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कांग्रेस किया खेला, मनोज तिवारी की टेंशन कन्हैया कुमार को उतारा?

April 15, 2024

नई दिल्‍ली (New Delhi)। लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections) के लिए कांग्रेस ने 10 नामों की 13वीं सूची जारी की है। लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस ने उत्तर पूर्वी दिल्ली से इस बार मनोज तिवारी (Manoj Tiwari) के खिलाफ कन्हैया कुमार (Kanhaiya Kumar) को उतार दिया है। कांग्रेस ने 13वीं लिस्ट में कुल 10 प्रत्याशियों का ऐलान किया है। दिल्ली की चांदनी चौक सीट से जेपी अग्रवाल, उत्तर पूर्वी दिल्ली से कन्हैया कुमार, उत्तर पश्चिम दिल्ली से उदित राज को टिकट दिया गया है। इसके अलावा पंजाब की 6 सीटों पर भी कांग्रेस ने अपने उम्मीदवारों का ऐलान किया है।

कुलमिलाकर कांग्रेस ने चुपके से उम्मीदवारों की एक और लिस्ट जारी कर भाजपा नेताओं की टेंशन बढ़ा दी. इलाहाबाद में उज्जवल रेवती रमण सिंह को उतारकर मुकाबला टफ बना दिया तो नॉर्थ ईस्ट दिल्ली से कन्हैया कुमार का ऐलान कर मनोज तिवारी की धुकधुकी बढ़ा दी. जी हां, ‘एंटी-नेशनल’ कहकर बदनाम करने की कोशिश के बावजूद कन्हैया कुमार की अपनी फॉलोइंग है. देश का एक बड़ा तबका खासकर युवा कन्हैया कुमार को पसंद करता है. वह भाजपा के खिलाफ खरा-खरा बोलते हैं. ऐसे में यह समझना जरूरी हो जाता है कि कन्हैया कुमार को ही कांग्रेस ने नॉर्थ-ईस्ट दिल्ली से टिकट क्यों दिया? वैसे भी, इस बार बिहार की उनकी पारंपरिक बेगूसराय सीट लेफ्ट के पास चली गई थी.

कन्हैया कुमार अपने तीखे बयानों से युवाओं को आकर्षित करते रहे हैं. हाल में एक इंटरव्यू में उन्होंने भाजपा पर हमला बोलते हुए कहा कि राम का नाम लेकर भाजपा नाथूराम के एजेंडे को फैला रही है. उन्होंने कहा कि व्यक्तिवाद परिवारवाद से कहीं ज्यादा खतरनाक है. नॉर्थ ईस्ट दिल्ली का इतिहास-भूगोल समझने से पहले कन्हैया कुमार के बारे में जान लेते हैं.



कौन हैं कन्हैया कुमार?
– PhD करने वाले कन्हैया कांग्रेस के नेता हैं. पहले वह सीपीआई में थे. कम्युनिस्ट पार्टी के टिकट पर ही उन्होंने पिछली बार 2019 में बेगूसराय से लोकसभा चुनाव लड़ा था. हालांकि हार गए थे.

– लालू प्रसाद यादव उन्हें पसंद नहीं करते या कहिए कि तेजस्वी के लिए बिहार में चुनौती मानते हैं. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यही वजह है कि इस बार बेगूसराय सीट पर ‘खेला’ हो गया.

– इस समय कन्हैया कुमार NSUI के प्रभारी हैं. पार्टी के लिए कई लोकसभा सीटों पर वह प्रचार कर रहे हैं.

– इससे पहले कन्हैया जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष थे. वहां राष्ट्रविरोधी नारों के मामले में उन्हें गिरफ्तार भी किया गया था. मामले को खूब भुनाया गया लेकिन पुलिस को कोई सबूत नहीं मिला.

JNU के नारे और एंटी-नेशनल का आरोप
उत्तर पूर्वी दिल्ली से उम्मीदवार बनाए गए कांग्रेस नेता कन्हैया कुमार पर JNU की एक छात्र रैली में राष्‍ट्रविरोधी नारे लगाने के आरोप लगे थे. देशद्रोह का मामला दर्ज किया गया. दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार भी किया. हालांकि देश विरोधी नारों के मामले में पुलिस उनके खिलाफ कोई सबूत पेश नहीं कर सकी. आखिर में उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया गया.

कन्हैया कुमार को भाजपा के नेता एंटी-नेशनल कहने लगे थे. हाल में कन्हैया ने इन आरोपों का जवाब देते हुए कहा कि अगर आप कुछ काम कर रहे हैं और वह सही है तो उस काम से जिनको फर्क पड़ता है, वे स्वाभाविक रूप से बुरा-भला ही कहेंगे. कोई अगर मुझे दुश्मन समझ रहा है तो मेरी प्रशंसा तो नहीं करेगा. मेरे बारे में वैसी बातें बोलेगा जिससे मुझे तकलीफ पहुंचे.

नॉर्थ ईस्ट दिल्ली से कन्हैया के आने की वजह
– नॉर्थ ईस्ट दिल्ली लोकसभा सीट का समीकरण समझिए तो यहां पूर्वांचल के लोगों की अच्छी खासी आबादी है. पूर्वी यूपी और बिहार के काफी लोग यहां रहते हैं. बड़ी संख्या में अनाधिकृत कॉलोनियां हैं, जहां प्रवासी रहते हैं.

– 2020 के दंगों के कारण नॉर्थ ईस्ट दिल्ली पूरी दुनिया में बदनाम रहा. इस बार यहां ध्रुवीकरण हो सकता है. यहां मुस्लिम आबादी वाले कई क्षेत्र हैं, जिसमें सीलमपुर, करावल नगर शामिल हैं. यहां करीब 21 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं. कांग्रेस का मानना है कि कन्हैया कुमार को इसका फायदा मिल सकता है.

भोजपुरी एक्टर और सिंगर होने के कारण मनोज तिवारी पूर्वांचलियों में काफी लोकप्रिय हैं. उनकी जबर्दस्त फैन फॉलोइंग हैं. उधर, कन्हैया कुमार के भी अपने चाहने वाले हैं. युवा उनके भाषणों को खूब सुनते हैं. वह युवाओं से संबंधित मुद्दों को जोरशोर से उठाते भी हैं. कांग्रेस को उम्मीद है कि मनोज तिवारी की फैन फॉलोइंग को कन्हैया कुमार ही चुनौती दे सकते हैं.

मुकाबला कांटे का होने वाला है. जी हां, मनोज तिवारी अपने स्टारडम और पूर्वांचल वोटों के कारण भाजपा में अलग अहमियत रखते हैं. दूसरी तरफ कांग्रेस में आने के बाद से कन्हैया कुमार राहुल गांधी के काफी करीब हो गए हैं. साफ है कि मनोज तिवारी vs कन्हैया कुमार फाइट होने से भाजपा के लिए अब जीत आसान नहीं रह गई है.

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