सारी आफतें दिल्ली में… सारी आंखें दिल्ली में… सारी सांसें दिल्ली को… कोटा बढ़ाओ… ऑक्सीजन पहुंचाओ… साधन बढ़ाओ… देश की राजधानी के दो करोड़ लोगों के लिए सौ करोड़ लोगों से नजरें चुराए सरकार से लेकर नेता और मीडिया से लेकर अदालतें अपनी नजरें अस्पतालों से लेकर श्मशानों तक पर लगाए बैठी हैं… लेकिन जो हाल दिल्ली के दिखाए जा रहे हैं, वही हाल पूरे देश में कहर ढा रहे हैं… यह बात और है कि टीवी के चैनलों से लेकर सरकार के नुमाइंदे सारा ध्यान दिल्ली पर लगा रहे हैं… अदालतें भी दिल्ली में ही दरियादिली दिखा रही हैं… हर दिन ऑक्सीजन का कोटा बढ़ा रही हैं… जितना बढ़ाया उसे दिलवाने के फरमान भिजवा रही हैं… यह समझ ही नहीं पा रही हैं कि देश में दिल्ली ही नहीं और भी राज्य हैं… अदालत ने राजधानी की ऑक्सीजन का कोटा बढ़ाकर 600 टन पहुंचा दिया… उनके संज्ञान में यह ख्याल नहीं आया कि दो करोड़ की दिल्ली के लोग 600 टन सांसें पी जाएंगे तो 13 करोड़ की जनसंख्या वाले महाराष्ट्र में केवल 1200 टन ऑक्सीजन पहुंचा पाएंगे तो कैसे देश के साथ इंसाफ कर पाएंगे… जो महाराष्ट्र सबसे पहले कहर की जद में आया… जिसने पूरे देश को चेताया… तब दिल्ली के नुमाइंदों को देश में आने वाले कहर का ख्याल नहीं आया… जिस दिल्ली के कांधे पर पूरे देश का बोझ था वो चुनाव की व्यवस्था में मशगूल था… जिस दिल्ली में देश के सारे दिग्गज रहते हैं वो सोते रहे… इसलिए लोग मरते रहे… जिस दिल्ली में देश की सर्वोच्च अदालत है वो अर्थियां उठने पर जागती है…चुनाव को जिम्मेदार मानती है… लेकिन समय रहते इसे रोकने में नाकाम हो जाती है…जब महामारी पूरे देश में कहर ढाती है तब सवाल-जवाब कर फर्ज निभाती है… व्यवस्थाएं तब भी नहीं हो पाती हैं तो उनकी निगाहें भी नजर आने वाली दिल्ली पर ही ठहर जाती हैं… इलाहाबाद की अदालत जिन मौतों को नरसंहार मानती है वो भी उत्तरप्रदेश में हो रहे पंचायत चुनाव रोक नहीं पाती है… जिस देश में इंसाफ की आस ही छिन जाती है वहां सांसों की कीमत क्या रह जाती है… पता नहीं देश का बिकाऊ चैनल दिल्ली से निकलकर देश पर कब निगाहें लगाएगा… इंसाफ कब देश को ऑक्सीजन दिलाएगा… तब तक तो कांधे भी अर्थियां उठाते-उठाते थक जाएंगे… कोई बचेगा तभी तो ऑक्सीजन की जरूरत पड़ेगी… अस्पताल में मरीज बचेंगे तभी तो दवाइयों की कमी अखरेगी…कुछ रहे-न रहे लेकिन सवाल जरूर रहेंगे… तब जिम्मेदार जिम्मेदारियों से कैसे बचेंगे…
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