भोपाल। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट (Madhya Pradesh High Court) में वर्तमान में महज 30 न्यायाधीश पदस्थ हैं। जबकि कुल स्वीकृत पदों की संख्या 53 है। इस तरह साफ है कि अब भी 23 पद रिक्त हैं। मुख्यपीठ जबलपुर और खंडपीठ इंदौर व ग्वालियर में न्यायाधीशों की कमी बनी हुई है। लंबित मुकदमों का बोझ चार लाख पार कर गया है। ऐसे में यदि सभी पद भर दिए जाएं तो अपेक्षाकृत द्रुतगति से न्यायदान प्रक्रिया को गति मिल पाएगी। स्टेट बार कौंसिल (State Bar Council) के प्रवक्ता राधेलाल गुप्ता ने बताया कि हाई कोर्ट
(High Court) में लंबे समय से रिक्त पद भरे नहीं जा रहे हैं। इस वजह से पक्षकार परेशान रहते हैं। वकीलों को अलग परेशानी होती है।
मामले समय पर सुनवाई के लिए नहीं लगते। इससे असंतोष फैला रहता है। गुप्ता ने बताया कि वे पूव में राष्ट्रपति, प्रधान न्यायाधीश सहित अन्य को पत्र भेज चुके हैं। बार कौंसिल आफ इंडिया तक से हस्तक्षेप की मांग की गई। कायदे से बार और बेंच के बीच समन्वय से समस्या को हल किया जा सकता है। उच्च न्यायिक सेवा के समानांतर वकीलों के बीच से भी योग्य जज निकाले जा सकते हैं। तीनों बेंच में ऐसे वकीलों की भरमार है, जो जज बनना चाहते है या फिर उनमें जज बनने की काबिलियत भी है। लेकिन उनको अब तक वरिष्ठ अधिवक्ता तक नामांकित नहीं किया गया है। लिहाजा, प्रक्रिया को सरलीकृत करके योग्य वकीलों का मानवर्धन होना चाहिए। हाई कोर्ट की कार्यप्रणाली को महज हाईटैक करने से काम नहीं चलेगा। जब तक मानव संसाधन की कमी पूरी नहीं होती, हाई कोर्ट के कामकाज में तेजी मुमकिन नहीं है।
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