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    सही साबित हुई भारत की आशंका? शेख हसीना की सत्ता गिरने के बाद बांग्लादेश ने उठाए दो बड़े कदम

  • August 30, 2024

    नई दिल्ली: बांग्लादेश (Bangladesh) में पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना (Former Prime Minister Sheikh Hasina) की सत्ता गिरने के बाद नोबेल पुरस्कार विजेता प्रो. मोहम्मद यूनुस फिलहाल वहां की केयरटेकर सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं. जबसे उन्होंने बांग्लादेश की कमान संभाली है, तब से एक के बाद एक कट्टरपंथी संगठनों पर लगे बैन हट रहे हैं और सजायाफ्ता आतंकी जेल से रिहा हो रहे हैं. पड़ोसी देश में ये हालात भारत के लिए बेहद चिंता की बात है. मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार ने बुधवार को देश की मुख्य इस्लामिक पार्टी जमात-ए-इस्लामी और उसके गुटों पर से प्रतिबंध हटाया. इससे ठीक दो दिन पहले 26 अगस्त, सोमवार को उसने अंसारुल्लाह बांग्ला टीम (एबीटी) के प्रमुख जशीमुद्दीन रहमानी को भी पैरोल पर रिहा कर दिया. कहा गया है कि एबीटी के तार खूंखार आतंकवादी संगठन अल-कायदा से जुड़े हैं. रिपोर्ट्स के मुताबिक, एबीटी भारत में आतंक फैलाने की नाकाम साजिशें रचता रहा है.

    रहमानी को बांग्लादेशी ब्लॉगर राजीब हैदर की हत्या के लिए उकसाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. हैदर की ढाका में उसके घर के सामने हत्या कर दी गई थी. रहमानी को 2013 और 2016 के बीच कई धर्मनिरपेक्ष ब्लॉगर्स और पत्रकारों की टार्गेट किलिंग में भी शामिल होने का भी आरोपी बनाया गया था जिसकी एबीटी ने जिम्मेदारी ली थी. विशेषज्ञों का कहना है कि एबीटी भारत में जिहादी नेटवर्क बनाने का प्रयास कर रहा है और नई दिल्ली को इस बारे में सर्तक होने की जरूरत है. शेख हसीना के शासन के दौरान 2015 में रहमानी के एबीटी को बांग्लादेश में प्रतिबंधित कर दिया गया था. बाद में इसने खुद को अंसार अल-इस्लाम के रूप में दोबारा स्थापित किया जिसे 2017 में फिर से प्रतिबंधित कर दिया गया. एबीटी के प्रमुख जशीमुद्दीन रहमानी की रिहाई भारत के लिए बेहद चिंता का विषय है क्योंकि रहमानी का गुट स्लीपर सेल की मदद से भारत में जिहादी नेटवर्क स्थापित करने की कोशिश करता रहा है. जाहिर है कि अब उसका समूह भारत में और तेजी से अपना जाल फैलाने की कोशिश करेगा.

    अतीत में अंसारुल्लाह बांग्ला टीम से जुड़े कई आतंकवादियों को भारत में गिरफ्तार किया गया था. एबीटी से जुड़े दो आतंकवादियों बहार मियां और रेयरली मियां को इसी साल मई में असम पुलिस ने गुवाहाटी रेलवे स्टेशन से गिरफ्तार किया था. दावा किया गया है कि एबीटी के तार दक्षिण एशिया में अल-कायदा की विचारधारा और मकसद को बढ़ाने के लिए स्थापित किए गए संगठन अल-कायदा इन द इंडियन सबकॉन्टिनेंट (एक्यूआईएस) से जुड़े हैं जो भारत में प्रतिबंधित है. सूत्रों ने बताया कि पाकिस्तान स्थित लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) ने कथित तौर पर भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में आतंकवादी हमलों को अंजाम देने के लिए एबीटी के साथ गठजोड़ किया है. सूत्रों के अनुसार, एबीटी के साथ लश्कर का सहयोग 2022 से शुरू हुआ है जब उसने भारत में हमले शुरू करने के उद्देश्य से बंगाल में एक बेस स्थापित किया था. 2022 के खुफिया इनपुट से यह भी संकेत मिला था कि उस समय लगभग 50 से 100 एबीटी कैडर त्रिपुरा में घुसपैठ करने की योजना बना रहे थे. असम पुलिस ने कई मौकों पर एबीटी आतंकवादियों को गिरफ्तार किया जिससे पूर्वोत्तर राज्य में नेटवर्क स्थापित करने की आतंकवादी समूह की योजना नाकाम हो गई.


    बांग्लादेश की प्रधानमंत्री के रूप में आवामी लीग की नेता शेख हसीना हमेशा भारत की सुरक्षा चिंताओं को लेकर गंभीर रही थीं. हसीना के शासन में बांग्लादेश में उन भारत विरोधी ताकतों पर कार्रवाई की गई, जिन्होंने 2001 से 2006 के बीच बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी-जमात-ए-इस्लामी शासन के दौरान बांग्लादेश को एक सुरक्षित पनाहगार बना रखा था. अब चूंकि हिंसक राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शनों के बाद शेख हसीना शासन सत्ता से बाहर हो चुकी हैं तो भारत का डर बढ़ना लाजिमी है. पांच अगस्त को हसीना के बांग्लादेश छोड़ने के बाद छह अगस्त को ही शेरपुर (उत्तरी बांग्लादेश, मेघालय की सीमा से सटा हुआ) की हाई सिक्योरिटी वाली जेल पर धावा बोलकर हथियारों से लैस भीड़ ने कई आतंकवादी संगठन के प्रमुखों को रिहा करा लिया था. इस दौरान जेल से 500 से अधिक कैदी भाग निकले, उनमें एक एबीटी का इकरामुल हक उर्फ ​​अबू तल्हा भी था जो भारत में आतंकवादी गतिविधियों में शामिल रहा है. ​​अबू तल्हा को भारतीय एजेंसियों की खुफिया जानकारी के बाद 2023 में ढाका में गिरफ्तार किया गया था.

    आतकंवाद और राजनीतिक उथल-पुथल की मार झेल रहे भारत के पड़ोसी देश की ऐसी कई खबरें भले ही भारत में सुर्खियां नहीं बनीं लेकिन भारत के पूर्वोत्तर हिस्से के लिए बेहद गंभीर और चिंताजनक हो सकती हैं जिसका विकास एक स्थिर, सुरक्षित और मैत्रीपूर्ण बांग्लादेश पर काफी हद तक निर्भर करता है. पूर्व आईएएस राधा कृष्ण माथुर के थिंक टैंक ‘द सोसाइटी टू हार्मोनाइज एस्पिरेशंस फॉर रिस्पॉन्सिबल एंगेजमेंट’ (SHARE) ने भी भारत को बांग्लादेश में जेल तोड़कर भागे कट्टरपंथियों और आतंकवादियों के कारण पैदा होने वाले खतरे के प्रति आगाह किया है. SHARE ने चेतावनी देते हुए कहा है कि यह विशेष रूप से असम और त्रिपुरा के लिए एक बेहद चिंताजनक स्थिति है, जहां हाल के दिनों में ABT और JMB के कई मॉड्यूल का भंडाफोड़ किया गया है. 2022 और 2023 के बीच इन राज्यों से ABT के 60 से अधिक सदस्यों को गिरफ्तार किया गया, जिनमें 30 से अधिक बांग्लादेश से थे. मोहम्मद युनुस के नेतृत्व वाली केयरटेकर सरकार ने जमात-ए-इस्लामी पर से बैन हटाया है. इस पार्टी पर हिंसा और कट्टरपंथ को बढ़ावा देने का आरोप लगते रहे हैं. जबकि बांग्लादेश की केयरटेकर सरकार ने कहा है कि उन्हें उसके खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने का कोई सबूत नहीं मिला है.

    पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना की सरकार ने आतंकवाद विरोधी कानून के तहत जमात-ए-इस्लामी पार्टी को प्रतिबंधित किया था. पार्टी पर छात्रों के नेतृत्व वाले विरोध प्रदर्शनों के दौरान हिंसा भड़काने का आरोप लगाया गया था. प्रदर्शनों के हिंसक होने के बाद शेख हसीना को इस्तीफा देने और भारत भागने के लिए मजबूर होना पड़ा था. जमात ने हिंसा भड़काने के आरोप से इनकार किया और हसीना के प्रतिबंध को अवैध और असंवैधानिक बताया. बता दें कि अभी तक जमात बांग्लादेश में चुनाव नहीं लड़ सकती थी क्योंकि 2013 में एक अदालत ने यह कहकर उसे इलेक्शन में हिस्सा लेने से बैन कर दिया था कि एक राजनीतिक दल के रूप में उसकी छवि और पंजीकरण बांग्लादेश के धर्मनिरपेक्ष संविधान के लिए विरोधाभासी है. लेकिन बांग्लादेश में सरकार बदलने और बैन हटने के बाद पार्टी का इरादा अब चुनावों में शामिल होने का है. पार्टी के वकील शिशिर मोनिर ने कहा है कि पार्टी इस मुद्दे पर अगले सप्ताह की शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करेगी.

    भारत विरोधी बयानबाजी और पाकिस्तान समर्थक रुख के लिए मशहूर बांग्लादेश जमात-ए-इस्लामी के प्रमुख शफीकुर रहमान ने बैन हटने के बाद कहा कि उनकी पार्टी भारत के साथ स्थिर संबंध चाहती है लेकिन उन्होंने अपने बयान में यह भी साफ कर दिया कि नई दिल्ली को उनके देश के मामलों में दखल नहीं देना चाहिए. उन्होंने कहा कि जमात नई दिल्ली और ढाका के बीच घनिष्ठ संबंधों का समर्थन करती है लेकिन यह भी मानती है कि बांग्लादेश को ‘अतीत के बोझ को पीछे छोड़कर’ अमेरिका, चीन और पाकिस्तान जैसे देशों के साथ मजबूत और संतुलित संबंध बनाए रखना चाहिए. बांग्लादेश में हाल ही में आई विनाशकारी बाढ़ के लिए भी भारत को दोषी ठहराया गया है जिसे भारत ने सबूतों के साथ खारिज कर दिया है. इसलिए भारत विरोधी आतंकवादी जशीमुद्दीन रहमानी की रिहाई को एक अलग घटना के रूप में नहीं बल्कि एक योजना के हिस्से के रूप में देखा जा रहा है और यह भारत के लिए चिंता वाली बात है.

    हालांकि, बाद में बाढ़ के मुद्दे पर शफीकुर रहमान ने कहा कि बांधों से पानी छोड़े जाने के बारे में भारत और बांग्लादेश के बीच कम्युनिकेशन से इस भयावह स्थिति से काफी हद तक बचा सकता है. उन्होंने भविष्य में ऐसी समस्याओं को रोकने के लिए दोनों देशों के बीच बातचीत पर जोर दिया. शेख हसीना ने भारत विरोधी ताकतों पर नकेल कसी थी और इससे बांग्लादेश में जमात और पाकिस्तान समर्थक एक वर्ग अपने देश में भारत की भूमिका को संदेह की दृष्टि से देखने लगा था. वहां ये नैरेटिव सेट किया गया कि हसीना भारत के समर्थन से ही बांग्लादेश में सत्ता पर काबिज हैं. जनवरी में हसीना के फिर से आम चुनाव जीतते ही सोशल मीडिया पर भारतीय सामानों के बहिष्कार के आंदोलन चल पड़ा था.

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