– सियाराम पांडेय ‘शांत’
दुनिया में भारत की ख्याति अभीतक हथियारों के सबसे बड़े आयातक देश की रही है लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद भारत का चिंतन बदला है। वह अपनी छवि सुधारने के बारे में सोच रहा है। उसे लगता है कि वह रक्षा उत्पाद क्यों नहीं बना सकता और दुनिया के अन्य जरूरतमंद देशों को उसका निर्यात क्यों नहीं कर सकता ? आत्मनिर्भर भारत के अपने इसी संकल्प की बदौलत वह रक्षा उत्पादन का हब बनना चाहता है। नागपुर और हैदराबाद के बाद अगर उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में उन्नत श्रेणी की ब्रह्मोस सुपरसोनिक मिसाइल बनाने की अवधारणा बलवती हो रही है तो इसे उसी रूप में देखा जा सकता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तो रक्षा उत्पाद खरीदते ही तब हैं जब संबंधित देश उसकी तकनीकी का भी ज्ञान दे। उत्तर प्रदेश में रक्षा प्रौद्योगिकी और रक्षा उद्योग के विकास को पंख तब लगे थे जब लखनऊ में वर्ष 2018 में आयोजित निवेशक सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तर प्रदेश में डिफेंस कॉरिडोर बनाने की घोषणा की थी। इस अभियान ने और जोर तब पकड़ा था जब वर्ष 2020 में डिफेंस एक्सपो का आयोजन लखनऊ में हुआ। इस बीच डिफेंस कॉरिडोर योजना को आगे बढ़ाने के लिए कुछ कंपनियों ने सरकार से अनुबंध भी किया लेकिन अचानक भारत समेत दुनिया भर में कोरोना संक्रमण के चलते इस अभियान का पहिया थम-सा गया था लेकिन स्थिति अनुकूल होते ही भारत और रूस के संयुक्त उपक्रम ब्रह्मोस की अगली पीढ़ी की मिसाइल बनाने के लिए जिस तरह एयरोस्पेस के मुख्य कार्यकारी अधिकारी और प्रबंध निदेशक सुधीर मिश्र ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात की, उससे इस अभियान को एकबार फिर पंख लग गए हैं। उत्तर प्रदेश सरकार भी इसे लेकर बेहद उत्साहित है।
माना जा रहा है कि इससे न केवल उत्तर प्रदेश रक्षा उद्योग कॉरिडोर योजना परवान चढ़ेगी बल्कि ब्रह्मोस की नई पीढ़ी की मिसाइल बनने से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लखनऊ का भी महत्व बढ़ेगा। हालांकि लखनऊ रक्षा उत्पादन के क्षेत्र में पहचान का मोहताज नहीं है। यहां पहले से ही रक्षा मंत्रालय का एक उपक्रम ‘हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड’ चल रहा है लेकिन ब्रह्मोस सुपरसोनिक मिसाइल का लखनऊ से बनना इस शहर ही नहीं, पूरे प्रदेश के लिए गौरव की बात होगी।
इस परियोजना से तकरीबन 500 अभियन्ताओं एवं तकनीशियनों को प्रत्यक्ष रोजगार मिलेगा। इसके अलावा 5 हजार लोगों को अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार हासिल होगा। लखनऊ में आगामी तीन वर्ष में ब्रह्मोस की अगली पीढ़ी के सौ प्रक्षेपास्त्र बनाने की योजना है। बकौल,मुख्यमंत्री उन्नत श्रेणी की ब्रह्मोस मिसाइल के उत्पादन के लिए लगभग 200 एकड़ भूमि की जरूरत होगी। इस परियोजना को पूरा करने में लगभग 300 करोड़ रुपये का निवेश होगा। जमीन उपलब्ध होने के तीन माह के अन्दर निर्माण कार्य शुरू हो जाएगा।
जाहिर-सी बात है कि लखनऊ में ब्रह्मोस मिसाइल निर्माण से उत्तर प्रदेश एरोस्पेस और डिफेंस हब बनने की ओर तेजी से अग्रसर होगा। ब्रह्मोस मिसाइल के विभिन्न सिस्टम तथा सब-सिस्टम के निर्माण से जुड़ी 200 से अधिक औद्योगिक इकाइयां भी इस परियोजना के आसपास लगेंगी। इस कॉरिडोर में हथियार और रक्षा उपकरणों के कारखाने लगेंगे। इससे तकरीबन ढाई लाख हाथों को काम मिलेगा। यूपी डिफेंस कॉरिडोर योजना के पहले चरण में चित्रकूट, जालौन, कानपुर, झांसी और अलीगढ़ शामिल हैं। यह कॉरिडोर भारत सरकार के मेक इन इंडिया परियोजना के तहत काम करेगा। इस डिफेन्स कॉरिडोर में देशी-विदेशी कंपनियां करीब 20 हजार करोड़ रुपये का निवेश करेंगी। कॉरिडोर में ड्रोन, वायुयान और हेलीकॉप्टर असेंबलिंग सेंटर, डिफेंस पार्क, बुलेट प्रूफ जैकेट, रक्षा के क्षेत्र में आर्टिफिशल इंटेलीजेंस को बढ़ावा देने के उपकरण, ऑर्डिनेंस फैक्ट्री, डिफेंस इनोवेटिव हब आदि बनने हैं।
रक्षा क्षेत्र में कार्य कर रहीं देशी और विदेशी 55 बड़ी कंपनियों ने फैक्ट्री लगाने के लिए कॉरिडोर में सरकार से जमीन मांगी है। इनमें से 19 बड़ी कंपनियों को गत दिनों राज्य में एक्सप्रेस वेज औद्योगिक विकास प्राधिकरण ने 55.4 हेक्टेयर जमीन आवंटित भी कर दी है। ये 19 कंपनियां 1245 करोड़ रुपए का निवेश कर रही हैं।
तथ्य है कि फरवरी 2020 में लखनऊ में आयोजित डिफेंस एक्सपो के दौरान डिफेंस प्रोडक्ट से जुड़ी देशी और विदेशी कंपनियों ने कॉरिडोर में निवेश के लिए 50 हजार करोड़ के एमओयू किए थे। सबसे अधिक एमओयू अलीगढ़ में खैर रोड पर अंडला में बनाए जा रहे कॉरिडोर के लिए हुए हैं। इसके बाद लखनऊ नोड में कंपनियों ने निवेश करने में रुचि दिखाई है। अलीगढ़ नोड में फैक्ट्री लगाने के लिए 29 कंपनियों ने अपने प्रपोजल सरकार को सौंपे और फैक्ट्री लगाने के लिए जमीन उपलब्ध कराने का आग्रह किया है। लखनऊ नोड में 11, झांसी नोड में छह, कानपुर नोड में आठ कंपनियों ने फैक्ट्री लगाने के लिए जमीन उपलब्ध कराने का आग्रह किया है।
भारत इस साल अपनी आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है और इसी के साथ उसने अगले 25 वर्ष के अपने संकल्प भी जाहिर किए हैं। उन्हें मूर्त रूप देने की कार्ययोजना भी बना रहा है। केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने दिल्ली के डीआरडीओ भवन में पर्वत अभियान चलाने और भारत को रक्षा उत्पादन के क्षेत्र में आयातक नहीं, निर्यातक देश बनाने का मंतव्य प्रदर्शित किया है तो उसके अपने निहितार्थ हैं। 24 अगस्त को नागपुर में भी आयोजित मल्टी मोड हैंड ग्रेनेड की हैंडिंग ओवर सेरेमनी में उन्होंने कुछ इसी तरह का विश्वास व्यक्त किया है।
केंद्र सरकार ने उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु में दो डिफेंस कॉरिडोर बनाने की घोषणा कर रखी है। उम्मीद की जानी चाहिए कि उक्त कॉरिडोर भविष्य में न केवल देश की घरेलू रक्षा जरूरतों को पूर्ण करेंगे, बल्कि भारत को रक्षा उत्पादन के क्षेत्र में एक पूर्ण निर्यातक की भूमिका में भी दुनिया के समक्ष प्रस्तुत करेंगे। रक्षा मंत्रालय ने डिफेंस प्रोडक्शन और एक्सपोर्ट प्रमोशन पॉलिसी 2020 का ड्राफ्ट जारी कर इस बात का संकेत भी दे दिया है।
भारत की यह रक्षा संबंधी नीति वर्ष 2025 तक लगभग 1.75 लाख करोड़ रुपये के वार्षिक टर्नओवर के लक्ष्य को प्राप्त करेगी, ऐसी अपेक्षा की जा सकती है। वर्ष 2021-22 के बजट में घरेलू खरीद के लिए बजट 54 प्रतिशत से बढ़ाकर 64 प्रतिशत किए जाने और इस वर्ष के लिए घरेलू रक्षा उद्योग की 15 प्रतिशत खरीद निजी क्षेत्र के लिए निर्धारित करने का निर्णय इस बात का इंगित है कि रक्षा उत्पादन क्षेत्र में देश को आगे ले जाने की दिशा में सरकार गंभीरता के साथ आगे बढ़ रही है। वैसे भी रक्षा मंत्री की इस बात में दम है कि इकाइयां अपनी रिसर्च और डेवेलपमेंट में कई बार 80-90 फीसदी तक राशि खर्च कर देती हैं, जबकि उत्पाद की लागत तो महज 10-20 फीसदी ही होती है। इस दिशा में भी सोचने और प्रभावी कदम उठाने की जरूरत है।
(लेखक हिन्दुस्तान समाचार से संबद्ध हैं।)
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