नई दिल्ली (New Delhi)। लैंसेट रिपोर्ट के मुताबिक 1990के मुकाबले साल 2021 में लोग ज्यादा सालों तक जिंदा रहते हैं. लैंसेट में यह भी कहा गया कि पहले लोग सांस की नली में इंफेक्शन, क्रोनिक सांस (Tube, Infection, Chronic Respiratory) की बीमारी से मरते थे. अब इसकी संख्या में कमी आई है. पहले के मुकाबले अब पूरी दुनिया में लोग 6 साल ज्यादा जिंदा रहे रहे हैं.
भारत का क्या है हाल?
साउथ एशिया रीजन में भारत बेहद खास देश है. इसके अलावा भूटान लोगों के जिंदा रहने की प्रतिशत (13.6 साल) में वृद्धि हुई है. वहीं बांग्लादेश (13.3), नेपाल (10.4) और पाकिस्तान (2.5) साल है. महामारी के दौरान कई चुनौतियों को झेलने के बावजूद शोधकर्ताओं ने कहा कि दक्षिण पूर्व एशिया, पूर्वी एशिया और ओशिनिया के खास क्षेत्र में 1990 और 2021 (8.3 वर्ष) के बीच जीवन प्रत्याशा में सबसे बड़ा वृद्धि देखी गई है. जिसका मुख्य कारण क्रोनिक सांस से होने वाली बीमारी से होने वाली मौतों में कमी हे. कई सारी बीमारियां ऐसी हैं जैसे- स्ट्रोक, सांस की नली में इंफेक्शन और कैंसर से काफी ज्यादा लोग मरते थे.
शोधकर्ताओं ने नोट किया कि दुनिया भर में मौतों के प्रमुख कारणों में एक बड़ा फेरबदल हुआ है. महामारी के कारण रैंकिंग में भारी बदलाव आया है. कोविड महामारी के दौरान सबसे ज्यादा स्ट्रोक का खतरा बना रहता है. यह पूरी दुनिया में मृत्यु का दूसरा प्रमुख कारण बन गया है.
कोविड-19 महामारी सबसे अधिक प्रभावित हुई. लैटिन अमेरिका और कैरेबियन और उप-सहारा अफ्रीका थे. जिन्होंने 2021 में कोविड-19 के कारण कई लोगों की जिंदगी खत्म हो गई. मृत्यु के विभिन्न कारणों को देखते हुए अध्ययन से पता चलता है कि आंतों की बीमारियों से होने वाली मौतों में तेज गिरावट आई है. बीमारियों का एक वर्ग जिसमें दस्त और टाइफाइड शामिल हैं. इन सुधारों से 1990 और 2021 के बीच दुनिया भर में जीवन प्रत्याशा 1.1 वर्ष बढ़ गई.
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