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    POCSO जैसे केस निपटाने में भी दिल्ली की फास्ट ट्रैक कोर्ट फिसड्डी, रिपोर्ट में खुलासा

  • August 20, 2023

    नई दिल्ली: बच्चों (children) के खिलाफ रेप और यौन अपराधों (rape and sexual offenses) से जुड़े मामलों में शीघ्रता से निपटाने के मसकद से POCSO कानून बनाया गया था, लेकिन राजधानी दिल्ली(Delhi) में ही फास्ट-ट्रैक स्पेशल कोर्ट (FTSC) तेजी से न्याय दिलाने के वादे को पूरा करने में नाकाम रही है.

    कानून और न्याय मंत्रालय की ओर से मई तक के मिले आंकड़ों के अनुसार, दिल्ली के फास्ट-ट्रैक स्पेशल कोर्ट में मामलों के निपटाने का परसेंटेज 19% है जिसे संख्या के आधार पर देखें तो यहां पर 16 स्पेशल कोर्ट हैं. यह स्पीड देश में सबसे कम निपटान दरों में से एक है. अखबार द इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया कि यह जानकारी पिछले महीने 27 जुलाई को आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद संदीप पाठक की ओर से राज्यसभा में पूछे गए एक प्रश्न के जवाब के आधार पर सामने आई है.

    यौन अपराधों से जुड़े पीड़ितों को जल्द से जल्द न्याय दिलाने और “न्यायिक प्रणाली पर पेंडिंग पड़े केसों के बोझ को कम करने” के लिए पेंडिंग रेप और POCSO एक्ट के मामलों के जल्द निपटारे के लिए FTSCs की स्थापना की गई थी. केंद्र सरकार की ओर से 2019 में 389 ePOCSO कोर्ट समेत 1,023 स्पेशल कोर्ट स्थापित करने के लिए एक सेंट्रल स्पॉन्सर्ड स्कीम लागू की गई थी. यह स्कीम शुरुआत 2019-20 और 2020-21 के बीच एक साल की अवधि के लिए की गई थी. बाद से इसे आगे भी बनाए रखने को मंजूरी दे दी गई.

    नियम के अनुसार स्पेशल कोर्ट में इन मामलों का निस्तारण व्यवहारिक रूप से एक साल के अंदर कर दिया जाना चाहिए. हालांकि, आंकड़ों से पता चलता है कि राजधानी उस लक्ष्य को पूरा करने से बहुत दूर है. सरकार की ओर से जारी आंकड़े बताते हैं कि मई 2023 तक, राजधानी दिल्ली (कुल 5,418 केस) ने करीब 1,049 मामलों का निपटारा किया था, जबकि उसके पास 4,369 पेंडिंग मामले थे. सिर्फ पुड्डुचेरी का ही प्रदर्शन राजधानी दिल्ली से खराब रहा क्योंकि यहां सिर्फ एक ही फास्ट-ट्रैक स्पेशल कोर्ट है और वह अपने यहां 209 लंबित पेंडिंग मामलों में से एक भी केस को खत्म नहीं कर पाया था.


    जबकि दिल्ली की तुलना में अन्य बड़े राज्यों उत्तर प्रदेश और बिहार में मामलों का निपटान दर क्रमशः 36% और 32% के रूप में अधिक रही. इसी तरह मेघालय और जम्मू-कश्मीर दोनों जगहों पर केसों निपटान का दर 22% रहा. सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाले राज्यों में मिजोरम और केरल रहे जहां केसों का निपटान दर क्रमशः 66.5% और 65% रहा था.

    देखा जाए तो पिछले कुछ सालों की तुलना में दिल्ली का प्रदर्शन इस बार पॉजिटिव रहा है. यहां पर एफटीएससी ने 2021, 2022 और 2023 के शुरुआती तीन महीनों में क्रमशः 4.2%, 11% और 16.6% की दर से केसों का निपटारा किया, जो इस मामले में बढ़ोतरी की ओर इशारा करता है. इस बीच 2021 से 2022 तक, देश में कुल लंबित मामलों की संख्या में 17% की वृद्धि हुई, इसमें दिल्ली के लिए यह बढ़ोतरी महज 0.36% रही थी.देश में जहां POCSO मामलों के निपटाने की दर 98% रही, जबकि दिल्ली का आंकड़ा 183% तक बढ़ गया और यह राष्ट्रीय औसत की तुलना में दोगुने के करीब है.

    कोर्ट में मामलों के निपटाने की दर के स्लो होने की कई वजहें सामने आती रही हैं. सबसे बड़ी वजह कोर्ट में जजों के खाली पद हैं. 2022 में देशभर में निचली अदालतों में जजों के लिए 25,042 स्वीकृत पद रखे गए थे, जबकि 5,850 पद खाली रहे और इस तरह वैकेंसी रेट 23 फीसदी रही. इसके अलावा फास्ट-ट्रैक कोर्ट्स के साथ-साथ फास्ट-ट्रैक कानूनों की भी जरूरत है. जजों के खाली पद के अलावा स्पेशल ट्रेनिंग भी इनकी बड़ी वजह हैं. इसकी वजह से केसों का तुरंत निपटारा भी नहीं हो पाता है.

    स्पेशल कोर्ट्स की संख्या पर नजर डालें तो दिल्ली भी बड़े राज्यों से पीछे नहीं है. 2023 में दिल्ली में जहां 12.5 लाख लोगों के लिए एक स्पेशल कोर्ट था तो वहीं यूपी में 10 लाख लोगों के लिए एक स्पेशल कोर्ट थी. महाराष्ट्र और गुजरात में क्रमशः 4.1 लाख और 4 लाख लोगों के लिए एक स्पेशल कोर्ट थी.

    (यह संख्या भारत सरकार की ओर से जारी किए गए अनुमानित जनसंख्या अनुमान के आधार तय किया गया है).

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