बंगलुरु। देश में कोरोना महामारी की दूसरी लहर के बीच म्यूकरमाइकोसिस यानी ब्लैक फंगस ने अपना जमकर कहर बरपाया। सैकड़ों मरीजों ने कोरोना वायरस को मात दे दी, लेकिन ब्लैक फंगस से जिंदगी की जंग हार बैठे। कर्नाटक में कोरोना संक्रमण से ठीक होने के बाद ब्लैक फंगस की शिकार में आए अब तक 303 लोगों की मौत हो चुकी है, जिनमें से 34 फीसदी मामले राज्य की राजधानी बंगलुरु से सामने आए।
ब्लैक फंगस एक तरह का फंगल संक्रमण है, जो कोरोना से ठीक होने के बाद मरीजों को अपना शिकार बना रहा है। कोरोना महामारी की दूसरी लहर के बीच देशभर में बड़ी संख्या में लोग ब्लैक फंगस से संक्रमित हो गए। देश में इसे महामारी रोग अधिनियम के तहत महामारी घोषित किया गया था।
बंगलुरु में गई इतने लोगों की जान
अंग्रेजी समाचार पत्र टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, कर्नाटक में 9 जुलाई तक 3491 मरीजों में ब्लैक फंगस से संक्रमित होने की पुष्टि हुई। इनमें से 8.6 फीसदी की मौत हो चुकी है। ब्लैक फंगस के सबसे अधिक 1109 मामले राजधानी बंगलुरु के शहरी क्षेत्र में मिले। इसके बाद धाड़वाड़ में 279, विजयपुरा में 208 और कालबुर्गी में 196 मरीज मिले। बंगलुरु में ब्लैक फंगस से संक्रमित 104 मरीजों की मौत हो गई। बंगलुरु के बाद सबसे ज्यादा मौतें कालबुर्गी में 23 लोगों की जान गई।
संक्रमण का कारण?
देश में कोरोना महामारी की दूसरी लहर के बीच ब्लैक फंगस के मामले मिलना शुरू हुए। यह संक्रमण कैसे फैलना शुरू हुआ, इस बारे में अभी तक साफ तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता है। हालांकि, कहा जा रहा है कि स्टेरॉयड के ज्यादा इस्तेमाल से मरीज म्यूकरमाइकोसिस के शिकार हुए।
यह है ज्यादा मौतों की वजह
रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से बताया गया कि शुरुआती दिनों यानी मई से जून के बीच ब्लैक फंगस से हुई मौतों की वजह एंटी-फंगल दवा, लिपोसोमल एम्फोटेरिसिन बी दवा की भारी कमी को बताया जा रहा है। दवा की अत्यधिक कमी के कारण ब्लैक फंगस संक्रमित के रोगियों को दवा की एक खुराक 2-3 दिनों में एक बार दी जाती थी, जबकि दिन में 5-7 खुराक की आवश्यकता होती थी। एक डॉक्टर ने बताया कि एंटी फंगल दवा का स्टॉक नहीं था। जून मध्य के बाद प्रॉपर दवाओं का स्टॉक मिला है।
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