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    बुन्देलखंड में आज भी लोकप्रिय है देवीगीत, नवरात्रि में सदियों से कायम है अचरी

  • October 21, 2023

    बुंदेली धरा में देवी गीत जिन्हे लोक भाषा में अचरी कहते हैं, आज भी बेहद लोकप्रिय है। वर्ष की दोनों नवरात्रियों में इनका गायन प्रचुर मात्रा में होता है, या यूं कहें कि बिना अचरी गायन के नवरात्रि उत्सव फीका नजर आता है। शक्ति की अधिष्ठायी मां जगदम्बे की कृपा प्राप्त करने के लिए उनकी महिमा का गुणगान लोग यहां देवी गीतों के माध्यम से भी करते हैं। देवी गीतों के गायक वैसे तो वर्ष पर्यन्त इसका गायन करते हैं, मगर नवरात्रि में इनका विशेष गायन हर गांव में अवश्य होता है। सामाजिक, धार्मिक व राजनैतिक बिन्दुओं पर देवी गीतों का चलन भी यहां देखने को मिलता है।

    देवी गीतों के गायक हरिहर पाठक बिदोखर ने बताया कि देवी गीतों से जहां मां जगदम्बे को प्रसन्न करने का सुअवसर मिलता है, वहीं गीतों का गायन और श्रवण करने वालों को आत्म शांति मिलती है। मां की उपासना, आस्था व समर्पण का यह एक बेहतर जरिया है। जिसका प्रचलन लंबे समय से चला आ रहा है।


    देवी गीतों के चर्चित गायक शिवनाथ सविता बताते हैं कि यहां अचरी गायन की प्रमुख तीन विधाएं प्रचलित हैं। ढर्रा, लहचारी और झूला। ढर्रा देवी गीतों के प्रारंभ में गाया जाता है, लहचारी का गायन सबसे अधिक होता है। झूला गाने की विधा थोड़ा कठिन है, इसे अत्यंत धीमी चाल से गाने से इसका गायन कम ही होता है। गायक शंकरलाल अनुरागी ने बताया कि देवी गीत समाज को प्रेरणा देने के सन्दर्भ में भी लिखे और गाए जाते हैं।

    रामसिंह पुजारी, अरविंद सोनी, विनोद कुमार गुप्ता, मनीराम प्रजापति, हीरालाल विश्वकर्मा, अवधनरेश कुशवाहा आदि गायकों ने बताया कि पूरे बुंदेलखंड में देवी गीत गायकों की अच्छी खासी संख्या विद्यमान है। कहीं कहीं तो सिर्फ़ नवरात्रि में ही इनका गायन होता है, मगर कुछ गांव ऐसे हैं जहां वर्ष पर्यन्त देवी गीत गाए जाते हैं। बिदोखर गांव में तो रामसिंह पुजारी व शिवनाथ सविता मंडल की ओर से प्रत्येक रविवार को गांव में कई जगह देवी गीतों का गायन कई वर्षों से निरंतर चल रहा है।

    देवी गीतों का वर्ष पर्यन्त गायन होने से जहां मां की आराधना का फल मिलता है, तो वहीं इस तालीम में नए नए गायक व वादक भी तैयार होते रहते हैं। इस प्रकार से बुंदेलखंड में देवी गीतों का महत्व आज भी बरकरार है। नवरात्रि में गांव-गांव में इनके गायन की परंपरा आज भी कायम है।

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