नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) में हाल ही में एक अनोखी याचिका लगाई गई, जिसमें चुनाव आयोग (Election Commission) को असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) की पार्टी AIMIM (ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलिमीन) का पंजीकरण रद्द करने का निर्देश देने की मांग की गई। याचिकाकर्ता का कहना था कि AIMIM का संविधान केवल मुस्लिमों के लिए आवाज उठाने की बात करता है,जो कि देश के धर्मनिरपेक्ष ढांचे के खिलाफ है। हालांकि कोर्ट ने याचिका को रद्द कर दिया।
जस्टिस प्रतीक जालान (Justice Prateek Jalan) ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि इसमें कोई दम नहीं है। उच्च न्यायालय ने आगे कहा कि याचिकाकर्ता की दलीलें AIMIM सदस्यों के उन मौलिक अधिकारों में हस्तक्षेप करने के बराबर हैं, जिसके तहत उन्हें अपनी पसंद के राजनीतिक विश्वासों और मूल्यों को मानते हुए खुद को एक राजनीतिक दल के रूप में स्थापित करने की छूट दी गई है।
यह याचिका तिरुपति नरसिम्हा मुरारी नाम के शख्स ने लगाई थी, उन्होंने इस आधार पर AIMIM के रजिस्ट्रेशन पर आपत्ति जताई कि एक राजनीतिक दल के रूप में इसका संविधान केवल एक धार्मिक समुदाय, यानी सिर्फ मुसलमानों के हितों को आगे बढ़ाने का इरादा रखता है। याचिका में तर्क दिया गया कि यह सोच धर्मनिरपेक्षता के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है, जबकि इसका पालन संविधान और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत प्रत्येक राजनीतिक दल को करना चाहिए।
अदालत ने कहा कि AIMIM ने जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 29ए की उस आवश्यक शर्तों को पूरा किया है, जिसके अनुसार किसी भी राजनीतिक दल के संवैधानिक दस्तावेजों में यह घोषित किया जाना चाहिए कि वह ‘संविधान और समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों के प्रति सच्ची आस्था और निष्ठा रखता है।’ कोर्ट ने कहा, ‘मौजूदा मामले के तथ्यों के आधार पर, यह आवश्यकता AIMIM द्वारा पूरी की गई है।’
20 नवंबर को पारित अपने फैसले में जस्टिस जालान ने लिखा, ‘याचिकाकर्ता ने स्वयं रिट याचिका के साथ 9 अगस्त 1989 का वह पत्र संलग्न किया है, जो AIMIM ने पंजीकरण के लिए अपने आवेदन के समर्थन में चुनाव आयोग के सामने प्रस्तुत किया था, जिसमें कहा गया था कि अधिनियम की धारा 29ए(5) के अनुसार इसके संविधान में संशोधन किया गया है।’
इसके बाद अपने फैसले अदालत ने इस याचिका को आधारहीन माना। फैसले में आगे कहा गया कि याचिकाकर्ता के तर्क AIMIM के सदस्यों के खुद को एक राजनीतिक दल के रूप में गठित करने के मौलिक अधिकारों में हस्तक्षेप करने के बराबर हैं। 17 पेज के फैसले में हाई कोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए अपवादों के अधीन, चुनाव आयोग के पास राजनीतिक दल को पंजीकृत करने के अपने फैसले की समीक्षा करने का कोई अधिकार नहीं है।
बता दें कि याचिकाकर्ता ने यह याचिका साल 2018 में उस वक्त दायर की थी, जब वह अविभाजित शिवसेना का सदस्य था। मामले की सुनवाई के दौरान अदालत को बताया गया कि याचिकाकर्ता अब भाजपा का सदस्य है।
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