नई दिल्ली। 29 अगस्त की रात को भारतीय सेना की स्पेशल फ्रंटियर फोर्स की विकास रेजिमेंट के आगे चीनी सैनिक टिक नहीं सकी। ये एक ऐसी फोर्स है जो चीन बॉर्डर पर खुफिया मिलिट्री ऑपरेशन्स को अंजाम देती है। इस फोर्स की खास बात ये है कि इसमें भारत में रह रहे तिब्बती मूल के जवान भर्ती होते हैं जिन्हें माउंटेन वारफेयर में महारत हासिल होती है।
यह ऑपरेशन्स इतनी खुफिया है कि भारतीय सेना को भी इसकी मूवमेंट की कोई भनक नही होती। इस फोर्स के जवानों को बहादुरी दिखाने पर सार्वजनिक तौर से सम्मानित भी नहीं किया जाता है।
ये काम भारतीय खुफिया एजेंसी, RAW के अधीन करती है। इस फोर्स का गठन भी खासतौर से चीन की साजिशों को ध्यान में रखकर किया गया है।
दरअसल 1962 भारत-चीन युद्ध के बाद एक ऐसी फोर्स की कमी महसूस की गई जो युद्ध की स्थिति में चीन की सीमा में घुसकर खुफिया मिलिट्री ऑपरेशंस कर सके। इनमे पहाड़ों पर युद्ध लड़ने में भी महारत हासिल हो। इनकी ट्रेनिंग के लिए उत्तराखंड के चकराता में ट्रेनिंग सेंटर बनाया गया, जहां पर फोर्स में शामिल जवानों को पहाड़ों पर चढ़ने और गुरिल्ला युद्ध की ट्रेनिंग दी गई। इस फोर्स में भारतीय सेना की गोरखा रेजिमेंट से जवानों को शामिल किया जाता है। भारतीय सेना की पैराशूट रेजिमेंट के ऑफिसर, इस फोर्स को कमांड करते हैं।
वर्ष 1999 में करगिल युद्ध के दौरान भी स्पेशल फ्रंटियर फोर्स, ऑपरेशन विजय का हिस्सा थी।
बड़े मिलिट्री ऑपरेशन्स को अंजाम देना और गुमनाम रहे, यही इस फोर्स की खासियत है और सबसे बड़ी ताकत भी। विकास रेजिमेंट के पराक्रम का एक ट्रेलर, चीन की सेना 29 अगस्त की रात को देख चुकी है और अगर जरूरत पड़ी तो आगे भी देखेगी।
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