मेलबोर्न। अंटार्कटिका में ताजा गिरी बर्फ में घातक माइक्रोप्लास्टिक के टुकड़े मिले हैं। इन टुकड़ों का आकार चावल के दाने से भी छोटा है। यहां 13 अलग-अलग प्रकार के प्लास्टिक कण मिले हैं, जिनमें सबसे आम पीईटी है। इसका इस्तेमाल आमतौर पर शीतल पेय की बोतल और कपड़े बनाने में होता है। आशंका है कि अंटार्कटिका तक माइक्रोप्लास्टिक कण इंसानों के जरिए पहुंचे होंगे लेकिन वैज्ञानिक इसे जलवायु परिवर्तन का असर भी मान रहे हैं।
द क्रायोस्फीयर जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में वैज्ञानिकों ने बताया कि अंटार्कटिका क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन का असर देखने को मिल रहा है। पिछले अध्ययनों में पाया गया कि माइक्रोप्लास्टिक के कण पर्यावरण के साथ-साथ स्वास्थ्य पर भी दुष्प्रभाव डालते हैं।
इसकी वजह से जीवों में विकास, प्रजनन और सामान्य जैविक कार्य प्रभावित होते हैं। साल 2019 के अंत में न्यूजीलैंड के कैंटरबरी विश्वविद्यालय में पीएचडी छात्र एलेक्स एवेस ने अंटार्कटिका में रॉस आइस शेल्फ से बर्फ के नमूने एकत्र किए। उस दौरान हवा में माइक्रोप्लास्टिक्स की मौजूदगी को लेकर कुछ अध्ययन हुए थे। हालांकि यह अज्ञात था कि माइक्रोप्लास्टिक कणों की समस्या कितनी व्यापक थी।
विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर लॉरा रेवेल ने कहा, जब एलेक्स ने अंटार्कटिका यात्रा की तो हम आशान्वित थे कि वहां कोई माइक्रोप्लास्टिक नहीं मिलेगा। लेकिन वापस प्रयोगशाला में जब जांच की तो उनके लिए आश्चर्य कर देने वाले परिणाम मिले। अंटार्कटिका में 19 जगहों से बर्फ के टुकड़े लिए गए थे और प्रति लीटर पिघली हुई बर्फ में औसतन 29 माइक्रोप्लास्टिक कण मिले, जो रॉस सागर और अंटार्कटिका समुद्री बर्फ में पहले बताई समुद्री सांद्रता से काफी अधिक हैं।
भारत के खेतों में मिल चुका है माइक्रोप्लास्टिक
माइक्रोप्लास्टिक कणों की पहचान भारत में भी बीते महीनों में हुई है। भारतीय वैज्ञानिकों ने महाराष्ट्र और कर्नाटक राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों में जाकर जब कृषि भूमि से मिट्टी के सैंपल लिए तो उनमें माइक्रोप्लास्टिक के सूक्ष्म कणों की पहचान हुई।
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