उज्जैन। जिस तरह कोरोना की दूसरी लहर ने मरीजों को आक्सीजन और रेमडेसिविर इंजेक्शन के लिए परेशान होना पड़ रहा था। उसी तरह अब डेंगू पीडि़तों को भी प्लेटलेट्स बढ़ाने के लिए दान में आया रक्त नहीं मिल पा रहा है। इसके पीछे बड़ा कारण यह है कि जिले की 70 फीसदी से ज्यादा आबादी वैक्सीन लगवा चुकी है और टीकाकरण के तीन महीने बाद ही व्यक्ति ब्लड दान कर सकता है।
वैक्सीनेशन कार्यक्रम शुरु होने के बाद से लेकर अब तक जिले की साढ़े 16 लाख के लगभग आबादी में से 14 लाख से अधिक लोगों को वैक्सीन का पहला डोज लग गया है और करीब साढ़े 4 लाख लोग दूसरा डोज लगवा चुके हैं। इनमें से 40 फीसदी से ज्यादा लोग ऐसे हैं जिन्हें वैक्सीन का पहला या दूसरा डोज लिए तीन महीने से ज्यादा का समय नहीं हुआ है। इसी के चलते पिछले 6 महीने से लगातार जिले में रक्तदान करने वाले लोगों की कमी पड़ रही है। इधर जिले में लगातार डेंगू के मरीज बढ़ते जा रहे हैं। जिला अस्पताल में ही डेंगू पीडि़तों में प्लेटलेट्स की कमी दूर करने के लिए रोजाना लगभग 25 यूनिट से ज्यादा की डिमांड आ रही है। जबकि जिला अस्पताल की ब्लड बैंक से इसकी आधी ही आपूर्ति हो पा रही है। जिले में रक्तदान कार्यक्रमों का आयोजन भी पिछले 6 महीनों से लगातार घटता जा रहा है। पहले के मुकाबले अब जिला अस्पताल की ब्लड यूनिट में ही पहले के मुकाबले आधे से कम लोग रक्तदान करने आ रहे हैं। इसके पीछे चिकित्सक बड़ा कारण वैक्सीनेशन को भी बता रहे हैं।
3 महीने तक बनती है एंटी बॉडी
इस बारे में जिला टीकाकरण अधिकारी डॉ. के.सी. परमार ने बताया कि वैक्सीन का पहला या दूसरा डोज लेने के बाद 3 महीने के अंतराल तक शरीर में कोरोना वायरस के खिलाफ एंटी बॉडी बनती रहती है। यही कारण है कि स्वास्थ्य विभाग की तय गाईड लाईन के मुताबिक इस अवधि में वैक्सीन का डोज ले चुके व्यक्ति को ब्लड डोनेड नहीं करना चाहिए। वैक्सीनेशन के तीन महीने बाद यह प्रक्रिया पूरी हो जाती है और उसके बाद ही व्यक्ति ब्लड डोनेड कर सकता है। चिकित्सकों में चर्चा है कि इसी गाईड लाईन के चलते जिले में लगातार रक्तदान का आंकड़ा कम हुआ है। इसका असर डेंगू पीडि़त मरीजों के लिए जरूरी प्लेटलेट्स की डिमांड पर पड़ रहा है।
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved