नई दिल्ली। जन्म के समय विभिन्न कारणों से बीमार (sick for various reasons) तीन लाख से अधिक नवजात शिशुओं (more than three lakh Newborn Deaths) की मौत बीते तीन वर्ष में हुई है। 11 राज्यों में शिशुओं की मौत (Newborn Deaths) साल 2020 से 2021 के बीच बढ़ी है, जिसे कोरोना महामारी (corona pandemic) का एक बुरा दौर भी माना जा रहा है। इसमें राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली (National Capital Delhi) की बात करें तो यहां तीन गुना से भी अधिक बढ़ोतरी दर्ज की गई।
केंद्र सरकार के रियल टाइम ट्रैकिंग सिस्टम की रिपोर्ट बताती है, साल 2019 से 2021 के बीच विशेष नवजात शिशु देखभाल इकाई (एसएनसीयू) में 3.01 लाख शिशुओं की मौत हुई है। इनमें 46.1 फीसदी शिशुओं की मौत के पीछे मुख्य कारण जन्म समय से पहले या फिर जन्म के समय उनका वजन कम होना माना जा रहा है। जिन 11 राज्यों में नवजात शिशुओं की मौत में इजाफा हुआ है उनमें दिल्ली, पंजाब, उत्तराखंड, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, सिक्किम, झारखंड, हिमाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, अरुणांचल प्रदेश और पांडिचेरी शामिल है।
स्वास्थ्य मंत्रालय के एक शीर्ष अधिकारी ने बताया, ‘‘एसएनसीयू में उन बच्चों को भर्ती किया जाता है जिन्हें जन्म के बाद गंभीर परेशानी होती है या फिर सात और आठ माह में जन्मे कम वजन वाले बच्चों को रखा जाता है। जिन जिला अस्पताल या फिर उप-जिला अस्पतालों में सालाना तीन हजार से अधिक प्रसव कराए जाते हैं वहां एसएनसीयू की स्थापना की गई है।
देश में करीब 700 से ज्यादा यूनिट अस्पतालों में है।’’ उन्होंने बताया कि एसएनसीयू काफी महत्वपूर्ण पहल है और अनेकों बच्चों का जीवन यहां बचाया जा रहा है। हालांकि कई बच्चे गंभीर स्थिति में होने की वजह से उनकी जान का जोखिम अधिक होता है।
कम वजनी बच्चों में जोखिम अधिक
दिल्ली के कलावती सरन अस्पताल के एक वरिष्ठ डॉक्टर ने बताया, ‘साल 2021 में चार राज्यों के 13 जिलों को लेकर एक अध्ययन किया था जिसमें पता चला कि जन्म के समय सामान्य वजन वाले बच्चों की तुलना में कम वजन वाले बच्चों में मृत्यु का खतरा अधिक है। भारत में करीब 700 से भी ज्यादा एसएनसीयू स्थापित हैं और समय पर यहां बच्चे को भर्ती किया जाए तो शिशुओं के जीवन में सुधार किया जा सकता है।
साल 2019 में 1.03 लाख, 2020 में 98499 और 2021 में 99,737 शिशुओं की मौत हुई। दिल्ली में साल 2019 के दौरान 308 बच्चों की मौत दर्ज की गई थी लेकिन साल 2020 में यह बढ़कर 895 और फिर 1025 तक पहुंची। हालांकि इसके पीछे के कारण स्पष्ट नहीं है।
2019 के दौरान पंजाब में 413, हिमाचल प्रदेश में 461 और उत्तराखंड में 320 बच्चों की मौत हुई जो 2020 में बढ़कर क्रमशः 502, 527, 306 तक पहुंची। इसके बाद 2021 में 464, 509 और 425 बच्चों की मौत हुई।
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