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    चंद्रयान-2 के इतने बड़े हादसे के बावजूद वैज्ञानिकों मिली बड़ी कामयाबी, सामने आया खास डेटा

  • September 10, 2021

    नई दिल्ली. 22 जुलाई, 2019 को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने महत्‍वाकांक्षी मिशन चंद्रयान-2 (Chandrayaan-2) लॉन्‍च किया था. इस मिशन के तहत प्रज्ञान रोवर और विक्रम लैंडर चंद्रमा की सतह पर भेजे गए थे. लेकिन 6 सितंबर को सॉफ्ट लैंडिंग के वक्‍त आखिरी मौके पर चंद्रयान-2 का इसरो से संपर्क टूट गया था. भारत की उम्मीदों को झटका लगा था. लेकिन इतने बड़े हादसे के बावजूद वैज्ञानिकों को कामयाबी मिली. ऑर्बिटर अब भी काम कर रहा है और खास बात ये है कि इससे लगातार देश को कई अहम डेटा मिल रहे हैं.

    सूर्य का अध्ययन:
    सौर एक्स-रे मॉनिटर (एक्सएसएम) नामक एक पेलोड ने सूर्य से आने वाले रेडिएशन के माध्यम से चंद्रमा का अध्ययन करने के अलावा, सौर फ्लेयर्स के बारे में जानकारी जमा की है. एक्सएसएम ने पहली बार सक्रिय क्षेत्र के बाहर बड़ी संख्या में माइक्रोफ्लेयर देखे हैं, और इसरो के अनुसार, “सौर कोरोना को गर्म करने के पीछे के तंत्र की समझ पर इसका बहुत प्रभाव पड़ता है”, जो कई दशकों से एक समस्या रही है.

    उस वक्त ISRO के अध्यक्ष के. सिवन ने बताया था कि चंद्रयान-2 मिशन ने अपना 98 फीसदी लक्ष्य हासिल कर लिया है. और हुआ भी वहीं. चंद्रयान-2 के दो साल पूरा करने के उपलक्ष्य में इस हफ्ते चंद्र विज्ञान कार्यशाला 2021 का उद्घाटन किया गया. इस मौके पर सिवन ने चंद्रयान-2 के आंकड़े और विज्ञान दस्तावेजों को जारी किया. साथ ही उन्होंने चंद्रयान-2 के कक्ष पेलोड का डेटा भी जारी किया. सिवन अंतरिक्ष विभाग में सचिव भी हैं. बयान के अनुसार, चंद्रयान-2 के आठ पेलोड चंद्रमा पर सुदूर संवेदी और अवस्थिति प्रौद्योगिकी के माध्यम से वैज्ञानिक प्रयोग कर रहे हैं.

    अब तक क्या जानकारी मिली है?



    इसरो के मुताबिक ऑर्बिटर में आठ उपकरण लगे हैं. अलग-अलग तरीकों के जरिए ये उपकरण कुछ बड़े कामों को पूरा करने में लगे हैं. चंद्रमा की सतह पर क्या है इसकी जानकारी मिल रही है. इसकी सतह में कौन-कौन से खनिज मौजूद हैं इस मौजूदगी का आकलन किया जा रहा है. साथ ही चांद की डिटेल मैपिंग भी की जा रही है. इसरो ने कहा है कि इनमें से प्रत्येक उपकरण ने अच्छा खासा डेटा भेजा है, जो चंद्रमा की नई जानकारियों को उजागर कर रहा है.

    अब तक के सबसे अहम नतीजे
    वॉटर मॉल्यूक्ल्स: चंद्रमा पर पानी की मौजूदगी की पुष्टि पहले ही चंद्रयान -1 द्वारा की जा चुकी थी. भारत ने साल 2008 में चंद्रयान -1 को लॉन्च किया था. ये भारत का पहला मिशन था. इससे पहले, नासा के मिशन क्लेमेंटाइन और लूनर प्रॉस्पेक्टर ने भी पानी की उपस्थिति के संकेत दिए थे. लेकिन चंद्रयान -1 पर इस्तेमाल किया गया उपकरण ये पता लगाने के लिए पर्याप्त संवेदनशील नहीं था कि संकेत हाइड्रॉक्सिल रेडिकल (OH) से आए हैं या पानी के अणु (H2O, जिसमें भी OH है).

    अधिक संवेदनशील उपकरणों का उपयोग करते हुए, चंद्रयान -2 बोर्ड पर इमेजिंग इंफ्रा-रेड स्पेक्ट्रोमीटर (IIRS) हाइड्रॉक्सिल और पानी के अणुओं के बीच अंतर करने में सक्षम है. चंद्रमा पर H2O अणुओं की उपस्थिति के बारे में यह अब तक की सबसे सटीक जानकारी है. पहले, पानी मुख्य रूप से चंद्रमा के ध्रुवीय क्षेत्रों में मौजूद होने के लिए जाना जाता था. चंद्रयान-2 को अब सभी जगहों पर पानी के निशान मिल गए हैं.

    माइनर एलिमेंट्स:
    लार्ज एरिया सॉफ्ट एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (क्लास) चंद्रमा के एक्स-रे स्पेक्ट्रम को मापने के लिए मैग्नीशियम, एल्यूमीनियम, सिलिकॉन, कैल्शियम, टाइटेनियम, आयरन आदि जैसे प्रमुख तत्वों की उपस्थिति की जांच करता है. एक्स-रे में चंद्र सतह का लगभग 95% हिस्सा मैप किया है. सोडियम, जो चंद्रमा की सतह पर भी एक मामूली तत्व है, पहली बार बिना किसी अस्पष्टता के पाया गया. इसरो के वैज्ञानिकों का मानना ​​है कि एक्सोस्फेरिक सोडियम का सीधा संबंध स्थापित किया जा सकता है.

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