मैरीलैंड (Maryland)। शोधकर्ताओं ने उत्तरी डकोटा और कनाडा (North Dakota and Canada) के बीच मौजूद 5.18 लाख वर्ग किलोमीटर के बेकेन फॉर्मेशन नाम के इलाके की जांच की. उन्हें एक ब्लैक शेल (Black Shale) मिला. बेकेन फॉर्मेशन अमेरिका (Bakken Formation America) का सबसे बड़ा नेचुरल गैस और तेल का खजाना है. लेकिन वैज्ञानिकों को ब्लैक शेल की स्टडी से डराने वाला खुलासा हुआ.
पता चला कि पृथ्वी पर कई बार ऑक्सीजन (oxygen) के स्तर में कमी आई है. हाइड्रोजन सल्फाइड (hydrogen sulfide) का फैलाव लगातार बढ़ा है. इसकी वजह से डेवोनियन काल में यानी 41.9 करोड़ साल से 35.89 करोड़ साल तक सामूहिक विनाश की प्रक्रिया दुनिया के अलग-अलग कोनों में चलती रही. डेवोनियन काल को Ages of Fishes भी कहते हैं.
हाइड्रोजन सल्फाइड तब बनता है जब एल्गी (Algae) समुद्री की तलहटी में सड़ना शुरू करती है. इसकी वजह से समुद्र में ऑक्सीजन के स्तर में तेजी से कमी आती है. मैरीलैंड यूनिवर्सिटी के जियोलॉजिस्ट एलन जे कॉफमैन (Kaufman) ने बताया कि पहले कई बार हाइड्रोजन सल्फाइड के फैलने से सामूहिक विनाश हुआ है. लेकिन इसके प्रभावों की स्टडी नहीं की गई. डेवोनियन काल में ऐसी मछलियां होती थीं, जिनमें जबड़े नहीं होते थे. इन्हें प्लैकोडर्म्स कहते थे.
इससे पहले पांच बड़े सामूहिक विनाश हो चुके हैं
ये मछलियां खासतौर से गोंडवाना और यूरामेरिका में फैली थीं. समुद्रों में ट्रिलोबाइट्स और अमोनाइट्स भी काफी मात्रा में थे. जमीन पर शुरुआती जंगल उग रहे थे. जिनमें फर्न जैसे पौधे थे. डेवोनियन काल के मध्य तक समुद्री टेट्रापॉड टिकटालिक पानी से निकल कर जमीन पर आया. इसी डेवोनियन काल में पांच बड़े सामूहिक विनाश हुए थे. तभी उन जीवों और पेड़-पौधों का जन्म होता है, जिन्हें हम आज देख रहे हैं. या जान रहे हैं. फिर शार्क जैसी मछलियां पैदा हुईं.
समुद्र से आएंगे खतरनाक जीव, करेंगे इंसानों का शिकार
वैज्ञानिकों की स्टडी में इस बात की चेतावनी दी गई कि है कि जिस तरह से आज के दौर में जलवायु परिवर्तन हो रहा है. ग्लोबल वॉर्मिंग बढ़ रही है. उस हिसाब से अगला महाविनाश (Doomsday) समुद्र से ही आएगा. समुद्र में ऑक्सीजन की कमी होगी. उसका जलस्तर बढ़ेगा. हाइड्रोजन सल्फाइड की मात्रा बढ़ती चली जाएगी. समुद्री जीव पानी से निकल कर इंसानों की बस्ती में शिकार करेंगे. फिर धीरे-धीरे नए जीव पैदा होंगे. नए जानवर और नए पेड़-पौधे.
शुरू हो चुका है छठा सामूहिक विनाश
इंसानों की बस्ती पर नए जानवरों का कब्जा होगा. जंगलों का स्वरूप बदलेगा. वैसे भी धरती पर छठा सामूहिक विनाश (Sixth Mass Extinction) शुरु हो गया है. इससे पहले पांच सामूहिक विनाश की घटनाएं तो प्राकृतिक थीं, लेकिन ये वाली इंसानी गतिविधियों की वजह से हो रही है. करोड़ों की संख्या में अलग-अलग प्रजातियों के जीवों की मौत हो रही है. बायोलॉजिकल रिव्यू जर्नल में वैज्ञानिकों ने लिखा है कि धरती पर से करीब 13 फीसदी अकशेरुकीय प्रजातियों (Invertebrate Species) के जीव पिछले 500 सालों में खत्म हो चुके हैं.
500 सालों में खत्म हो चुके हैं 13 फीसदी जीव
वैज्ञानिकों ने बताया कि जिन 13 फीसदी जीवों की बात हो रही है, उनके बारे में इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजरवेशन ऑफ नेचर (IUCN) की रेड लिस्ट ऑफ थ्रेटेंड स्पीसीज में जिक्र भी है. अगर हम अकशेरुकीय प्रजातियों के जीवों की सूची देखेंगे तो पता चलेगा कि हम बड़े पैमाने पर धरती से बहुत ज्यादा संख्या में जीवों को खो रहे हैं. इसे प्रमाणित करने के लिए वैज्ञानिकों साल 2015 की एक स्टडी का हवाला दिया है, जिसमें धरती से मोलस्क के खत्म होने की बात कही जा रही है.
जमीन पर 7 फीसदी घोंगे खत्म हो चुके हैं
साल 1500 से अब तक धरती पर पाए जाने वाले घोंघे (Snails) की 7 फीसदी आबादी खत्म हो चुकी है. ये तो जमीन पर रहने वाले एक अकशेरुकीय जीव है. समुद्र में यह दर बहुत ज्यादा है. जमीन और समुद्र मिलाकर देखा जाए तो इस प्रजाति के 7.5 से 13 फीसदी जीव खत्म हो चुके हैं. रेड लिस्ट के हिसाब से देखें तो 882 प्रजातियों के 1.50 लाख से लेकर 2.60 लाख मोलस्क धरती से खत्म हो चुके हैं.
सारी गलती इंसानी गतिविधियों का है
वैज्ञानिकों का कहना है कि जमीन पर इंसानी गतिविधियां ज्यादा हैं, इसलिए यहां नुकसान ज्यादा हो रहा है. लेकिन समुद्र में ऐसा क्यों हो रहा है, इसकी स्टडी करनी होगी. इंसान इकलौती ऐसी प्रजाति है जो जैविक प्रक्रियाओं को बाधित कर सकती है या बदल सकती है. इंसान ही ऐसी प्रजाति हैं जो भविष्य के हिसाब से चीजों को बदलने की क्षमता रखते हैं.
धरती पर हो रहे सतत प्राकृतिक विकास को रोकने और उसे बढ़ाने में इंसान एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. ये बात तो कन्फर्म हो चुकी है कि हम किसी विनाश की ओर अगर जा रहे हैं तो इसमें इंसानों की प्रजाति सबसे बड़ी भूमिका निभा रही है. जिस हिसाब से धरती से जीव खत्म हो रहे हैं, यानी धरती पर छठा सामूहिक विनाश शुरु हो चुका है.
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