नलखेड़ा। नगर के कई जगह में कचरा बिखरा हुआ है। स्वच्छता पर लाखों रुपये खर्च होने के बाद नगर में बदहाली के नजारे रोज देखे जा सकते हैं। सफाई के नाम पर केवल मुख्य मार्ग की सड़कों को चकाचक किया जाता है। स्वच्छता के मानकों पर शहर पूरी तरह खरा नहीं उतर रहा है। अब तक लाखों रुपये शहर की स्वच्छता पर खर्च किए जा चुके हैं लेकिन स्थिति में अब भी आशाजनक सुधार नहीं आया है।
स्वच्छता के मानकों के मुताबिक वार्डों से गीला और सूखा कचरा तक अलग-अलग एकत्रित नहीं किया जाता है। नगर परिषद नगर की सफाई व्यवस्था को लेकर कितनी लापरवाही बरत रही है। इसकी बानगी आजकल देखने को मिल रही है। बता दें कि नगर परिषद शहर को स्वच्छ और सुंदर बनाने का दम भरता है लेकिन जब गली-मोहल्लों में पसरी गंदगी को देखा जाता है तो मालूम पड़ता है कि नगर परिषद शहर में सफाई के नाम पर केवल खानापूर्ति कर रहा है। नालियों का निर्माण नहीं होने से नगर परिषद के वार्ड 7 और 2 में घरों का गंदा पानी का जमाव सड़कों पर हो रहा है। वार्ड 2 की बात करें तो यह मार्ग विश्व प्रसिद्ध माँ बगलामुखी मंदिर को जाता है और रोज सुबह मंदिर जाने वाले लोगो को इसी गंदगी भरे पानी के मार्ग से निकलना पड़ रहा। लोगों परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। नालियों का गंदा पानी घरों के आगे जमा है। गंदे पानी की बदबू व चारों तरफ गंदगी फैली रहती है। गंदे पानी का भराव सड़कों पर होने से यहां से लोगों का पैदल निकलना भी मुश्किल हो रहा है। नगर साफ और लोग स्वस्थ रहें इसी उद्देश्य के साथ राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जयंती दो अक्टूबर 2014 को राष्ट्रीय स्तर पर स्वच्छता अभियान शुरू किया गया था। तब जनप्रतिनिधियों के साथ अधिकारियों ने शहर, नगर और गाँवों को पूर्ण स्वच्छ बनाने का संकल्प लिया था लेकिन तब से अब तक केवल नारों और रैलियों तक ही यह सफाई अभियान सीमित रहा। इस अभियान के बाद से कोई बड़ा परिवर्तन दिखाई नहीं दिया। आज भी पहले की तरह ही नगर की सड़कों, गलियों और चौराहों पर गंदगी का आलम है। नगर परिषद अपनी पुरानी चाल और ढर्रे के अनुसार ही सफाई व्यवस्था पर कायम हैं। लिहाजा प्रधानमंत्री मोदी का सपना नलखेड़ा नगर परिषद में टूटता नजर आ रहा है। हर ऐसे मौके पर जब सफाई और गंदगी की चर्चा हो, तब अधिकारी और जनप्रतिनिधि स्वच्छ भारत का सपना दिखाने में आगे रहते हैं, लेकिन इसमें आगे आकर काम करने से कतराते हैं। अब नलखेड़ा नगर की स्वच्छता पर लाखों रुपये खर्च होने के बाद शहर में बदहाली के नजारे देखे जा सकते हैं। स्वच्छता के मानकों पर शहर पूरी तरह खरा नहीं उतर रहा है। स्वच्छता के मानकों के मुताबिक वार्डों से गीला और सूखा कचरा तक अलग-अलग एकत्रित नहीं हो पा रहा है। मार्गों व कालोनियों में लगाए गए डस्टबीन हर साल टूट जाते हैं। इनकी खरीदी के लिए फिर से बजट तैयार हो जाता है। नगर परिषद को नाली नाले की सफाई व्यवस्था पर ध्यान देना चाहिए। बारिश में तो नाली का पानी सड़क तक आ जाता है। नाली में गाद जमने के कारण बदबू से बुरा हाल हो जाता सफाई व्यवस्था भी पूरी तरह चरमराई हुई है।
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