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    दीपिका के सधे निशानें

  • July 03, 2021


    अरुण नैथानी

    दीपिका के सधे निशानों से प्रतिष्ठा के जो दीप जले हैं, उसने देश का नाम रोशन किया है। हाल ही में पेरिस में संपन्न तीरंदाजी विश्वकप में उसने तीन सोने के पदक अपने बनाये हैं। गरीबी की तपिश में निखरी दीपिका अब दुनिया की नंबर वन धनुर्धर बन गई हैं। दुनिया में पहली बार सुखद संयोग यह कि दीपिका और उसके पति के तीर ने सोने पर निशाना लगाया है। विश्व तीरंदाजी में यह पहला मौका है कि पति-पत्नी ने अपने देश के लिये सोने के तमगे जीते हों। दोनों की इस सुनहरी कामयाबी से भारत की ओलंपिक में सोने के पदक की उम्मीदें बढ़ गई हैं। यह दूसरी बार है जब दीपिका ओलंपिक से ठीक पहले तीरंदाजी में दुनिया की नंबर एक खिलाड़ी बनी हैं। दीपिका ने पेरिस में हुए विश्व कप में इतिहास रचते हुए एकल, महिला रिकर्व टीम और मिश्रित युगल वर्ग में स्वर्ण पदक जीता है। दीपिका विश्व स्तरीय प्रतियोगिता में ऐसा कमाल करेगी, ऐसा किसी ने सोचा भी न था। वह भी व्यक्तिगत स्पर्धा में रूसी खिलाड़ी को 6-0 से हराकर उसने सबको हैरत में डाल दिया।

    वाकई दीपिका के करिश्में से पैदा हुई चमक से पूरी दुनिया की आंखें चुंधियायी हुई हैं। उसका जज्बा देखिये कि इस सफलता के बाद भी पैर जमीन पर हैं। उसने कहा कि ओलंपिक जीतने के लिये मैं अपने खेल में और सुधार करूंगी। मैं लगातार सीखती रहूंगी। ओलंपिक जीतना मेरा सपना है। यूं तो मेहनती दीपिका ने कड़े संघर्ष के बाद यह मुकाम हासिल किया है लेकिन धनुर्धर पति अतानु दास मिलने से उसका उत्साह बढ़ा है। जीतने की प्रेरणा बढ़ी है। उसकी कामयाबी में निखार आया है। अभ्यास के दायरे व गुणवत्ता में इजाफा हुआ है।

    सही मायनों में दीपिका ने अपने परिवार की गरीबी से लड़ने के लिये धनुष उठाया था। कड़ी मेहनत व तपस्या के बाद आज न केवल दुनिया की नंबर एक खिलाड़ी बनी हैं बल्कि अपने परिवार को आर्थिक संबल और प्रतिष्ठा भी दिलाई है। लेकिन तीरंदाजी का यह सफर इतना आसान भी नहीं था। पहले पिता ने उसके लड़की होने के कारण उसे सैकड़ों मील दूर एकेडमी भेजने से मना कर दिया था। वजह यह कि लोग कहेंगे कि बच्ची को नहीं पाल पा रहे हैं। झारखंड में बेहद गरीबी में पली दीपिका का जन्म भी बेहद मुश्किलों में हुआ। जब उसके पैदा होने से पहले उसकी मां को अस्पताल ले जाया जा रहा था तो वह अस्पताल पहुंच नहीं पायी और टैंपो में ही उसने दीपिका को जन्म दिया। उन दिनों पिता शिव नारायण महतो छोटी-मोटी दुकान चलाते थे और मां गीता पांच सौ रुपये माह की नौकरी करती थी। उसके बाद पिता टैंपो चलाते थे और मां किसी अस्पताल में चतुर्थ श्रेणी की कर्मचारी थी। एक बार जब वह अपने ननिहाल गई तो ममेरी बहन ने किसी आर्चरी एकेडमी के बारे में बताया। जहां सब कुछ मुफ्त है आर्चरी की किट भी, रहना भी और खाना भी। तब तीरंदाजी सीखने की ललक के साथ माता-पिता का बोझ कम करना भी मन में था ताकि बाकी सदस्यों की परवरिश ठीक से हो सके। लेकिन पिता ने दोटूक शब्दों में मना कर दिया। लेकिन बाद में पिता को उसकी ललक और जिद के आगे झुकना पड़ा। वह कालांतर में खरसांवा एकेडमी में तीरंदाजी सीखने पहुंच गई।

    हालांकि, वहां संसाधनों का अभाव था। बाथरूम भी नहीं था और नहाने के लिये नदी पर जाना पड़ता था। जंगली जानवरों का भय बना रहता था। लेकिन जब सीखने की ललक और कुछ कर गुजरने की तमन्ना हो तो ऐसी चुनौतियां कहां टिक पाती हैं। कड़ी मेहनत व लगन से उसकी नई राहें खुलती चली गईं। आज 27 साल की उम्र में वह दूसरी बार दुनिया की नंबर वन खिलाड़ी बन गई है। उसकी झोली में आये विश्व स्तरीय स्पर्धाओं नौ स्वर्ण, बारह रजत तथा सात कांस्य पदक बहाये पसीने की गवाही देते हैं।

    दीपिका ने अपनी इस यात्रा के चौदह सालों में अपार प्रतिष्ठा प्राप्त कर तमाम पुरस्कार जीते हैं। इस लंबे समय में तमाम उतार-चढ़ाव आये हैं। यहां तक कि शुरुआत में कमजोर शरीर होने के कारण उसे एकेडमी ने दाखिला देने तक से मना कर दिया। उसने कुछ माह का समय मांगा और खुद को साबित किया। उसने तीरंदाजी की शुरुआत बांस के धनुष-बाण से की। पहली बार ओलंपिक गई थी तो घर की आर्थिक हालत काफी पतली थी। लेकिन चौदह साल की उम्र में धनुष उठाने वाली दीपिका कुमारी आज सधे हुए निशाने लगा रही है।

    सही मायनों में दीपिका की प्रतिभा को धार तब मिली जब उनका परिचय वर्तमान कोच धर्मेंद्र तिवारी से हुआ। उन्होंने उसकी प्रतिभा को निखारा और उसके तीरों को धार दी। वर्ष 2008 में जूनियर वर्ल्ड चैंपियनशिप की चयन प्रक्रिया के दौरान उसका संपर्क कोच धर्मेंद्र तिवारी से हुआ। वे उसे अपनी टाटा आर्चरी एकेडमी लाये। फिर उसकी प्रतिभा को निखारने के लिये अनुकूल वातावरण मिला। फिर वह वर्ष 2012 में विश्व की नंबर एक तीरंदाज बनी। लेकिन ओलंपिक स्पर्धाओं में वह इतनी भाग्यवान न रही, पहली बार वह तेज हवाओं के साथ सटीक निशाने न लगा सकी और ब्रिटिश खिलाड़ी से हार गई। हार की टीस उसे काफी दिनों तक परेशान करती रही। एक बार फिर वह ओलंपिक से ठीक पहले विश्व नंबर तीरंदाज बनी है और सवा अरब देशवासियों की उम्मीदें उफान पर हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि वह इसी माह टोक्यो ओलंपिक से पति के साथ सोना लेकर लौटे।

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