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    दो केंद्रीय योजनाओं से प्रसव के दौरान महिलाओं की मौतों पर लगी रोक

  • December 01, 2022


    मुंबई । दो केंद्रीय योजनाओं (Two Central Schemes) – पूर्व प्रधानमंत्री (Former Prime Minister) डॉ. मनमोहन सिंह (Dr. Manmohan Singh) द्वारा शुरू की गई (Was Started) जननी सुरक्षा योजना (JSY-April 2005) और वर्तमान प्रधानमंत्री (Present Prime Minister) नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) द्वारा शुरू (Start) सुरक्षित मातृत्व अभियान (PMSMA-July 2016) से प्रसव के दौरान (During Childbirth) महिलाओं की होने वाली मौतों पर (On Deaths of Women) रोक लगी है (Is Blocked)।


    स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा जालना के बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. स्वप्निल बी. मंत्री को आरटीआई के जवाब में बताया है कि जेएसवाई से 15.81 करोड़ से अधिक महिलाओं को लाभ मिला, जबकि पीएमएसएमए से लगभग 36 लाख महिलाएं लाभान्वित हुईं। जेएसवाई में प्रति गर्भावस्था 6,000 रुपये की नकद सहायता, साथ ही प्रसव और प्रसव के बाद की चिकित्सा देखभाल और सरकार और होने वाली माताओं के बीच कड़ी के रूप में काम करने वाली आशा कार्यकर्ता शामिल हैं। दूसरी ओर पीएमएसएमए सभी गर्भवती महिलाओं को हर महीने की 9 तारीख को सभी सरकारी अस्पतालों और देश के सभी पंजीकृत निजी चिकित्सा संस्थानों में पूर्ण चिकित्सा जांच प्रदान करता है।

    आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार 1990 में एक लाख प्रसव पर 556 माताओं की मौत होती थी, जबकि वैश्विक आंकड़ा एक लाख प्रसव पर 385 मौतें थीं। 2013 तक यह आंकड़ा भारत में प्रति एक लाख प्रसव पर 167 पर आ गया। इसके विपरीत वैश्विक आंकड़ा प्रति एक लाख पर 216 था। यानी 1990-2015 तक 44 प्रतिशत वैश्विक गिरावट की तुलना में भारत में 70 प्रतिशत की गिरावट आई।

    डॉ. मंत्री ने बताया, जेएसवाई ने 17 वर्षों में आश्चर्यजनक परिणाम दिखाए हैं। प्रसव के दौरान माताओं की मौत की दर और घट गई है। 2014 में 130/लाख से 2020 तक केवल 97/लाख तक आ गई। जेएसवाई के तहत भारत में 25 हजार से अधिक ‘डिलीवरी प्वांइंट्स’ को बुनियादी ढांचे, उपकरणों और प्रशिक्षित जनशक्ति के साथ-साथ 102 प्रकार की चिकित्सा सेवाओं आदि के रूप में मजबूत किया गया था।

    2016 से अब तक भारत में 17 हजार से अधिक सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं और अन्य 19,215 मान्यता प्राप्त निजी केंद्रों में पीएमएसएमए के तहत 37 लाख से अधिक गर्भवती महिलाओं की जांच की गई। आंकड़ों का हवाला देते हुए डॉ मंत्री ने कहा कि भारत में अनुमानित 70 हजार अस्पताल (2019) हैं। इनमें से 43 हजार निजी क्षेत्र में हैं और बाकी 27 हजार सरकारी हैं।

    एमएमआर के मोर्चे पर शानदार उपलब्धियों के बावजूद, त्रासदी यह है कि लगभग 44 हजार महिलाएं अभी भी गर्भावस्था से संबंधित मामलों में दम तोड़ देती हैं, जबकि देश में जन्म के पहले चार हफ्तों के भीतर 6 लाख 60 हजार शिशुओं की मृत्यु हो जाती है। डॉ मंत्री ने कहा, गंभीर एनीमिया, गर्भावस्था से प्रेरित उच्च रक्तचाप, आदि जैसे उच्च जोखिम वाले कारकों से समय पर निपटने से इनमें से कई गर्भवती महिलाओं की मृत्यु को उनकी प्रसवपूर्व अवधि के दौरान रोका जा सकता है, ।

    मेडिको ने कहा कि पीएमएसएमए के लिए निजी अस्पतालों के कम पंजीकरण के कारण, विशेष रूप से छोटे शहरों और गांवों में, वास्तविक लाभ दूरस्थ क्षेत्रों में गर्भवती महिलाओं तक पहुंचने में विफल होते हैं और इसके परिणामस्वरूप एमएमआर और शिशु मृत्यु दर पर असर पड़ता है। निम्न-मध्यम वर्ग की लगभग 50 प्रतिशत महिलाओं ने अपनी पहली गर्भावस्था के दौरान जेएसवाई लाभ (6,000 रुपये) प्राप्त करने की खुशी से पुष्टि की।

    हालांकि कई महिलाएं जो दूसरी बार गर्भवती हुईं (जुड़वा बच्चों वाली सहित) ने शिकायत की कि उन्हें (जेएसवाई के तहत) कुछ भी नहीं मिला, हालांकि अधिकांश ने स्वीकार किया कि कोविड महामारी के दौरान भी पीएमएसएमए के तहत सभी आवश्यक चिकित्सा जांच की गई। डॉ. मंत्री ने कहा कि माताओं की मृत्यु दर कम करने के लिए जागरूकता कार्यक्रम की आवश्यकता है।

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