नई दिल्ली। रक्षा मंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार और रक्षा अनुसंधान एवं विकास परिषद (DRDO) के पूर्व प्रमुख डॉ. जी सतीश रेड्डी ने कहा कि भारत मिसाइल तकनीक में आत्मनिर्भर बन चुका है और वैश्विक पाबंदियों ने इस आत्मनिर्भरता को हासिल करने में ‘मदद’ की है।
डीआरडीओ के पूर्व प्रमुख ने कहा, भारतीय मिसाइल कार्यक्रम बहुत आगे बढ़ चुका है और कई मिसाइल सिस्टम विकसित किए गए हैं। सतह से सतह पर मार करने वाली मिसाइल, सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल और हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइल, टैंक रोधी मिसाइल और कई प्रकार की मिसाइलें। डॉ. रेड्डी ने कहा कि देश ने आज ऐसी कई मिसाइलें विकसित कर ली हैं, जो कोई भी देश अपने पास रखना चाहेगा। उन्होंने कहा, जब देश ने अपना मिसाइल कार्यक्रम शुरू किया और पृथ्वी और अग्नि का पोखरण से परीक्षण किया तो देश पर कई पाबंदियां लगाई गईं। पहले हम कई उपकरणों और प्रणालियों के लिए विदेशों पर निर्भर थे।
डॉ. रेड्डी ने कहा, आज देश मिसाइल प्रणाली के किसी भी महत्वपूर्ण उपकरण के लिए किसी अन्य देश पर निर्भर नहीं है। हमने सभी प्रणालियां देश में विकसित कीं और उसका घरेलू स्तर पर उत्पादन होता है। उन्होंने कहा, हम भी मिसाइलों के विकास के चरण में थे, इसलिए आप बड़ी संख्या में उप-प्रणालियों या घटकों का इंतजार नहीं कर सकते थे, जो आपको बाहर से मिलते हैं। जिस दिन हमने मिसाइल कार्यक्रम शुरू किया, उस समय के नेतृत्व ने निश्चित रूप से सोचा था कि चलो समानांतर विकास करते हैं। फिर उप-प्रणालियों और महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों के समानांतर विकास कार्य भी शुरू हुए।
देश में रक्षा और एयरोस्पेस क्षेत्र में हजारों स्टार्टअप कर रहे काम
डॉ. रेड्डी ने कहा, देश में रक्षा और एयरोस्पेस क्षेत्र में काम कर रहे स्टार्टअप की संख्या हजारों में है और वे सभी प्रकार की विनिर्माण और विकास गतिविधियों में शामिल हैं। रक्षा और एयरोस्पेस तकनीक में काम कर रहे स्टार्टअप में 23 से 25 साल के युवा काम में जुटे हैं। उन्होंने कहा, स्टार्टअप अब देश में एक आंदोलन है और इनकी संख्या में अभूतपूर्व बढ़ोतरी हुई है। उन्होंने कहा कि लगभग एक दशक पहले इनकी संख्या काफी कम थी। युवा अलग-अलग दिशाओं में विभिन्न घटकों, स्पेयर पार्ट्स और नई प्रौद्योगिकियों के लिए काम कर रहे हैं। रेड्डी ने उम्मीद जताई कि यह महत्वपूर्ण बदलावों में से एक है और देश को आगे ले जाएगा।
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