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    जिला उपभोक्ता आयोग के फैसले हवा-हवाई… 734 उपभोक्ताओं को सालों बाद भी नहीं मिला न्याय

  • January 17, 2023

    भोपाल। उपभोक्ताओं को उनके अधिकार दिलाने के लिए 1986 में देश में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम विधेयक पारित किया गया। 1991, 1993 और 2003 में इस अधिनियम में कई बदलाव किए गए। इस अधिनियम के तहत उपभोक्ताओं को कई अधिकार दिए गए हैं। उपभोक्ताओं के अधिकारों को संरक्षण और न्याय देने के लिए उपभोक्ता फोरम का गठन किया गया। उपभोक्ता फोरम के मामलों पर नजर डालें तो लोगों को उपभोक्ता अधिकारों का लाभ भी मिल रहा है। आलम यह है की जिला उपभोक्ता आयोग के फैसले के बाद भी 734 उपभोक्ताओं को सालों से न्याय नहीं मिला है। इनमें 2003 से 2010 तक पेंडिग मामले 34, 2011 से 2015 तक पेंडिग मामले 132 और 2016 से 2022 तक पेंडिग मामले 568 हैं।
    जानकारी के अनुसार वर्ष 2003 से लेकर वर्ष 2022 तक जिला उपभोक्ता आयोग ने जो फैसले किए हैं, उनमें से 734 मामलों में उपभोक्ताओं को अभी तक न्याय नहीं मिला है। जिला उपभोक्ता आयोग में 2003 में हुए एक फैसले में अब तक उपभोक्ता को न्याय नहीं मिला। भागवत बनाम सर्वोदय गृह निर्माण सहकारी समिति का ये मामला 20 साल से चल रहा है। इसमें आज तक उनको न्याय नहीं मिला है। इस केस में उपभोक्ता ने थक कर अपनी ही सुनवाई में आना बंद कर दिया। ऐसे एक नहीं 734 मामलों में आदेश का पालन नहीं हुआ। इनसे संबंधित उपभोक्ताओं ने अब आस ही छोड़ दी है। दरअसल 1994 में प्लॉट की जमीन ली थी लेकिन 10 साल तक बिल्डर टालमटोल करता रहा। 2003 में उपभोक्ता आयोग ने 50 हजार की रकम दिलाई लेकिन आज तक वो उपभोक्ता तक नहीं पहुंची। बिल्डर कई सालों से जेल में है। ये रकम भी आज ब्याज लगकर काफी हो गई है। इस लेटलतीफी की वजह से कई उपभोक्ता तो अपनी शिकायतों तक को ही भूल गए हैं। राजगढ़ की रहने वाली दीपिका वासवानी के पक्ष में उपभोक्ता आयोग ने 2007 में फैसला सुनाया था। लेकिन आज 15 साल बाद भी आयोग के फैसले का पालन नहीं हुआ है। विपक्षी ने परिवादी की 3 लाख 67 हजार की राशि आज तक वापस नहीं लौटाई और न ही भूमि का आवंटन किया। उपभोक्ता ने बताया कि उन्होंने कई बार आयोग और पुलिस दोनों से संपर्क करने की कोशिश की लेकिन कुछ पता नहीं चल पा रहा है। अब न्याय की उम्मीद छोड़ दी।


    248 मामलों में वारंट जारी
    उपभोक्ता आयोग में 2003 से लेकर 2022 के ऐसे कुल 734 मामले हैं जिनमें अभी तक आदेश की पालना नहीं हुई है। इनमें से 248 मामलों में वारंट जारी है वहीं 486 मामले राज्य आयोग या राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग में चल रहे हैं। लेकिन इनमें अब उपभोक्ता भी मौजूद नहीं रहते हैं। 248 जारी वारंट में से 180 मामलों में जमानती वारंट हैं वहीं 68 मामलों में गिरफ्तारी वारंट जारी किए गए हैं। लेकिन ये तामील नहीं हो पा से रहे हैं। इनमें से ज्यादातर मामले निजी सहकारी समितियां और बिल्डर्स के खिलाफ हैं। भोपाल उपभोक्ता आयोग के पूर्व मेंबर सुनील श्रीवास्तव ने बताया कि तामील नहीं होने के पीछे कई कारण हैं। कई बार कंपनी अपना एड्रेस बदल देती हैं तो कई बार दूसरे शहर में शिफ्ट हो जाते हैं। कई मामलों में आरोपियों को कोर्ट से जेल की सजा हो चुकी है। ये लोग पैसे, प्रॉपर्टी अपने पत्नी और बच्चों के नाम कर देते हैं। भोपाल उपभोक्ता आयोग बैंच क्रमांक 1 के अध्यक्ष योगेश दत्त (शुक्ल)का कहना है कि उपभोक्ताओं के पक्ष में फैसला सुनाने के बाद भी विपक्षी पालन नहीं करते। इनमें वारंट जारी करते हैं, लेकिन 99 फीसदी मामलों में पुलिस विभाग की ओर से वारंट तामील नहीं होता हैं।

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