नई दिल्ली। स्वर्ग के सलाहकार देवताओं के गुरु बृहस्पति ने 6 अप्रैल को रात करीब 12:25 पर कुंभ राशि में प्रवेश कर लिया है। न्याय देवता शनि की राशि में गुरु वर्षभर और संचरण करेंगे। गुरु और शनि का यह संयोग और सकारात्मक व प्रभावशाली होगा। अब तक शनि और गुरु मकर राशि में ही थे। यह स्थिति दोनों ग्रहों में शत्रुता की थी। गुरु के कुंभ में प्रवेश के साथ अब दोनों मित्रवत होंगे। ज्ञान और न्याय के प्रमुखों की यह मित्रता वर्षभर श्रेष्ठ परिणाम देगी।
दुनिया में शुभता का संचार होगा। अच्छे और सच्चे लोगों को न्याय मिलेगा। ज्ञान की खोज में लोग लक्ष्य को प्राप्त करेंगे। कार्य व्यापार में दृढ़ता और विश्वास बढ़ेगा। विश्व और समाज में फैली आशंकाएं, असुरक्षा और परस्पर विरोध की भावनाओं में कमी आएगी।
गुरु कुंभ राशि में 12 अप्रैल तक रहेंगे। इस बीच वे मकर में वक्री होकर 14 सितंबर से 19 नवंबर तक रहेंगे। इस समय वे शनि के साथ पुनः शत्रुता का भाव रखेंगे। यह समय सभी के लिए आर्थिक और सामाजिक मामलों में सतर्कता बरतने का होगा।
राशियों के आधार पर बात की जाए तो सर्वाधिक लाभ में वायु तत्व की राशियां रहेंगी। वायु तत्व की राशियां मिथुन, तुला और कुंभ हैं। इनके जातकों के जीवन में मांगलिक कार्य बनेंगे। विवाह योग्य वर-कन्या परिणय सूत्र में बंध सकेंगे।
जल तत्व की राशियों के लिए गुरु का यह परिवर्तन सामान्य से कम प्रभावशाली है। कर्क वृश्चिक और मीन राशियां जल तत्व की हैं। इनसे गुरु क्रमशः आठवें, चौथे और बारहवें रहेंगे। इन राशि वालों को गुरु के अगली राशि में प्रवेश तक विवाह आदि मांगलिक कार्यां के लिए धैर्य रखना होगा।
मेष, सिंह और धनु राशियां अग्नि तत्व की राशियां हैं। इनसे गुरु क्रमशः लाभ, दाम्पत्य और पराक्रम भाव में रहेंगे। इन राशियों के लिए श्रेष्ठ कार्य करने के अवसर बनेंगे। शनि और गुरु दोनों ही शुभता रखेंगे।
वृष, कन्या और मकर पृथ्वी तत्व की राशियां हैं। गुरु इनसे क्रमशः कर्म, श्रम और धन भाव में रहेंगे। शनि की शुभता भी बनी रहेगी। ऐसे में ये राशियां अत्यंत अनुकूल परिणाम देंगी। रुके हुए कार्य बनेंगे। पद पदोन्नति के अवसर बनेंगे।
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