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    दिल्ली HC ने छेड़छाड़ मामले में FIR रद्द करने से किया इनकार, कहा- शिकायत गलत निकली तो लड़की देगी क्षतिपूर्ति

  • September 03, 2022

    नई दिल्ली । छेड़छाड़ (molestation) के एक हाईप्रोफाइल मामले में दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने एफआईआर (FIR) खारिज करने से इनकार कर दिया। साथ ही कहा कि निचली अदालत में केस चलेगा, अगर आरोप गलत साबित हुए तो लड़की द्वारा आरोपी को क्षतिपूर्ति दी जाएगी। मामले का आरोपी यूएन में अहम पद नियुक्त था, लेकिन पीड़ित द्वारा यूएन को शिकायती पत्र लिखने के बाद उसे इस्तीफा देना पड़ा था।

    आरोपी ने एफआईआर खारिज करने के लिए हाईकोर्ट में यह याचिका दायर की थी। जस्टिस जसमीत सिंह ने क हा कि हाईकोर्ट ने 3 सितंबर 2021 को दोनों पक्षों को आदेश दिया था कि चूंकि वे मध्यस्थता प्रक्रिया में हैं, इसलिए मामले में जल्दबाजी न करें। इसके बावजूद लड़की ने यूएन को पत्र लिखा। इसी वजह से क्षतिपूर्ति को लेकर आदेश देना पड़ रहा है।


    मामला कुछ ऐसा है…
    लड़की ने आरोपी और अपने ससुराल पक्ष पर एफआईआर करवाई थी। इसके अनुसार आरोपी लड़की की ननद का बॉयफ्रेंड था। 13 दिसंबर 2019 की रात 9 बजे जब वह अपने ससुराल में थी, आरोपी ने उससे छेड़छाड़ की। उसने ससुराल वालों को बताया, तो सास-ससुर और ननद ने उसकी पिटाई कर दी।

    बचाव पक्ष के तर्क
    बचाव पक्ष ने कहा कि लड़की ने घटना के 1 साल बाद 16-17 दिसंबर 2020 को शिकायत दर्ज करवाई। यह कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग है।

    लड़की के अनुसार रात 9 बजे अपराध हुआ। आरोपी और उसकी ननद शाम पौने सात बजे साउथ एक्सटेंशन में थे लेकिन रात 08:47 बजे उन्होंने लाजपत नगर के एक स्टोर से खरीदारी की। इसके क्रेडिट कार्ड से भुगतान के साक्ष्य दिए गए। आरोपी का वहां से साउथ दिल्ली पहुंचना संभव नहीं था, जहां की घटना बताई गई है। बल्कि वे डिनर के बाद रात करीब सवा 11 बजे लड़की के ससुराल पहुंचे, रात डेढ़ बजे आरोपी कैब लेकर वहां से चला गया।

    लड़की के पति ने उससे तलाक के लिए 7 दिसंबर 2020 को अर्जी दी थी। इसी से भड़क कर उसने 16-17 दिसंबर को छेड़छाड़ का केस किया जो झूठा है।

    अभियोजन पक्ष के जवाब

    • लड़की के वकील ने कहा कि लड़की को आरोपों, देरी, बयानों में विरोधाभास या आचरण को लेकर सफाई देने की जरूरत नहीं है। केस का ट्रायल चल रहा है। बचाव पक्ष इस बारे में सुनवाई में सवाल कर सकता है। सभी साक्ष्यों के आधार पर अदालत ही इन पर निर्णय देगी।
    • एफआईआर में देरी इसलिए भी हुई क्योंकि घटना लड़की की शादी के महज 7 दिन बाद हुई। वह अपनी शादी को बचाए रखना चाहती थी, इसलिए चुप रही।

    शिकायतकर्ता को सुनना चाहिए
    हाईकोर्ट ने कहा कि बचाव पक्ष की दलीलों पर अपनी सफाई देने का मौका मिलना चाहिए। यह संवेदनशील मामला है, शिकायतकर्ता को सुनना चाहिए। हाईकोर्ट जांच एजेंसी या ट्रायल कोर्ट की तरह साक्ष्यों व गवाहियों की जटिलता में जाने का काम नहीं कर सकती। एफआईआर में एक संज्ञेय अपराध दर्ज है, इसलिए ट्रायल चलेगा। इसमें जो चीजें सामने आ रही हैं, ट्रायल कोर्ट ही उनकी समीक्षा करेगी और निर्णय देगी।

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