कभी तस्वीर से बाहर निकल कर बोल भी उठो,
हमेशा एक सा चेहरा लिए क्यूं तकते रहते हो,
जऱा होंटों को जुम्बिश और लफ्ज़़ों को रिहाई दो,
अकेला पड़ गया हूं मैं, जऱा मेरी सफ़ाई दो।
ये तस्वीर मरहूम रामचंद्र धनोतिया साब की है। आज इनकी दूसरी बरसी है। आज ही के दिन कोरोना के दूसरे दौर में धनोतिया साब इस फ़ानी दुनिया को अलविदा कह गए थे। बाकी उनके जाने के बाद भी उनके नेक कामो, फरिश्ता सिफत तबियत, सादगी और मआशरे (समाज) के लिए कुछ कर गुजरने की जद्दोजहद के लिए उन्हें हमेशा याद किया जाएगा। उन्होंने 85 बरस की उमर पाई। मध्यप्रदेश बनने से पहले सन 1955 में रामचंद्र धनोतिया मेहकमाये सेहत में सरकारी मुलाज़मत में आये। तब हेल्थ डायरेक्टरेट इंदौर में एमटीएच कंपाउंड में लगता था। पंडित द्वारकाप्रसाद मिश्र जब सीएम थे तब 1967 में डायरेक्टरेट ऑफ हेल्थ सर्विसेस का हेड आफिस भोपाल में ओल्ड सेक्रेटेरिएट में शिफ्ट हुआ था। रामचंद्र धनोतिया तभी से भोपाल आ गए थे। 1980 में मैं जब हेल्थ डायरेक्टरेट में मुलाज़मत में आया तब धनोतिया साब शायद अकाउंट्स सेक्शन में थे। निहायत खामोश तबियत। धीरे बोलने वाले। वक्त पे दफ्तर आने और अपने काम को संजीदगी से करने के लिए उन्हें जाना जाता था।
तब के हेल्थ डायरेक्टर डॉ. प्रकाशनारायन और डॉ. आरएन नागू साब भी रामचंद्र धनोतिया की बड़ी इज़्ज़त करते थे। सरकारी नोकरी से सुबुकदोष (रिटायर) होने से क़ब्ल (1991-92) ही उन्होंने खुद को खि़दमत-ए-ख़ल्क़ (समाज सेवा) में झोंक दिया था। अपनी शरीके हयात श्रीमती लीला धनोतिया से मुतास्सिर होके वे गायत्री शक्तिपीठ और युग निर्माण योजना से वाबस्ता हो गए। वे अखंड ज्योति और अन्य धार्मिक साहित्य को नियमित रूप से तकसीम करते। ज़रूरतमंद की मदद करने का उन्हें जुनून था। पेड़ लगाने का उन्हें बहुत शौक था। उन्होंने अपने दोस्तों के संग भदभदा विश्राम घाट पर खूब पौधे लगाए। धनोतिया साब खूब पैदल चलते। जहां आज स्मार्ट सिटी पार्क है उस पहाड़ी पर भी उन्होंने अपनी टीम के साथ बड़ी तादात में पौधे लगाए। वो पौधे आज तनावर दरख़्त बन चुके हैं। रिटायरमेंट के पहले ही उन्होंने गायत्री शक्तिपीठ में खि़दमत का जो अहद किया था उसे उन्होंने ताजि़न्दगी निभाया। वो अस्पतालों में दीन दुखियों की सेवा को पहुंच जाते। मालूम हो कि सूबे के सीनियर सहाफी (पत्रकार) राजेन्द्र धनोतिया उनके फज़ऱ्न्द हैं। आज मरहूम रामचंद्र धनोतिया के चारों सुपुत्र अपने वालिद के नक्शे क़दम पे चलते हुए गरीबों, बेसहाराओं और माज़ूर लोगों की मदद करते रहते हैं। उस खामोश तबीयत इंसान को खिराजे अक़ीदत।
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