नयी दिल्ली । एक ताजा शोध (Research) ने इस बात की पुष्टि की है कि पंजाब के कुछ जिलों में किसानों (Farmers) द्वारा पराली जलाने से (Due to Stubble Burning) राजधानी दिल्ली (Delhi) में अधिक वायु प्रदूषण (More Air Pollution) होता है । नवंबर के दौरान हवा में पीएम 2.5 (पार्टिकुलेट मैटर) का स्तर काफी बढ़ जाता है।
किसानों द्वारा पराली जलाये जाने से दिल्ली में वायु प्रदूषण बढ़ने के आपसी संबंधों को लेकर काफी राजनीतिक बहसबाजी होती रही है। किसान संगठनों का कहना है कि दिल्ली के वायु प्रदूषण को पराली जलाने से जोड़ना गलत है और इसके कारण परिवहन, कारखाने आदि हैं। हालांकि, जर्नल ऑफ एन्वॉयरमेंटल क्वॉलिटी में प्रकाशित शोध में इसके ठीक विपरीत निष्कर्ष निकला है। शोध के मुताबिक नवंबर के दौरान दिल्ली की हवा में पीएम 2.5 का गंभीर स्तर संगरुर, मनसा, बठिंडा, पटियाला, लुधियाना, बरनाला और पटियाला जिलों में किसानों द्वारा पराली जलाने के कारण होता है।
शोधकर्ताओं के मुताबिक इस अवधि के दौरान दिल्ली की हवा में पीएम 2.5 के गंभीर स्तर में मौसम का उतना योगदान नहीं है, बल्कि इसका सीधा संबंध तीन दिन पहले जलायी गयी पराली से है।शोध के अनुसार, हवा की गति और अन्य मौसम संबंधी कारक किसी दिन हवा में मौजूद पीएम 2.5 स्तर के लिए जिम्मेदार तो होते हैं, लेकिन इस पर सबसे अधिक प्रभाव इस बात का पड़ता है कि तीन दिन पहले कितनी अधिक मात्रा में पराली जलायी गयी है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि इस शोध से नीतिनिर्माताओं को लोकेशन आधारित कार्रवाई करने में मदद मिलेगी यानी पहली बार ये पता चल पाया है कि किन जगहों पर पराली जलाने की घटना अधिक हो रही है। पराली जलने की घटनायें जहां अधिक होती हैं, तो उस जबह के अनुसार नीतियों का निर्माण किया जा सकता है और इससे पीएम 2.5 के उत्सर्जन को कम करने की भी लागत कम होगी।
शोध रिपोर्ट के अनुसार, सितंबर, अक्टूबर और नवंबर में दिल्ली की हवा में सबसे अधिक पीएम 2.5 का स्तर होता है। सबसे अधिक पीएम 2.5 का स्तर नवंबर में होता है।
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