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27 प्रतिशत आरक्षण पर जल्द हो सकता फैसला

March 29, 2022

  • सरकार ने 7 बिंदुओं के आधार पर 48 जिलों का डाटा जुटाया

भोपाल। मप्र में अन्य पिछड़ा वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण देने के मसले पर जल्द ही तस्वीर साफ हो सकती है। इस मामले पर सोमवार को जबलपुर हाई कोर्ट में सुनवाई हुई। बिसेन आयोग ने प्रदेश के 48 जिलों का सर्वे कर लिया है। महाधिवक्ता ने हाईकोर्ट में कहा कि सरकार ओबीसी वर्ग से संबंधित डाटा हाई कोर्ट में पेश करना चाहती है। इसके लिए कोर्ट से कुछ मोहलत मांगी गई। इस पर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को 4 हफ्ते की मोहलत दी है। मामले की अगली सुनवाई 27 अप्रैल को होगी। जबलपुर हाईकोर्ट की मुख्य पीठ में सोमवार को नई बेंच में इस मामले की सुनवाई शुरू हुई। दो दिन पहले चीफ जस्टिस पीके कौरव ने सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था। ओबीसी आरक्षण को लेकर हाईकोर्ट में 55 के लगभग याचिकाएं दायर हैं। सभी पर एक साथ सुनवाई चल रही है। आज की सुनवाई ओबीसी आरक्षण को 14 से बढ़ाकर 27 प्रतिशत किए जाने के संवैधानिक कारणों को लेकर हुई।


अन्य पिछड़ा वर्ग का डाटा कलेक्ट
महाधिवक्ता ने हाईकोर्ट में कहा कि सरकार ओबीसी वर्ग से संबंधित डाटा हाई कोर्ट में पेश करना चाहती है। ओबीसी मामलों पर सरकार की ओर से पक्ष रखने के लिए नियुक्त किए गए विशेष अधिवक्ता रामेश्वर पी सिंह का कहना है सरकार पिछड़ा वर्ग आयोग ने हाल ही में प्रदेश भर के तकरीबन 48 जिलों से अन्य पिछड़ा वर्ग का डाटा कलेक्ट किया है। इसे 7 बिंदुओं के आधार पर जुटाया गया है। मध्यप्रदेश में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक पिछड़ापन के आधार पर ओबीसी वर्ग का डाटा जुटाया गया है। संभवत: बिसेन आयोग की ओर से जुटाए गए इसी डाटा को सरकार हाईकोर्ट में पेश करेगी।

55 याचिकाओं पर एक साथ चल रही सुनवाई
मध्य प्रदेश में ओबीसी वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण देने के खिलाफ हाईकोर्ट में तकरीबन 55 याचिकाएं दायर हैं। इस पर लंबे समय से सुनवाई चल रही है। इस बीच सुप्रीम कोर्ट में राज्य सरकार की ओर से दायर की गई एसएलपी पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट को आदेश दिया है कि ओबीसी आरक्षण संबंधित सभी याचिकाओं पर जल्द से जल्द सुनवाई कर फैसला तय करे।

2019 से न्यायालय में लंबित है ये मामला
कांग्रेस की 2018 में कमलनाथ के नेतृत्व में बनी सरकार ने 2019 में कैबिनेट में प्रस्ताव पारित कर राज्य में ओबीसी का आरक्षण 14 प्रतिशत से बढ़ाकर 27 प्रतिशत करने का फैसला किया था। बाद में राज्य विधानसभा ने इसे मंजूरी भी दे दी थी। मामला आगे बढ़ता, उससे पहले ही मप्र लोकसेवा आयोग की परीक्षा में बैठने वाले छात्रों ने फैसले को हाईकोर्ट में 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण को लेकर इंदिरा साहनी केस का हवाला देते हुए चुनौती दी। इस पर कोर्ट ने स्टे दे दिया। तब से ही मामला न्यायालय में विचाराधीन है। कोर्ट ने फिलहाल 14 प्रतिशत ही ओबीसी आरक्षण को बरकरार रखा है।

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