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    पुण्यतिथि: शकीला बानो की गैस त्रासदी में चली गई थी आवाज, कभी इनके दीवाने रहे दिलीप कुमार-जैकी श्रॉफ

  • December 16, 2024

    भोपाल। शकीला बानो (Shakeela Bano) भोपाली… यह वह नाम है, जिसने अपनी पहचान भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया भर में बनाई। पहली महिला कव्वाल के रूप में उभरीं शकीला बानो (Shakeela Bano) को भारत के साथ-साथ इंग्लैंड, अफ्रीका और कुवैत में भी खूब पहचान मिली। देश-विदेश में इस पहली महिला कव्वाल के दीवाने थे। इन दीवानों में प्रशंसक ही नहीं, बल्कि कई बड़ी हस्तियां भी शामिल थीं। यहां तक कि हिंदी सिनेमा के दिग्गज अभिनेता दिलीप कुमार और जैकी श्रॉफ भी इनके कव्वाल के दीवाने थे। आज शकीला बानो भोपाली की 22वीं पुण्यतिथि पर चलिए जानते हैं उनसे जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें…

    बचपन से ही चढ़ा कव्वाली का शौक
    शकीला बानो का जन्म 15 अक्टूबर 1942 में भोपाल में हुआ था। जब वह भोपाल में पैदा हुईं तो यह जगह नवाब रियासत का हिस्सा थी। देश की आजादी के बाद भोपाल रियासत भारत में शामिल हो गई। इस बीच शकीला को बचपन से ही कव्वाली का चस्का लगा हुआ था। इसके बाद उन्होंने कव्वाली करनी शुरू कर दी और ऐसे ही उनके नाम शकीला बानो के आगे ‘भोपाली’ जुड़ गया। शकीला बानो के कव्वाल ने ही भोपाल को खास पहचान दिलाई। आज भी कव्वाल के दीवाने भोपाल से अपना खास रिश्ता रखते हैं। शकीला के पिता और चाचा अच्छे शायर थे। ऐसे में शकीला को बचपन से ही शेरों-शायरी का शौक था और धीरे-धीरे उनका झुकाव इस और होता चला गया।

    कव्वाली के लिए मिलने लगा मुंह मांगा दाम
    हालांकि, उस समय लड़कियों के लिए कव्वाली करना अच्छा नहीं माना जाता था। ऐसे में शकीला के परिवार ने भी उन्हें कव्वाली करने से रोका, लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। उन्होंने सभी की बातों को अनसुना करते हुए कव्वाली शुरू की। इसके बाद से ही महज 11 साल की उम्र में भोपाल की गलियों में सजने वाली संगीत की महफिलों में शकीला ने कव्वाली करनी शुरू की। समय के साथ साथ शकीला का यह हुनर और भी निखरता चला गया और वह अलग-अलग राज्यों, फिर देश-विदेश में हवा की तरह बहने लगीं। 70 के दशक तक वह इतनी मशहूर हो चुकी थीं कि उन्हें हर शहर में कव्वाली गाने के लिए बुलाया जाता था और वह भी उनकी मनचाही कीमत पर।

    भोपाल से मायानगरी पहुंचीं शकीला
    जब शकील सार्वजनिक तौर पर मंच पर आईं तो शुरुआती दौर में उन्हें आलोचनाएं भी झेलनी पड़ीं, लेकिन उन्होंने अपने मजबूत हौसले और बेबाक अंदाज से दुनिया के सामने खुद को साबित किया। शुरुआती दौर में उन्होंने जानी बाबू कव्वाल के साथ काम किया और जब वे दोनों साथ में कव्वाली का मुकाबला करते थे तो रात कब बीत जाती थी, इसका अंदाजा भी नहीं होता था। शकील की कव्वाल का जादू यहां तक सीमित नहीं रहा, बल्कि भोपाल से निकल माया नगरी भी पहुंच गया। दिलीप कुमार ने उन्हें मुंबई आने का न्योता दिया तो उन्होंने वहां भी अपनी कव्वाली की छाप छोड़ी।

    ऐसे मुंबई पहुंचीं शकीला
    पेशेवर गायकी की दुनिया में शकीला ने अचानक प्रवेश किया। दरअसल, जब एक रात बी.आर. चोपड़ा, दिलीप कुमार, वैजयंती माला और जॉनी वॉकर साथ में भोपाल के पास बुधनी के दंत वन क्षेत्र में ‘नया दौर’ का फिल्मांकन कर रहे थे, तब बारिश के कारण शूटिंग रद्द करनी पड़ी। किसी ने बी आर चोपड़ा को शकीला का नाम सुझाया, जिन्होंने उन्हें कव्वाली महफिल प्रस्तुत करने के लिए आमंत्रित किया। तब वह बमुश्किल किशोरावस्था में थीं, उसने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया और जो कार्यक्रम एक घंटे का माना जाता था, वह पूरी रात चलता रहा। दिलीप कुमार ने उनसे कहा, ”आप भोपाल की चीज नहीं हैं। बॉम्बे आ जाइए।’



    अभिनय में भी दिखाया दम
    दिलीप कुमार के साथ-साथ जैकी श्रॉफ पर भी शकीला के कव्वाल का जादू चला और वे उनकी कव्वाली सुनने के लिए दौड़े चले आते थे। इसके साथ ही बी आर चोपड़ा, वैजयंती माला और जॉनी वॉकर के साथ कई हस्तियां शकीला की अदायगी और कव्वाली को देख हैरान रह गए। इसके बाद हिंदी फिल्मों में कव्वाली विद्या शुरू हुई और शकील को अभिनेत्री बनने का मौका भी मिला। 1950 के दशक में शकीला फिल्मों में अपनी किस्मत आजमाने बंबई (अब मुंबई) गईं और जल्द ही वहां भी उनका क्रेज बढ़ गया, उनकी फिल्में जैसे जागीर, दस्तक, श्रद्धांजलि आदि ने अच्छा कारोबार किया। सबसे पहले 1957 में निर्माता सर जगमोहन मट्टू ने उन्हें खास तौर पर अपनी फिल्म ‘जागीर’ में अभिनय करने का मौका दिया। इसके बाद उन्होंने केट टार्जन (1963), सैमसन और बादशाह (1964), राका (1965), सखी लुटेरा (1969), दस्तक और मंगू दादा (1970), जान-ए-वफा (1990) और कई अन्य फिल्मों में अपने अभिनय का लोहा मनवाया। वर्ष 1971 में उनका पहला एल्बम कव्वाली रिलीज हुआ, जो पूरे भारत में तुरंत हिट हो गया।

    शकीला बानो के बेहतरीन गाने
    अभिनय के साथ ही वाह एक कव्वाल के रूप में भी लोकप्रिय रहीं। उनके बेहतरीन गानों में,मिलते ही नजर तुमसे, हम हो गए दीवाने, पीने वाले मेरी आंखों से पिया करते हैं, सैनियां डोली लेके आए तेरे दरवाजे, अब ये छोड़ दिया है तुझपे’ जैसे हिट गाने शामिल हैं। ऐसा कहा जाता है कि फिल्म निर्माता अपनी पहले की फ्लॉप फिल्मों को फिर से रिलीज करते थे और उसमें शकीला की एक-दो कव्वाली जोड़ देते थे और इससे उनकी फिल्मों की किस्मत बदल जाती थी और वे सफल हो जाती थीं। हालांकि महिला आवाज में रिकॉर्ड की गई पहली कव्वाली नूरजहां की मशहूर ‘आहें न भरीं शिकवे न किए’ थी, जिसके गीतकार नक्श लायलपुरी थे, लेकिन शकीला कव्वाली की संगीत शैली को बनाए रखने वाली पहली महिला कव्वाल बनी रहीं।

    गैस त्रासदी में छिन गई आवाज
    शकीला अपने करियर के स्वर्ण युग को जी रही थी, लेकिन किसे ही मालूम था कि इतनी दौलत और शोहरत पाने वाली शकीला, जो कभी अपनी आवाज से पहचानी जाती थीं, एक हादसे में उन्होंने अपनी वो आवाज खो देंगे। दुर्भाग्य से भोपाल, जो कि उनका जन्म स्थान है, शकीला के लिए भी मौत की घंटी बन गया, जब दिसंबर 1984 में भोपाल गैस त्रासदी में वह एक रिश्तेदार से मिलने गईं और जानलेवा मिथाइल आइसोसाइनेट गैस के संपर्क में आ गईं। वह जहरीली गैस के बाद के प्रभावों से कभी उबर नहीं पाईं और डायबटीज और ब्लडप्रेशर जैसी बिमारीओं ने घेर लिया। लंबे समय तक अस्पताल में रहने और परिवार और प्रशंसकों द्वारा वर्षों तक अनदेखा किए जाने के बाद उनकी आर्थिक हालत भी बिगड़ गई और आखिकार आज ही के दिन 16 दिसंबर 2002 को उनकी दर्दनाक मौत हो गई।

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