को मानने के लिए बाध्य नहीं हैं। मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर इस फैसले को अपलोड किया गया। इसमें कहा गया है कि ‘उपराज्यपाल की शक्ति’ राज्यों के राज्यपाल की शक्ति से पूरी तरह से भिन्न है।
राज्यपाल को मंत्रिपरिषद की सलाह की आवश्यकता
सुप्रीम कोर्ट न कहा कि अनुच्छेद 163 के तहत राज्यपाल की विवेकाधीन शक्ति और अनुच्छेद 239एए (4) के तहत उपराज्यपाल की विवेकाधीन शक्ति के बीच स्पष्ट अंतर है। अनुच्छेद 163 के तहत राज्य के राज्यपाल को मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर कार्य करने की आवश्यकता होती है, सिवाय इसके कि जहां तक उसे इस संविधान के तहत अपने कार्यों या उनमें से किसी को अपने विवेक से करने की आवश्यकता है।
उपराज्यपाल अपने विवेक से कार्य करेंगे
बेंच ने कहा है कि जहां तक उपराज्यपाल का सवाल है तो अनुच्छेद 239एए(4) के तहत अपवाद यह है कि वह अपने विवेक से कार्य करेंगे। अनुच्छेद 239एए एनसीटीडी की विशिष्ट स्थिति को ध्यान में रखता है और इसलिए विवेक के प्रयोग के लिए एक विशिष्ट विशेषता के रूप में कानून के जनादेश को अपनाता है।
एमसीडी में समितियों का गठन हो भाजपा
भाजपा ने एल्डरमैन पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद एमसीडी में समितियों के गठन की मांग की है। भाजपा प्रवक्ता प्रवीण शंकर कपूर ने कहा कि आप को अब गंदी राजनीति छोड़ देनी चाहिए। हम उम्मीद करते हैं कि अनुसूचित जाति के मेयर के चुनाव के साथ वार्ड समिति, स्थायी समिति और वैधानिक समितियों के गठन को अनुमति मिलेगी।
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