नई दिल्ली: इस साल सितंबर में ममता बनर्जी ने सीबीआई, ईडी और आयकर जैसी केंद्रीय एजेंसियों द्वारा विपक्षी नेताओं पर की गई छापेमारी के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दोषी ठहराने से इनकार कर दिया. इसी के बाद से उनके रुख में बीजेपी के प्रति नरमी के कयास लगाए जाने लगे.17 दिसंबर को केंद्रीय मंत्री अमित शाह से मिलने और 30 दिसंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ एक समारोह में मंच साझा करने की उनकी पुष्टि के बाद इस चर्चा को और अधिक बल मिल गया है.
एक साल पहले तक 2024 लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री को घेरने के लिए विपक्षी एकता की धुरी बनने की ख्वाहिश रखने वाली नेता के रुख में इस तरह की नरमी ने सभी राजनीतिक दलों के नेताओं को उलझा कर रख दिया है.पिछले साल मई में पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों में टीएमसी की शानदार जीत के तुरंत बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने खुद को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ एक विश्वसनीय चुनौती के रूप में पेश किया और भाजपा पर आक्रामक हमले किये.
समर्थन के लिए जोरदार अभियान
उन्होंने दूसरे विपक्षी नेताओं का समर्थन मांगने के लिए एक जोरदार अभियान शुरू किया और दिल्ली और मुंबई सहित कई राज्यों की राजधानियों का दौरा किया. उन्होंने कांग्रेस को भाजपा के विकल्प के रूप में खड़े होने में असमर्थ होने की बात कही और उसकी खिल्ली उड़ाई. हालांकि यह अभियान विफल हो गया क्योंकि विपक्षी नेता कांग्रेस को विपक्षी एकता की धुरी बनने से अलग रखने के ममता बनर्जी की योजना से उत्साहित नहीं दिखे.
अपने प्रयासों के प्रति भारी विरोधी प्रतिक्रिया को भांपते हुए ममता दीदी ने धीरे-धीरे विपक्ष को राष्ट्रीय स्तर पर एक मंच पर लाने की अपनी महत्वाकांक्षी योजना से हाथ खींच लिया और अपने राज्य पर ध्यान केंद्रित करने का फैसला किया.हालांकि, भाजपा पर उनके तेवर आक्रामक रहे. राज्य में अपनी पार्टी के नेताओं पर केंद्रीय एजेंसियों द्वारा की गई छापेमारी से वह विशेष रूप से नाराज थीं. उन्होंने इस ऑपरेशन को टीएमसी पर शिकंजा कसने के लिए मोदी सरकार द्वारा शुरू की गई राजनीतिक बदले की कार्रवाई साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी.
ममता ने खोई अपनी आक्रामकता
हालांकि, हाल के महीनों में राजनीति के जानकारों ने पाया कि ममता बनर्जी ने भाजपा के खिलाफ अपनी आक्रामकता स्पष्ट रूप से खो दी है. जानकार आश्चर्य कर रहे हैं कि ममता बनर्जी का नरम रुख संसाधनों की कमी झेल रही पश्चिम बंगाल सरकार को केंद्र से सहायता दिलाने के लिए है या उन्हें भविष्य में दागी टीएमसी नेताओं के खिलाफ और कठोर कार्रवाई का डर है.प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 30 दिसंबर को गार्डन रीच नेवल बेस पर एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने वाले हैं. ममता बनर्जी ने इस कार्यक्रम में शामिल होने की सहमति दे दी है.
अमित शाह पर साधा था निशाना
17 दिसंबर को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पूर्वी क्षेत्रीय परिषद की बैठक बुलाने के लिए पश्चिम बंगाल का दौरा किया और उसके बाद मुख्यमंत्री के साथ बैठक की. यह बैठक महत्वपूर्ण रही क्योंकि हाल ही में ममता बनर्जी ने कई मामलों में पश्चिम बंगाल के तृणमूल कांग्रेस के नेताओं को “परेशान” करने के लिए केंद्रीय एजेंसियों के कथित दुरुपयोग को लेकर अमित शाह पर निशाना साधा है.
बनर्जी और शाह ने राज्य सचिवालय की 14वीं मंजिल पर मुख्यमंत्री के कक्ष में 15 मिनट तक बैठक की. बैठक के लिए वैसे तो आधिकारिक एजेंडा केंद्र सरकार द्वारा पश्चिम बंगाल के बकाये पर चर्चा बताया गया. केंद्र ने इस साल जनवरी से पश्चिम बंगाल को मनरेगा के पैसे का भुगतान नहीं किया है. यह बकाया राशि 6,000 करोड़ रुपये से अधिक है. ममता बनर्जी ने केंद्रीय गृह मंत्री से फंड जारी करने का आग्रह किया.
पश्चिम बंगाल के पैसे को रोके जाने के केंद्र के फैसले ने राज्य सरकार के कामकाज को बुरी तरह से प्रभावित किया है और मुख्यमंत्री अपनी सरकार पर से वित्तीय बोझ कम करने के लिए प्रधानमंत्री और केंद्रीय गृह मंत्री से मदद लेने की कोशिश कर रही हैं.विपक्ष का आरोप है कि इस साल की शुरुआत में कथित स्कूल नौकरी घोटाला सामने आने के बाद से ममता बनर्जी बैकफुट पर हैं. उन पर भाजपा के साथ राजनीतिक सेटिंग करने की कोशिश का आरोप लगाया जा रहा है ताकि केंद्रीय एजेंसियां हाथ पीछे खींच लें.
बंगाल से कैबिनेट मंत्री गिरफ्तार
शिक्षण घोटाले के सिलसिले में पश्चिम बंगाल के एक कैबिनेट मंत्री को गिरफ्तार किया गया है. नतीजतन, ममता बनर्जी को अपने मंत्रिमंडल में फेरबदल करने के लिए मजबूर होना पड़ा.मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी नेता सुजान चक्रवर्ती ने कहा कि मुख्यमंत्री अब प्रधानमंत्री और गृह मंत्री से मिलने को उत्सुक हैं क्योंकि ये दोनों ही टीएमसी के डूबते जहाज को बचा सकते हैं.
बनर्जी के भतीजे और सांसद अभिषेक बनर्जी सहित कई टीएमसी नेता जांच एजेंसियों की जांच के दायरे में हैं. अभिषेक को ममता बनर्जी का राजनीतिक उत्तराधिकारी माना जाता है और अगर उन पर कोई बड़ी कार्रवाई होती है या उन्हें गिरफ्तार किया जाता है तब टीएमसी का भविष्य खतरे में पड़ सकता है. तृणमूल के वरिष्ठ मंत्री पार्थ चटर्जी के साथ उनकी महिला मित्र अर्पिता मुखर्जी जेल में हैं और तृणमूल के एक दूसरे वरिष्ठ पदाधिकारी अनुब्रत मंडल भी सीबीआई की जाल में फंसे हुए हैं. ममता के पास विशेष रूप से खुद को कमजोर महसूस करने का बड़ा कारण है. खासकर तब जब प्रवर्तन निदेशालय का पूरा ध्यान सीधे तौर पर उनके परिवार पर केंद्रित है.
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