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दिल्ली मेट्रो में बिकिनी वाली लड़की पर क्‍यों छिड़ी बहस? जानिए इस मामले में क्‍या कहता है कानून

April 04, 2023

नई दिल्ली (New Delhi)। दिल्ली मेट्रो में मिनी स्कर्ट और ब्रा पहने एक लड़की का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है. पब्लिक प्लेस पर ऐसे कपड़े पहनकर निकलने के बाद अश्लीलता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर बहस छिड़ गई है. कुछ लोग इसे वीमेन एम्पावरमेंट से जोड़कर देख रहे हैं तो कुछ इसका विरोध कर रहे हैं. आइए सवाल-जवाब के जरिए समझते हैं कि कानून में ऐसे मामलों के लिए क्या व्यवस्था की गई है.

क्या कहता है भारत का अश्लीलता कानून?
आईपीसी की धारा-292 अश्लील सामग्री की बिक्री/वितरण/प्रकाशन पर रोक लगाती है. यह धारा आईपीसी में ऑब्सीन की परिभाषा भी देता है. इस धारा के अनुसार, “कोई किताब, पैम्फलेट, पेपर, राइटिंग, ड्रॉइंग, पेंटिंग, प्रतिनिधित्व, आकृति या कोई अन्य वस्तु तब अश्लील मानी जाएगी, जब वह कामोत्तेजक है या कामुक व्यक्तियों के लिए रूचिकर हो, या उसकी सामग्री कामुक विचार जगाए या उस सामग्री को देखने, पढ़ने या सुनने वाले व्यक्तियों को दुराचारी और भ्रष्ट बनाए.

मेट्रो में बिकनी पहनने पर आईपीसी की धारा 294 लागू हो सकती है, जो अश्लील कृत्यों और गीतों के लिए सजा तय करती है , जो दूसरों को परेशान करता है. धारा की उपधारा (ए) के तहत जो किसी भी सार्वजनिक जगह पर कोई अश्लीलता करता है, या उपधारा (बी) के तहत जो सार्वजनिक जगह में या उसके पास कोई भी अश्लील गीत या शब्द गाता है या बोलता है, उसे किसी जेल हो सकती है. सजा को बाद में तीन महीने तक बढ़ाया जा सकता है, या जुर्माना लगाया जा सकता है, या दोनों ही सजा हो सकती है.


इंडीसेंट रिप्रजेंटेशन ऑफ वीमेन (प्रिवेंशन) एक्ट, 1986 के मुताबिक, किसी भी व्यक्ति को ऐसी कोई भी सामग्री प्रकाशित करने, प्रदर्शित करने, या ऐसा करने में मदद करने या हिस्सा लेने या फिर ऐसा कोई विज्ञापन इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं है, जिसमें किसी महिला की आकृति या रूप या शरीर के किसी हिस्से का इस प्रकार चित्रण किया गया हो, जो अशोभनीय या अपमानजनक हो या सार्वजनिक नैतिकता को भ्रष्ट या नुकसान करने वाला हो.

इस अधिनियम में यह है सजा का प्रावधान
• पहली बार अपराध पर: दो साल तक जेल और दो हजार का जुर्माना.
• बार-बार अपराध करने पर: पांच साल तक कैद और दस हजार से एक लाख तक का जुर्माना.

इंटरनेट के इस युग में सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम अस्तित्व में आया. इस एक्ट की धारा 67(ए) ऑनलाइन अश्लीलता के मुद्दे से जुड़ी है. यह धारा इलेक्ट्रॉनिक रूप में किसी अश्लील सामग्री का प्रकाशन या प्रसारण करने पर सजा तय करती है.

पहली बार इस अधिनियम के तहत दोष साबित होने पर पांच साल तक की सजा हो सकती है और 10 लाख तक का जुर्माना लग सकता है. वहीं दूसरी बार या उससे ज्यादा बार दोष पाए जाने पर सात साल कारावास की सजा दी जा सकती है और जुर्माना भी दस लाख रुपये तक बढ़ाया जा सकता है.

इस मामले में क्या कहते हैं कानूनी जानकारी
– इंडिया टुडे से बात करते हुए वरिष्ठ वकील विकास पहवा कहते हैं कि भारतीय कानून के तहत “अश्लीलता” की परिभाषा सब्जेक्टिव है. उनका कहना है, “हमारे देश में अश्लीलता की अवधारणा काफी हद तक लोगों पर निर्भर है. अश्लीलता लोगों की नैतिकता के मानक पर निर्भर करता है. वल्गैरिटी और ऑब्सेनिटी में अंतर है. हमने जो मेट्रो में देखा, वह अश्लील और अपमानजनक था. ऐसी कोई भी चीज जो लोगों के दिमाग को दूषित और भ्रष्ट करे, उसे अश्लील कहा जाएगा.

भारत में अश्लीलता कानून से जुड़े कई मामले पहले भी देखे जा चुके हैं. हाल ही में अभिनेता रणवीर सिंह के खिलाफ न्यूड फोटोशूट सोशल मीडिया पर शेयर करने पर एफआईआर दर्ज कर ली गई थी. इसी तरह मॉडल मिलिंद सोमन के खिलाफ न्यूड होकर समुद्र तट पर दौड़ते हुए खुद की तस्वीरें साझा करने पर केस दर्ज कर लिया गया था. मिलिंद के खिलाफ 1995 में अश्लीलता का मामला कोर्ट के सामने कोई सबूत पेश न होने पर 2009 में खत्म कर दिया गया था.

1971 के केए अब्बास केस में फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था- सेक्स और अश्लीलता हमेशा पर्यायवाची नहीं होते हैं. केवल सेक्स शब्द का उल्लेख अश्लील या अनैतिक रूप में करना गलत है. कोर्ट ने कहा कि अश्लीलता को आंकने का मानक सबसे कम सक्षम और सबसे भ्रष्ट व्यक्ति का नहीं होना चाहिए, बल्कि तर्कसंगत व्यक्ति का होना चाहिए.

– 2014 के अवीक सरकार के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने अश्लीलता तय करने के लिए ‘सामुदायिक मानक परीक्षण’ को अपनाया. इस मामले में यह माना गया था कि किसी चित्र को अपने आप में अश्लील नहीं माना जा सकता है, अगर उसके भीतर भावनाओं को जगाने या किसी भी प्रकार की यौन इच्छा को प्रकट करने की प्रवृत्ति नहीं तो है.

केवल ऐसी यौन सामग्रियों को ही अश्लील माना जाएगा, जिनमें कामोत्तेजना के विचार पैदा करने की क्षमता हो. हालांकि अश्लीलता को एक सामान्य व्यक्ति के विवेक के दृष्टिकोण से आंका जाना चाहिए.

क्या मेट्रो गर्ल पर साबित हो सकता है अपराध?
इस तरह के मुद्दे को “अभद्रता” की परिभाषा के साथ संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से भी देखा जाना चाहिए, जो लोगों को अपनी पसंद बनाने की अनुमति देता है. 2014 के अवीक सरकार के फैसले में तय किए गए सामुदायिक मानकों के दिशानिर्देश के बाद अब सवाल यह है – क्या कपड़े अश्लील हैं पब्लिक प्लेस में ऐसे कपड़ने पहनना अविवेकपूर्ण है.

हाल ही में मॉडल उर्फी जावेद के खिलाफ छोटे कपड़े पहनकर सोशल मीडिया पर अश्लील पोस्ट करने पर एफआईआर दर्ज करने की मांग की गई थी. रणवीर सिंह और मिलिंद सोमन की घटनाओं के परिणामस्वरूप भी एफआईआर दर्ज की गईं.

– वरिष्ठ अधिवक्ता विकास पाहवा के अनुसार, मेट्रो गर्ल को कपड़ों की पसंद के कारण आपराधिक कानून या डीएमआरसी के नियमों के कारण चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है. उन्होंने कहा- “हमने अपने समाज में लेखकों, चित्रकारों और कलाकारों के लिए कुछ सुरक्षा उपाय पेश किए हैं, अगर वे यह बताते हैं कि कथित सामग्री विज्ञान, कला, साहित्य या सामान्य चिंता के अन्य विषयों के हित में जनता की भलाई के लिए सही हैं. अगर उनके कंटेंट में अश्लीलता झलकती है, तो यह निश्चित रूप से कानून में दंडनीय अपराध होगा. लड़की द्वारा सार्वजनिक जगह पर छोटे कपड़े पहनने का मामला भी ऐसा ही है.

– दूसरी ओर एडवोकेट सौदामिनी शर्मा का मानना ​​है कि कपड़ों का चुनाव एक सब्जेक्टिव मुद्दा है. उनका कहना है, “सार्वजनिक स्थान पर एक महिला क्या पहन सकती है या क्या नहीं, इस पर कोई सीधा कानून नहीं है. आईपीसी-1860 धारा 294 केवल अश्लीलता तक सीमित है, लेकिन बदलते सामाजिक मूल्यों के साथ, अश्लील क्या है? इसकी अवधारणा डायनेमिक और सब्जेक्टिव हो जाती है. अदालतें भी अलग-अलग मामलों के आधार पर तय करती हैं कि उस संदर्भ में अश्लीलता क्या है.

– एडवोकेट सौतिक बनर्जी तर्क देते हैं कि कपड़ों की पसंद के बारे में कुछ भी अश्लील नहीं है. उन्होंने कहा कि लोगों को लड़की के कपड़े आपत्तिजनक लग सकते हैं, जबकि कुछ लोग यह भी कह सकते हैं कि यह गलत सलाह है, लेकिन ये दोनों ही विचार ठीक नहीं हैं. उन्होंने कहा कि मेरे हिसाब से लड़की ने ऐसा कोई काम नहीं किया है, जो आईपीसी की धारा 294 के तहत अपराध हो.

क्या वीडियो बनाना और पोस्ट करना अपराध है?
आईटी अधिनियम, 2000 की धारा 66ई गोपनीयता के उल्लंघन से जुड़ी है. इसके तहत किसी भी व्यक्ति की सहमति के बिना उसके प्राइवेट एरिया की फोटो लेना, उसे पब्लिश करना या उसे प्रसारित करना दंडनीय अपराध है.

इसके अलावा, आईटी अधिनियम, 2000 की धारा 67 इलेक्ट्रॉनिक रूप में अश्लील सामग्री के प्रकाशन या प्रसारण पर रोक लगाती है. इसमें ऐसी कोई भी सामग्री शामिल है, जो कामुक है और लोगों को भ्रष्ट करती है. अगर कोई व्यक्ति इन नियमों का उल्लंघन करने का दोषी पाया जाता है, तो उसे तीन साल तक का कारावास और/या जुर्माने से दंडित किया जा सकता है. ऐसे में जिस व्यक्ति ने अभी वायरल हो रही तस्वीरें और वीडियो लिए हैं, उसे आईटी एक्ट के तहत जिम्मेदार ठहराया जा सकता है.

– वरिष्ठ अधिवक्ता रमेश गुप्ता का तर्क है कि पब्लिक प्लेस पर वीडियो बनाने से जुड़ा कानून स्पष्ट नहीं है. अगर किसी महिला के प्राइवेट पार्ट का फोटो/वीडियो लिया जाता है या ऐसी तस्वीर जो अश्लील है या निजता में दखल है, तो सजा देने के लिए आईटी अधिनियम जैसे कानून हैं, लेकिन क्या कोई नियम है, जो यह कहता है कि कोई पब्लिक प्लेस पर फोटो या वीडियो नहीं ले सकते? अगर दिल्ली मेट्रो में ट्रेन में वीडियोग्राफी या फोटोग्राफी पर रोक लगाने का नियम है, तो वे कार्रवाई कर सकते हैं, लेकिन अगर कोई रोक नहीं है, तो कोई यह नहीं कह सकता कि सार्वजनिक स्थान पर वीडियो बनाना वर्जित है.

– एडवोकेट सौदामिनी शर्मा ने बताया कि यह मुद्दा जटिल है. उनका कहना है कि सार्वजनिक जगहों पर वीडियो रिकॉर्ड करना तब तक अवैध नहीं है, जब तक कि रिकॉर्डिंग किसी की गोपनीयता पर हमला न हो या किसी अन्य कानून का उल्लंघन न करती हो. हालांकि, अगर वीडियो रिकॉर्डिंग किसी को परेशान करने या डराने के इरादे से की जाती है या अगर यह सहमति के बिना अंतरंग या निजी तस्वीरों को वितरित करने के लिए किया जाता है, तो इसे एक अपराध माना जा सकता है. हालांकि सौदामिनी शर्मा बताती हैं कि भारत में वर्तमान में कोई कानून नहीं है. उन्होंने कहा कि सार्वजनिक स्थान पर किसी व्यक्ति की रिकॉर्डिंग के लिए सहमति की आवश्यकता नहीं होती है.”

क्या है डीएमआरसी का स्टैंड?
दिल्ली मेट्रो अधिनियम की धारा 59 के तहत DMRC के अपने नियम, मेट्रो में अभद्रता या अश्लीलता के कार्य के लिए ट्रेन से हटाने और 500 रुपये के जुर्माने की सजा की अनुमति देते हैं. धारा 59 के तहत मेट्रो में कोई भी व्यक्ति नशे में हो या कोई उपद्रव या बर्बरता या अभद्रता करता है, या अपमानजनक या अश्लील भाषा का उपयोग करता है; या जानबूझकर या किसी बहाने से किसी यात्री के कम्फर्ट में हस्तक्षेप करता है तो वह जुर्माना के साथ दंडनीय होगा. उस पर पांच सौ रुपये तक जुर्माना लग सकता है और वह किराया जो उसने भुगतान किया होगा या उसका पास या टिकट जब्त किया जा सकता है या उसे मेट्रो या उस कंपार्टमेंट से हटाया जा सकता है.

डीएमआरसी के कॉरपोरेट कम्युनिकेशंस के प्रिंसिपल एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर अनुज दयाल ने मेट्रो की घटना पर कहा कि डीएमआरसी अपने यात्रियों से वे सभी शिष्टाचार और प्रोटोकॉल का पालन करने की उम्मीद करती है, जो समाज में स्वीकार्य हैं. यात्रियों को ऐसी किसी भी गतिविधि में शामिल नहीं होना चाहिए या ऐसा कोई पोशाक नहीं पहनना चाहिए, जो अन्य साथी यात्रियों की संवेदनाओं को ठेस पहुंचाए. डीएमआरसी के संचालन और रखरखाव अधिनियम में अभद्रता को धारा 59 के तहत एक दंडनीय अपराध माना गया है.

हम यात्रियों से अपील करते हैं कि वे मेट्रो जैसी सार्वजनिक परिवहन प्रणाली में यात्रा करते समय मर्यादा बनाए रखें. हालांकि, यात्रा के दौरान कपड़ों की पसंद एक व्यक्तिगत मुद्दा है. यात्रियों से उम्मीद की जाती है कि वे जिम्मेदार तरीके से अपना आचरण करें.

मीडिया से बात करते हुए DMRC के एक प्रवक्ता ने यह भी बताया कि DMRC को न तो महिला यात्रियों द्वारा पहने जाने वाले कपड़ों के बारे में, न ही महिला यात्री से मेट्रो में उनके फोटो/वीडियो लिए जाने के संबंध में कोई शिकायत मिली है.

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