नई दिल्ली । दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने बुधवार को भाजपा नेता और वकील (BJP Leader and Lawyer) अश्विनी कुमार उपाध्याय (Ashivini Kumar Upadhyay) की उस जनहित याचिका (PIL) पर केंद्र से (From Center) जवाब मांगा (Seeks Response), जिसमें उन्होंने बच्चों के समग्र विकास के लिए आठवीं कक्षा तक के (Till Class VIII) पाठ्यक्रम (Course) में ‘स्वास्थ्य एवं योग विज्ञान’ (Health and Yoga Science) को अनिवार्य बनाने (To Make Compulsory) की मांग की थी (Seeking)।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति सचिन दत्ता की खंडपीठ उस जनहित याचिका (पीआईएल) की सुनवाई कर रही थी, जिसमें याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया है कि स्वास्थ्य का अधिकार (अनुच्छेद 21) और शिक्षा का अधिकार (अनुच्छेद 21ए) एक-दूसरे के पूरक हैं। याचिका में आगे दलील दी गई है कि ऐसे में सरकार का यह कर्तव्य है कि वह आरटीई अधिनियम 2009 की धारा 29 के मद्देनजर ‘स्वास्थ्य एवं योग विज्ञान’ को कक्षा आठवीं तक के पाठ्यक्रम का अनिवार्य हिस्सा बनाए। हालांकि अदालत ने केंद्र की ओर से पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) चेतन शर्मा से निर्देश प्राप्त करने और मामले में जवाब देने के लिए कहा, मगर कोई नोटिस जारी नहीं किया गया।
सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा कि ये नीतिगत मुद्दे हैं। पीठ ने मौखिक रूप से टिप्पणी करते हुए कहा, “हम एक नीति बनाकर इसे सरकार पर नहीं डाल सकते हैं।”
जनहित याचिका के अनुसार, अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत स्वास्थ्य के अधिकार में स्वास्थ्य से जुड़ी सुरक्षा और सुधार शामिल हैं और यह बच्चों को गरिमा के साथ जीने को लेकर सक्षम बनाने के लिए न्यूनतम आवश्यकता है। उपाध्याय ने कहा कि इसलिए सरकार का न केवल बच्चों को ‘स्वास्थ्य एवं योग विज्ञान’ प्रदान करने का संवैधानिक दायित्व है, बल्कि अच्छे स्वास्थ्य के लिए अनुकूल परिस्थितियों का निर्माण और निरंतरता सुनिश्चित करना भी उसका दायित्व है।
याचिका के अनुसार, कैलिफोर्निया के अपीलीय न्यायालय की तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने माना था कि योग एक धर्मनिरपेक्ष गतिविधि है और सर्वोच्च न्यायालय ने भी तीन मामलों में समान विचार व्यक्त किया था, इसलिए सरकार का यह कर्तव्य है कि वह अनुच्छेद 21, 21ए, 39, 47 के मद्देनजर कक्षा पहली से आठवीं तक के छात्रों के लिए स्वास्थ्य और योग विज्ञान की मानक (स्टैंडर्ड) पाठ्य पुस्तकें उपलब्ध कराए।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि आरटीई अधिनियम के लागू होने के बाद, स्वास्थ्य और योग विज्ञान का अध्ययन 6-14 साल के बच्चों का अधिकार बन गया है, लेकिन यह केवल कागजों पर ही रह गया है और सबसे अधिक उपेक्षित विषय है। उन्होंने कहा कि वार्षिक परीक्षाओं में स्वास्थ्य और योग विज्ञान के लिए अंक नहीं दिए जाते हैं और यहां तक कि केंद्रीय विद्यालय और नवोदय विद्यालयों के शिक्षकों का भी कहना है कि यह अनिवार्य विषय नहीं है।
जनहित याचिका में यह भी कहा गया है कि एनसीईआरटी ने अभी तक कक्षा 1-8 के छात्रों के लिए ‘स्वास्थ्य एवं योग विज्ञान’ की मानक पाठ्यपुस्तकें प्रकाशित नहीं की हैं। इसलिए, पाठ्यक्रम, मानक पाठ्यपुस्तकों, प्रशिक्षित शिक्षकों और अंकों के मूल्यांकन के बिना, एनसीएफ 2005 के मद्देनजर स्वास्थ्य और योग शिक्षा प्रदान करने में पूरी तरह से विफलता देखने को मिली है।
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