भोपाल। मप्र की शिवराज सरकार के कार्यकाल के आखिरी वित्तीय वर्ष के लिए बजट सत्र सोमवार से शुरू हो गया है। इस वित्त वर्ष में प्रदेश का कुल बजट तीन लाख करोड़ रुपये के पार पहुंचने की उम्मीद है। यह पहला मौका होगा जब मप्र का बजट तीन लाख करोड़ रुपये के दायरे को पार करेगा। भारी भरकम बजट की उम्मीद के बीच प्रदेश के दाल मिलों, किसानों की उम्मीद भी जाग गई है। इन्हें उम्मीद है कि मंडी शुल्क पर विसंगति इस बजट में दूर होगी। प्रदेश में मंडी शुल्क की दर सबसे ज्यादा है। प्रदेश में मंडी शुल्क 1.70 प्रतिशत तक है। इसके मुकाबले गुजरात में 0.50 प्रतिशत, महाराष्ट्र में 0.80 प्रतिशत मंडी शुल्क है। छत्तीसगढ़ में भी मंडी शुल्क मप्र से कम है। इतना ही नहीं अन्य प्रदेशों और विदेश से आयातित दलहन पर भी प्रदेश सरकार मंडी शुल्क वसूलती है। वहीं, अन्य राज्यों में इस पर छूट है। आल इंडिया दाल मिल एसोसिएशन के अध्यक्ष सुरेश अग्रवाल के अनुसार, साढ़े तीन साल से प्रदेश का दाल उद्योग मंडी शुल्क घटाने की मांग कर रहा है। इस बारे में एसोसिएशन ने पत्र लिखा और मुख्यमंत्री से मिले भी।
मंडी शुल्क कम करने की कई बार हुई घोषणा
अग्रवाल ने कहा, 25 अप्रैल 2022 को प्रदेश के कृषि मंत्री कमल पटेल ने मंडी शुल्क में राहत का ऐलान इंदौर में आयोजित एसोसिएशन की बैठक में किया था। इसके बाद अक्टूबर में सोपा के अंतरराष्ट्रीय सोया कानक्लेव के मंच से कृषि मंत्री ने सात दिन में मंडी शुल्क घटाने की घोषणा की थी। दरअसल, मंडी शुल्क से प्रदेश का सोया उद्योग भी प्रभावित हो रहा है। इतना ही नहीं, 15 दिसंबर 2022 को दाल उद्योग का प्रतिनिधि मंडल भोपाल में मुख्यमंत्री से मिला था। 17 दिसंबर को कटनी में भाजपा के सम्मेलन में मुख्यमंत्री ने मंडी शुल्क से छूट देने की घोषणा कर दी थी।
उद्योगों ने उत्पादन किया आधा
हालांकि, इसका आदेश अब तक नहीं निकला। इसके असर से प्रदेश में दालों की उत्पादन लागत अन्य प्रदेशों से महंगी है। ऐसे में प्रदेश के उद्योगों ने अपना उत्पादन आधा कर दिया है। कई मिलें तो गुजरात और महाराष्ट्र की सीमा पर दाहोद, बड़ौदा और हिम्मतनगर में शिफ्ट हो रही है, ताकि प्रदेश के कर के बोझ से मुक्ति मिल सके। अब बजट घोषणा में मुख्यमंत्री को अधूरी घोषणा पर ध्यान देते हुए राहत जारी करना चाहिए। इससे प्रदेश में उद्योगों से लेकर रोजगार और उपभोक्ताओं को भी राहत मिल सकेगी।
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