इंदौर। सभी 85 वार्डों में एंटीबॉडी टेस्टिंग के लिए पिछले दिनों सीरो सर्वे करवाया गया, जो पूरा हो गया है। 7 हजार सैम्पलों की टेस्टिंग एमजीएम मेडिकल कॉलेज की लैब में ही शुरू की गई है, जिसके लिए दिल्ली से नेशनल सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल (एनसीडीसी) की टीम भी आई हुई है। इनकी निगरानी और गाइडलाइन में ही यह टेस्टिंग होगी। 3 से 4 दिन में परिणाम मिलेंगे, लेकिन उसकी घोषणा दिल्ली से की जाएगी। इस सैम्पल में ढाई हजार पुरुष-ढाई हजार महिलाओं के साथ 2 हजार बच्चों के भी सैम्पल एकत्रित किए गए हैं।
दिल्ली की तर्ज पर जिला प्रशासन ने यह सीरो सर्वे करवाया है, जिसके जरिए पता लगाया जाएगा कि शहर की कितनी आबादी में कोरोना संक्रमण से लडऩे की रोग प्रतिरोधक क्षमता, यानी एंटीबॉडी विकसित हो गई है। जो कोरोना के मरीज पॉजिटिव हैं और स्वस्थ हो गए उनके शरीर में तो यह एंटीबॉडी विकसित हो ही जाती है, जिसके चलते प्लाज्मा भी इन्हीं लोगों से लेकर नए संक्रमित लोगों को दिया जाता है, ताकि वे भी तेजी से स्वस्थ हो सकें। वहीं अधिकांश मरीज ए सिम्टोमैटिक तो निकलते ही हैं, वहीं कई ऐसे भी हैं, जिन्हें कोरोना हुआ होगा, लेकिन कोई लक्षण न आए और वे पूरी तरह स्वस्थ भी रहे। इंदौर में भी जिन इलाकों में शुरुआत में संक्रमण तेजी से फैला था वहां भी मरीज आना बंद हो गए, क्योंकि ज्यादातर लोगों में एंटीबॉडी विकसित हो गई, जिसे एक तरह से हर्ड इम्युनिटी भी कहा जाता है। कलेक्टर मनीषसिंह की पहल पर इंदौर में भी शासन ने यह सीरो सर्वे करवाया, जो शहर के 85 वार्डों में हुआ और आने वाले दिनों में ग्रामीण क्षेत्रों में भी करवाया जाएगा। एमजीएम मेडिकल कॉलेज की डीन डॉ. ज्योति बिंदल के निर्देशन में यह सीरो सर्वे चला। शुरुआत के दो-तीन दिनों में लोगों ने सैम्पल देने से डर के मारे इनकार भी किया। बाद में समझाइश का असर हुआ और लोग सैम्पल देने लगे, जिसके चलते सर्वे दो-तीन दिन और आगे बढ़ाना पड़ा। बारिश के कारण भी यह कार्य थोड़ा प्रभावित हुआ। लेकिन परसों सर्वे पूरा हो गया और कल से मेडिकल कॉलेज की लैब में सभी 7 हजार सैम्पलों की टेस्टिंग शुरू हुई, जो कि एनसीडीसी के विशेषज्ञों की देखरेख में की जा रही है। माइक्रोबॉयोलॉजी लैब में यह टेस्टिंग दिल्ली से आई नेशनल सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल की टीम की देखरेख में हो रहा है और वही इसका विश्लेषण भी करेगी। लिहाजा तीन-चार दिन में टेस्टिंग तो पूरी हो जाएगी, जिसके परिणाम दिल्ली जाएंगे। वहां से विश्लेषण के बाद सार्वजनिक किए जाएंगे, जिससे पता चलेगा कि कितनी प्रतिशत आबादी में एंटीबॉडी विकसित हो चुकी है।
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