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    जामिया हिंसा केस पर हाईकोर्ट की टिप्पणी, विरोध करना नागरिक का अधिकार, लेकिन अशांति फैलाना नहीं

  • March 29, 2023

    नई दिल्‍ली (New Delhi) । जामिया हिंसा मामले (jamia violence case) में शरजील इमाम, सफूरा जरगर (Sharjeel Imam, Safoora Zargar) और सात अन्य आरोपियों को मंगलवार को दिल्ली उच्च न्यायालय (Delhi High Court) से बड़ा झटका लगा। उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के आरोपमुक्त करने के फैसले को पलट दिया। उच्च न्यायालय ने आरोप तय करने का आदेश देते हुए कहा कि बेशक विरोध करना प्रत्येक नागरिक का अधिकार है, लेकिन अशांति फैलाने का हक किसी को नहीं है। इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

    न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा की पीठ ने दिल्ली पुलिस की पुनरीक्षण याचिका को मंजूर करते हुए माना कि निचली अदालत के फैसले में विसंगति थी। आरोप के स्तर पर प्रथमदृष्टया साक्ष्यों का अध्ययन किया जाता है। ऐसे में पूरे मामले को खारिज करना किसी भी तरह जायज नहीं माना जा सकता। जब रिकॉर्ड पर वह वीडियो मौजूद थे, जिनमें आरोपी नजर आ रहे थे, तो ऐसे में पुलिस ने बलि का बकरा बनाया जैसे शब्दों के साथ निर्णायात्मक टिप्पणी उचित नहीं थी। विरोध के लिए शांतिपूर्ण तरीके से एकत्रित होने का अधिकार भी प्रतिबंध के अधीन होता है। इसके लिए इजाजत लेना अनिवार्य है, लेकिन इस विरोध प्रदर्शन के लिए आरोपियों ने कोई अनुमति नहीं ली थी।


    गैरकानूनी तरीके से हुई सभा
    उच्च न्यायालय ने माना कि जिस सभा के बाद जामिया इलाके में दंगे फैले थे, उसमें आरोपी गैरकानूनी सभा का हिस्सा थे। उन्होंने नारेबाजी और पुलिस बल पर हमला किया। बैरिकेडस पर चढ़कर पुलिस को चुनौती दी गई। ऐसे महत्वपूर्ण घटनाक्रम को खारिज नहीं किया जा सकता।

    -13 दिसंबर 2019 को मार्च के दौरान जामिया में भीड़ उग्र हो गई थी
    -53 पन्नों में हाईकोर्ट की ओर से अपना आदेश दर्ज किया गया
    -90 लोगों की उत्तर-पूर्वी दिल्ली के दंगों में हुई थी मौत

    नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) के विरोध में 13 दिसंबर 2019 को जामिया मिल्लिया इस्लामिया से शुरू मार्च के दौरान भीड़ उग्र हो गई थी। इसमें पुलिस पर पथराव हुआ था। कई जगह आगजनी की गई थी। पुलिस ने भी जवाबी कार्रवाई में आंसू गैस समेत अन्य कार्रवाई की थी। शुरुआत में मामले की जांच जामिया नगर थाना पुलिस ने की थी। बाद में इसे क्राइम ब्रांच को सौंप दिया गया।

    कई केस लंबित
    शरजील इमाम, सफूरा जरगर समेत अन्य पर जामिया हिंसा के अलावा उत्तर-पूर्वी दिल्ली में भड़के सांप्रदायिक हिंसा की साजिश का आरोप भी है। इसके लिए गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम के तहत अलग से मुकदमा दर्ज किया गया था। बहरहाल यह मुकदमा कड़कड़डूमा अदालत में लंबित है। उत्तर-पूर्वी दिल्ली में यह दंगे 23 फरवरी 2020 से 26 फरवरी 2020 के दौरान हुए थे। इनमें 53 लोगों की मौत हुई थी।

    एक मुख्य, तीन पूरक आरोपपत्र दायर किए थे
    कोर्ट ने कहा कि पुलिस ने एक मुख्य और तीन पूरक आरोपपत्र दाखिल किए थे। पुलिस के पास साक्ष्य भी थे। यह माना जा सकता है कि ये साक्ष्य हल्के अपराध को प्रमाणित करते हों, लेकिन यह नहीं कहा जा सकता कि इन तीनों आरोपपत्र में कोई आधार ही नहीं था।

    कोर्ट के आदेश को चुनौती देंगे बचाव पक्ष
    उच्च न्यायालय की एकलपीठ का फैसला सुनने के बाद आरोपी शरजील इमाम और अन्य आरोपियों के वकीलों ने कहा कि वह इस फैसले को चुनौती देंगे। निचली अदालत स्पष्ट कर चुकी थी कि उनके मुवक्किलों की इन दंगों में भूमिका नहीं थी, लेकिन एक बार फिर से मामला खुलना उनके मुवक्किलों के लिए परेशानी का सबब बनेगा।

    गलत टिप्पणियां की गई दिल्ली पुलिस
    दिल्ली पुलिस ने निचली अदालत के फैसले को चुनौती देते हुए कहा था कि निचली अदालत ने पुलिस के खिलाफ गलत टिपपणियां की थी। निचली अदालत का आदेश कानून के सुस्थापित सिद्धांतों के अनुरूप नहीं है। गंभीर विसंगतियों से युक्त है और कानून की नजर में दोषपूर्ण है। निचली अदालत ने आरोपियों को बरी करके आमजन की भावनाओं को ठेस पहुंचाया है।

    आरोपियों ने भीड़ को उकसाने का काम किया
    न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा की पीठ ने अपना आदेश 90 पन्नों में दर्ज करते हुए कहा कि गैरकानूनी तौर पर एकत्रित लोगों ने बल और हिंसा का इस्तेमाल किया। पीठ ने कहा कि आरोपियों ने इस हिंसक भीड़ को भाषणों के द्वारा उकसाया। इतना ही नहीं साक्ष्य बताते हैं कि यह मौके पर मौजूद थे। लेकिन जब भीड़ हिंसक हुई, तो ये लोग वहां से निकल गए। जबकि हिंसा की मूल जड़ यही थे।

    गैरकानूनी तौर पर एकत्रित होने का केस होगा
    मामले में सह आरोपी मोहम्मद शोएब और मोहम्मद अबुजार को अन्य आरोपों से मुक्त कर दिया गया है। हालांकि इनके खिलाफ गैरकानूनी तौर पर एकत्रित होने का केस चलेगा। आरोप सही साबित होने पर अधिकतम छह माह कैद हो सकती है।

    सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाया
    उच्च न्यायालय ने आरोपी शरजील इमाम, सफूरा जरगर, मोहम्मद कासिम, महमूद अनवर, शहजर रजा, उमैर अहमद, मोहम्मद बिलाल नदीम और चंदा यादव के खिलाफ दंगों की विभिन्न धाराओं के तहत आरोपतय करने का आदेश दिया। साथ ही इन पर सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के आरोप में भी मुकदमा चलाने के निर्देश दिए हैं।

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