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    लोकतंत्र को शर्मसार करती उमरेन की सरपंची की बोली

  • January 18, 2021

    – डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा

    भले ही महाराष्ट्र के राज्य चुनाव आयोग द्वारा उमरेन और खोड़ामाली गांव के सरपंच के चुनावों पर रोक लगा दी हो पर यह स्थानीय स्वशासन की चुनाव व्यवस्था की पोल खोलने के लिए काफी है। यह तो महाराष्ट्र के राज्य चुनाव आयुक्त की मजबूरी मानो कि सरपंच पद के लिए लगाई जा रही बोली का वीडियो वाइरल हो गया और मजबूरी में चुनावों पर रोक लगाने का निर्णय करना पड़ा। अन्यथा जब इस तरह से महाराष्ट्र की प्याज मण्डी में उमरेन के सरंपच पद के लिए एक करोड़ 10 लाख से चलते-चलते दो करोड़ पर बोली रुकी, उससे साफ हो जाता है कि लोकतंत्र की सबसे निचली सीढ़ी के सरपंच पद को बोली लगाकर किस तरह शर्मसार किया जा रहा है।

    यह कोई उमरेन की ही बात नहीं है अपितु यही स्थिति खोड़ामली की भी रही। वहां की सरपंची शायद कम मलाईदार होगी इसलिए बोली 42 लाख पर अटक गईं। इससे यह तो साफ हो जाता है कि जो स्वप्न स्थानीय स्वशासन का देखा गया था उसकी कल्पना बेकार है। यह भी सचाई से आंख चुराना होगा कि केवल इस तरह की घटना उमरेन या खोड़ामाली की ही होगी और अन्य स्थानों पर सरपंच के चुनाव पूरी ईमानदारी, निष्पक्षता और पारदर्शिता से हो रहे होंगे। लोकतंत्र के सबसे निचले पायदान जिसकी सबसे अधिक निष्पक्षता और पारदर्शिता से चुनाव की आशा की जाती है, उसके चुनावों की यह तस्वीर बेहद निराशाजनक और चुनावों पर भ्रष्टाचारियों की पकड़ को उजागर करती है। हालांकि देश की पंचायती राज संस्थाओं के चुनावों को लेकर सबसे अधिक संशकित और आतंकित इन चुनावों में लगे कार्मिक होते हैं क्योंकि स्थानीय स्तर की राजनीतिक प्रतिद्वंदिता इस कदर बढ़ जाती है कि कब एक-दूसरे से मारपीट या चुनाव कार्य में लगे कार्मिकों के साथ अनहोनी हो जाए इसका कोई पता नहीं रहता।


    उमरेन की सरपंचाई की बोली इतनी अधिक लगने का कारण समझ में आता है। वह वहां प्याज की मण्डी होना है पर इससे साफ हो जाता है कि लोकतंत्र का सबसे निचला पायदान भी भ्रष्टाचार से आकंठ डूबा है। यदि कोई यह दावा करता हो कि इस तरह की बोली से चुनाव कार्य से जुड़े लोग अनजान होंगे तो यह सच्चाई पर परदा डालना होगा क्योंकि इतनी बड़ी घटना किसी एक-दो स्थान पर नहीं अपितु इसकी जड़ें कहीं गहरे तक जमी हुई हैं, इससे इनकार नहीं किया जा सकता। दुर्भाग्य की बात है कि जिस लोकतंत्र की हम दुहाई देते हैं और जिस स्थानीय स्वशासन यानी गांव के विकास की गाथा गांव के लोगों द्वारा चुने लोगों के हाथ में हो, उसकी उमरेन जैसी तस्वीर सामने आती है तो यह बहुत ही दुखदायी व गंभीर है। यह साफ है कि दो करोड़ या यों कहें कि बोली लगाकर जीत के आनेवाले सरपंच से ईमानदारी से काम करने की आशा की जाए तो यह बेमानी होगी। जो स्वयं भ्रष्ट आचरण से सत्ता पा रहा है उससे ईमानदार विकास की बात की जाए तो यह सोचना अपने आप में निरर्थक हो जाता है। ऐसे में विचारणीय यह हो जाता है कि हमारा ग्राम स्तर का लोकतंत्र किस स्तर तक गिर चुका है। इससे यह भी साफ हो जाता है कि इन संस्थाओं के चुनावों में निष्पक्ष चुनावों की या यों कहें कि निष्पक्ष मतदान की बात की जाए तो उसका कोई मतलब ही नहीं है। साफ हो जाता है कि कुछ ठेकेदार बोली लगाकर सरपंच बनवा देते हैं और आम मतदाता देखता ही रह जाता है।

    दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने का हम दावा करते हैं और वह सही भी है। लोकतंत्र की दुहाई देने वाले अमेरिका की स्थिति हम इन दिनों देख ही रहे हैं। इसके अलावा हमारी चुनाव व्यवस्था की सारी दुनिया कायल है। हमारी चुनाव व्यवस्था पर हमें गर्व भी है और होना भी चाहिए। पर जिस तरह की उमरेन या इस तरह के स्थानों पर घटनाएं हो रही है निश्चित रूप से लोकतंत्र के लिए यह दुःखद घटना है। अब यहां चुनाव पर रोक लगाने से ही काम नहीं चलने वाला है अपितु महाराष्ट्र् के चुनाव आयोग, सरकार भ्रष्टाचार निरोधक संस्थाओं, न्यायालयों आदि को स्वप्रेरणा से आगे आकर बोली लगाने वालों और इस तरह की प्रक्रिया से जुड़े लोगों के खिलाफ सख्त कार्यवाही करनी चाहिए ताकि स्थानीय लोकतंत्र अपनी मर्यादा को तार तार होने से बच सके।

    यह हमारी समूची प्रक्रिया पर ही प्रश्न उठाती घटना है। चाहे इस तरह की घटना को एक-दो स्थान पर या पहली बार ही बताया जाए पर इसकी पुनरावृत्ति देश के किसी भी कोने में ना हो इसके लिए आगे आना होगा। जानकारी में आते ही सख्त कदम और इस तरह की भ्रष्टाचारी घटनाओं के खिलाफ आवाज बुलंद की जाती है तो यह लोकतंत्र के लिए शुभ होगा। गैर सरकारी संगठनों और जो देश के चुनाव आयोग की सुव्यवस्थित इलेक्‍ट्रोनिक मतदान व्यवस्था ईवीएम के खिलाफ आवाज उठाते हैं, उन्हें अब मुंह छिपाए बैठने के स्थान पर मुखरता से आगे आना होगा तभी उनकी विश्वसनीयता तय होगी। देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था इस तरह की घटनाओं से शर्मसार होती है, इसे हमें समझना होगा नहीं तो लोकतांत्रिक व्यवस्था की पवित्रता कलुषित होगी।

    (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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