नई दिल्ली । सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) मंगलवार को राष्ट्रीय राजधानी में प्रशासनिक सेवाओं पर नियंत्रण (Control of Administrative Services) के संबंध में केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच विवाद (Dispute between Delhi Govt vs Centre) पर सुनवाई के लिए (To Hear) सहमत हो गया (Agrees) ।
दिल्ली सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने प्रधान न्यायाधीश एन.वी. रमना की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष मामले को तत्काल सूचीबद्ध करने का उल्लेख किया। पीठ में मौजूद अन्य न्यायमूर्ति ए.एस. बोपन्ना और हिमा कोहली ने मामले की सुनवाई 3 मार्च को निर्धारित की।न्यायमूर्ति ए.के. सीकरी और शीर्ष अदालत के न्यायमूर्ति अशोक भूषण ने फरवरी 2019 में सेवाओं पर दिल्ली सरकार और केंद्र की शक्तियों के सवाल पर एक विभाजित फैसला दिया और मामले को 3-न्यायाधीशों की पीठ के पास भेज दिया गया था। न्यायमूर्ति भूषण ने कहा कि दिल्ली सरकार के पास ‘सेवाओं’ पर कोई अधिकार नहीं है, जबकि न्यायमूर्ति सीकरी ने बीच का रास्ता अपनाया।
दिल्ली सरकार ने तर्क दिया था कि केंद्र ने राजधानी में निर्वाचित सरकार को अधिकारियों पर किसी भी तरह के प्रशासनिक नियंत्रण से बाहर रखा है। सरकार ने आगे तर्क दिया कि केंद्र सरकार के आदेश पर उपराज्यपाल (एलजी) के माध्यम से अधिकारी कार्य करना जारी रखे हुए हैं।
न्यायमूर्ति सीकरी ने निष्कर्ष निकाला कि सचिव, विभागाध्यक्ष और संयुक्त सचिव के रैंक के अधिकारियों के स्थानांतरण और पोस्टिंग पर फाइलें सीधे उप-राज्यपाल (एल-जी) को प्रस्तुत की जा सकती हैं। न्यायमूर्ति भूषण ने कहा कि संविधान की सातवीं अनुसूची में राज्य सूची की प्रविष्टि 41, ‘राज्य लोक सेवाओं’ से संबंधित, दिल्ली विधानसभा के दायरे से बाहर थी।
न्यायमूर्ति सीकरी ने कहा कि डीएएनआईसीएस (दिल्ली, अंडमान निकोबार द्वीप समूह सिविल सेवा) कैडर के लिए, फाइलों को मुख्यमंत्री के नेतृत्व में मंत्रिपरिषद के माध्यम से उपराज्यपाल को दी जा सकती है। न्यायमूर्ति सीकरी ने कहा था कि दिल्ली की स्थिति ‘अजीब’ थी।
फरवरी 2019 के फैसले ने जुलाई 2018 में एक संविधान पीठ के फैसले का पालन किया, जहां पीठ ने कहा कि उपराज्यपाल राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र सरकार के मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह से बाध्य थे।
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