कोई ओलिंपिक तुम्हें क्या पदक से सजाएगा…और कोई ओलिंपिक तुम्हें क्या खेल से बाहर कर पाएगा…जब एक देश…सवा सौ करोड़ लोगों का दिल-जिगर और जान तुम पर नाज जताएगा…तुमने वो किया जो कोई नहीं कर पाया…देश की आन बढ़ाने के लिए खुद को दांव पर लगाया…सुना है वजन घटाने के लिए तुमने अपना खून निचोड़ डाला…पानी की एक बूंद हलक से नहीं उतारी…घंटों साइकिल दौड़ाई…रस्सी कूद-कूदकर रस्साकशी आजमाई… खुद पर इतना अत्याचार कौन करता है…देश पदक की चाहत रखता है, पर अपनी बच्चियों को कौन इस तरह कुर्बान करता है…सीमा पर फौजी जान दांव पर लगाते हैं, तुमने शरीर दांव पर लगाया…सरहद के फौजी की ही तरह तुमने सीमा पार जाकर पूरे देश का गौरव बढ़ाया… जरा भी हताश-निराश नहीं होना…जब लौटोगी तो पदक विजेता से बढक़र सम्मान पाओगी… जीत से ज्यादा गौरव देश को महसूस कराओगी…हमारे राष्ट्रपति से लेकर प्रधानमंत्री तक तुम पर गर्व जता चुके हैं…लेकिन हम मानते हैं कि हम कहीं न कहीं चूके हैं…सोचना देश को चाहिए…समझना सरकार को चाहिए…दूसरे देश झोले भर-भरकर पदक लेकर आते हैं और हमारे देश के खिलाड़ी एक पदक के लिए खुद को दांव पर लगाते हैं… इसी कुश्ती के खिलाड़ी न्याय के लिए जंतर-मंतर पर वक्त गंवा रहे थे…चीख-चिल्ला रहे थे…और हम और आप नजरें फिरा रहे थे…उनकी आवाज उस गंदी राजनीति की भेंट चढ़ गई, जहां खिलाडिय़ों पर अनाडिय़ों को बिठाया जाता है… पहलवानों को दम दिखाया जाता है…उन्हें शोषित, उपेक्षित किया जाता है…तभी इस देश में कांस्य पदक भी मुश्किल से आता है…मां-बाप भी अपने बच्चों की पढ़ाई-लिखाई का बोझ उठाते हैं…उन्हें प्रोत्साहित कर आगे बढ़ाते हैं…उनकी गलतियों को सुधारने के मौके दिए जाते हैं, ताकि वो उनके परिवार का नाम रोशन कर सकें… लेकिन देश का नाम रोशन करने वाले खिलाड़ी मुफलिसी की मौत मारे जाते हैं…भूखे रहकर जिंदगी से लडक़र…साधनों की मोहताजी में खुद को संवारने की जद्दोजहद करते नजर आते हैं…इसलिए हम गर्व के नहीं, शर्म के मेडल पाते हैं…देश के नायक इस बच्ची को ढांढ़स बंधाएं या न बंधाएं, उसके सम्मान में सर झुकाएं या न झुकाएं, लेकिन खिलाडिय़ों की संघर्ष करती कौम का सहारा बनकर दिखाएं…वो हार सहने की क्षमता रखते हैं…जीतने की जिद में जुटे रहते हैं…दुनिया से लड़ सकते हैं, लेकिन अपनों से हार जाते हैं…तब जाकर विनेश की तरह खेल से तौबा कर लेते हैं…और कहते हैं कुश्ती जीत गई…मैं हार गई…अब और ताकत नहीं बची…यह वक्त है आवाज गुंजाने का…हौसला दिखाने का…कि तुम अकेली नहीं, तुम्हारे साथ देश के सवा सौ करोड़ लोगों की ताकत है…आजमाओ और जीतकर दिखाओ…
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