नई दिल्ली। देशभर में लगातार बढ़ रही महंगाई (Rising inflation across the country) का असर अब बच्चों की कॉपी-किताबों और शिक्षा पर भी पड़ने लगा है। मंहगाई की मार से शिक्षा विभाग (education Department) भी अछूता नहीं रहा है। पिछले साल की तुलना में इस बार कॉपी-किताबें जहां 50 फीसदी तक महंगी हुई हैं, तो वहीं रबर, पेंसिल और शॉर्पनर के दामों में भी 10 से 20 फीसदी का इजाफा देखने को मिला है। स्टेशनरी व्यवसाय (stationery business) से जुड़े लोगों का कहना है, कि रद्दी के दामों में बढ़ोत्तरी के चलते शिक्षा की हर चीज के भाव आसमान छूने लगे हैं। इसका सीधा असर इस बार अभिभावकों पर पड़ेगा।
बता दें कि पेट्रोल-डीजल और कच्चे माल की रेट बढ़ने के बाद अब कॉपी-किताबों के दाम 35 से 50 प्रतिशत तक बढ़ गए हैं। इसके अलावा दो साल बाद मांग काफी ज्यादा आने से बाजार में किताबें की कमी भी बनी हुई है।
दो साल से स्कूली फीस की मार झेल रहे पेरेंट्स को इस साल कॉपी-किताबों की बढ़ी हुई कीमतों ने अभी से परेशान कर दिया है।दो साल से कोरोना संक्रमण के चलते बच्चों की ऑनलाइन क्लास में अभिभावकों को किताब-कॉपियों पर कम खर्च करना पड़ा था, लेकिन अब सब ओपन होने के बाद से स्कूलों में बच्चों की कक्षाएं भी ऑफलाइन हो गई हैं। ऐसे में किताब-कापियों के दामों में बढ़ोत्तरी का असर लोगों की जेब पर दिखेगा।
अप्रैल से नया शैक्षिक सत्र शुरू हो गया है। सरकार ने निजी स्कूलों की फीस वृद्धि पर लगी रोक को हटा लिया है. वहीं दूसरी तरफ अब किताबों और ड्रेस, जूता आदि के कीमत में 50 प्रतिशत तक की वृद्धि हो गयी है। ऐसे में अभिभावकों की दिक्कत काफी बढ़ती दिख रही है। इसके अलावा स्कूली बैग की कीमत में सौ से डेढ़ सौ रुपये का इजाफा हुआ है। फुटवियर पर जीएसटी दर पांच से 12 फीसदी होने के बाद स्कूल शूज की कीमतों में 150 रुपये तक का इजाफा हुआ है।
कारोबारियों के अनुसार कॉपी-किताब तैयार करने के लिए जरूरी कच्चे माल के दाम कोरोना काल में ज्यादा बढ़ गए हैं. प्लास्टिक के दाने की कीमत 80 रुपये से 160-170 रुपये किलो हो गई है, वहीं, कागज का रेट 50 से बढ़कर 85 रुपये प्रति किलो हो गया है। कारोबारियों के अनुसार कॉपी-किताबों का जो सेट पहले औसतन तीन हजार रुपये में आता था, वह इस बार पांच हजार रुपये में बिक रहा है।
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